मंगलवार 9 रमज़ान 1445 - 19 मार्च 2024
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क्या बीमार तथा जो व्यक्ति सलसुल-बौल का शिकार है उनके लिए मोज़ों पर मसह करने की अनुमति है ॽ

प्रश्न

क्या निम्नलिखित कारणों के आधार पर उन मोज़ों पर मसह करना जाइज़ है जो पारदर्शी नहीं है और किसी हद तक मोटे हैं :
सर्दी, कठिनाई और बीमारी, पैरों में एक्ज़िमा होने के कारण या बुढ़ापे की वजह से या सलसुल-बौल की वजह से बीमार के प्रत्येक वुज़ू के समय पैर के धोने में असमर्थ होने के कारण जबकि उसे दिन में कई बार वुज़ू करने की ज़रूरत पड़ती है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

मोज़ों या उसके स्थान पर जुर्राबों पर मसह करना बीमारी या सर्दी या कठिनाई की हालत के साथ विशिष्ट नहीं है ; क्योंकि मसह के बारे में वर्णित प्रमाण सामान्य हैं, बल्कि संभव है कि इन स्थितियों में बीमार व्यक्ति मोज़ों पर मसह करने का दूसरी स्थितियों से अधिक ज़रूरतमंद हो।

इसी प्रकार सलसुल-बौल (बार बार पेशाब आने) से पीड़ित व्यक्ति के लिए मोज़ों पर मसह करने की अनुमति है,क्योंकि मोज़ों और जुर्राबों पर मसह करने के प्रमाण बिना कसी अपवाद के सामान्य हैं।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“यदि इस्तिहाज़ा (मासिक धर्म के नियमित दिनों से अतिरिक्त औरत को जो खून आता है उसे अरबी में इस्तिहाज़ा कहा जाता है) वाली औरत और जिस व्यक्ति को सलसुल-बौल की शिकायत है और इनके समान अन्य लोग यदि पवित्रता प्राप्त करके मोज़े पहन लें,तो उनके लिए उन पर मसह करना जाइज़ है। इमाम अहमद ने इसे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है ; क्योंकि उनके हक़ में उनकी पवित्रता संपूर्ण है। इब्ने अक़ील ने फरमाया : क्योंकि वह रूख्सत से लाभान्वित होने के लिए मजबूर है,और रूख्सत से लाभान्वित होने का सबसे अधिक हक़दार मजबूर व्यक्ति है . . ” “अल-मुग्नी” (1/174) से अंत हुआ।

अल-मर्दावी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“इस्तिहाज़ा वाली औरत और इसके समान लोगों के लिए हंबली मत के सही कथन के अनुसार मोज़े पर मसह करना जाइज़ है,इमाम अहमद ने इसको स्पष्टता के साथ वर्णन किया है।”“अल-इंसाफ” (1/169) से अंत हुआ।

तथा “स्थायी समिति” के फतावा (4/245) में आया है : “जो व्यक्ति स्थायी सलसुल-बौल से पीड़ित है, जब नमाज़ का समय प्रवेश करे तो वह इस्तिंजा करेगा और अपने शिशन पर कोई चीज़ रख लेगा जो पेशाब की बूंदों के टपकने से रोक सके, फिर वह वुज़ू करे और नमाज़ पढ़े, इसी तरह वह हर नमाज़ के समय करे। इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :

فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ

“अतः तुम अपनी शक्ति भर अल्लाह से डरते रहो।”

और इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस्तिहाज़ा वाली औरत को आदेश दिया है कि वह लगाम (लंगोट) कस ले और हर नमाज़ के लिए वुज़ू करे। तथा सलसुल-बौल से पीड़ित व्यक्ति के लिए जाइज़ है कि जब वह वुज़ू करे तो दोनों मोज़े पहन लेऔर अवधि पूरी होने तक उन पर मसह करे ; क्योंकि उसके प्रमाण सामान्य हैं। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।”अंत हुआ।

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ . . शैख अब्दुल अज़ीज़ आलुश्शैख . . शैख सालेह अल-फौज़ान . . शैख बक्र अबू ज़ैद

तथा मोज़ों पर मसह करने की शर्तों का उल्लेख प्रश्न संख्या (9640) के उत्तर में गुज़र चुका है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर