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रमज़ान के महीने में दूर स्थानों से उम्रा करने के लिए आनेवाले व्यक्ति का रोज़ा तोड़ देना

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प्रकाशन की तिथि : 20-06-2015

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प्रश्न

प्रश्न : यदि एक परिवार रमज़ान के महीने में उम्रा करता है, तो क्या उनके लिए मक्का मुकर्रमा में ठहरने के दौरान रोज़ा तोड़ देना जायज़ है? या कि वे लोग मक्का पहुँचते ही खाने से रूक जायेंगे

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

''रमज़ान में उम्रा करने वाला यदि दूर के नगरों जैसे कि नज्द या उसके अलावा से आया है, तो वह मुसाफिर है। वह रास्ते में रोज़ा नहीं रखेगा चाहे वह रियाद से आया हो, या क़सीम से, या हाइल से या मदीना से। उसके लिए रास्तें में और मक्का में रोज़ा तोड़ देना (यानी रोज़ा न रखना) जायज़ है। परंतु अगर उसने चार दिनों से अधिक ठहरने का दृढ़ संकल्प (पक्का इरादा) कर लिया है, तो जब वह मक्का पहुँच जाए तो उसके लिए सबसे अधिक सावधानी का पहलू यह है कि वह रोज़ा रखे, तथा सबसे अच्छा भी यही है कि व रोज़ा रखे ; क्योंकि जमहूर विद्वानों (विद्वानों क बहुमत) का विचार यह है कि यदि उसने चार दिनों से अधिक ठहरने का पक्का और सच्चा संकल्प कर लिया है तो वह नमाज़ पूरी पढ़ेगा और रोज़ा नहीं तोड़ेगा।

लेकिन यदि उसका संकल्प दो दिन, या तीन दिन, या चार दिन ठहरने का है, इससे अधिक वह नहीं ठहरेगा, तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना भी जायज़ और रोज़ा रखने की भी अनुमति है। उसके लिए चार रकअत वाली नमाज़ों को क़स्र कर दो रकअत पढ़ने की अनुमति है, तथा उसके लिए लोगों के साथ चार रकअत पढ़ना भी जायज़ है। अगर वह अकेले है तो उसके लिए जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है। लेकिन यदि उसके साथ दूसरे लोग भी हैं, तो उसे इस बात का अख्तियार है कि यदि वह चाहे तो वह और उसके साथ के लोग दो रकअत नमाज़ पढ़ें, और अगर वे चाहें तो लोगों के साथ जमाअत में चार रकअत नमाज़ पढ़ें। परंतु अगर चार दिन से अधिक ठहरना है तो उनके लिए विद्वानों की बहुमत के निकट रोज़ा रखना और नमाज़ पूरी पढ़ना उचित है।'' अंत हुआ।

समाहतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह

स्रोत: "फतावा नूरुन अलद् दर्ब"