शुक्रवार 19 रमज़ान 1445 - 29 मार्च 2024
हिन्दी

चित्र वाले पोशाक पहनने का हुक्म

226090

प्रकाशन की तिथि : 08-03-2015

दृश्य : 8642

प्रश्न

उस पोशाक के पहनने का क्या हुक्म है जिसमें जानवर की छवि (चित्र) होती है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

ऐसा पोशाक पहनना जायज़ नहीं है जिस पर जीवधारी और चेतन प्राणियों की कोई चित्र (छवि) उत्कीर्ण हो। क्योंकि इस प्रकार की छवियाँ फ़रिश्तों (स्वर्गदूतों) को घर में प्रवेश करने से रोकती हैं, इस कारण कि इस में अल्लाह तआला की रचना का अनुकरण और बराबरी करना पाया जाता है। और इस कारण भी कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चित्रों को मिटाने का आदेश जारी किया है।

इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

“मुसलमान के लिए जायज़ नहीं है कि वह ऐसे पोशाक में नमाज़ पढ़े जिन में चित्र और छवियाँ बनी हुई हों, चाहे वे छवियाँ (तस्वीरें) मनुष्य की हों या अन्य चेतन प्राणियों और जीवधारियों की हों जैसे- घोड़े, या ऊँट या पक्षि।”

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : (किसी भी चित्र को न छोड़ना मगर उसे मिटा देना) एक दूसरे स्थान पर आप ने फरमाया : (चित्र बनाने वालों को कि़यामत के दिन अज़ाब (यातना) दिया जाएगा, और उन से कहा जाए गा कि : जिन तस्वीरों को तुम ने बनाया है उन में जान डालो) और इसी तरह जब अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रजियल्लाहु अन्हा के द्वार पर एक पर्दा देखा, जिसमें तस्वीरें बनी थीं तो आप ने उसको फ़ाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया, और आपका चेहरा बदल गया। अतः किसी भी मुसलमान पुरूष और महिला के लिए जायज़ नहीं है कि वह चैतन प्राणियों के चित्रों वाले पोशाक पहने, न तो क़मीस, न चादर, न अमामा (पगड़ी) और न इसके अलावा कोई अन्य कपड़ा पहने, और न ही उसे घरों का पर्दा बनाए, ये सारी चीज़ें वर्जित और निषिद्ध हैं।'' शैख इब्ने बाज़ की साइट से समाप्त हुआ। http://www.binbaz.org.sa/mat/14740

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“मनुष्य के लिए जायज़ नहीं है कि वह कोई ऐसा कपड़ा पहने जिसमें किसी मानव या जानवर की तस्वीर हो। इसी तरह उसके लिए गुत्रा या शिमाग़ या इस जैसी कोई अन्य चीज पहनना जायज़ नहीं है जिसमें किसी मनुष्य या जानवर का चित्र हो। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आपने फरमाया :

‘‘निःसन्देह स्वर्गदूत उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं जिस में कोई चित्र हो।” (सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम)।

“मजमूओ फतावा व रसाइल अल-उसैमीन” (2/274) से समाप्त हुआ।

लेकिन अगर पोशाक में बने चित्र और बेलबूटे निर्जीव के हैं : तो उनके पहनने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।

इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों ने कहा :

“चित्र में वर्जन (निषेध) का आधार उसका चैतन प्राणियों के चित्र का होना है, चाहे वह अंकित हो या दीवारों या कपड़ों पर चित्रित हो, या बुनी हुई हो, और चाहे वह रीशा (पक्षियों के परों) से बनी हो या क़लम से या मशीन के द्वारा, और चाहे यह चित्र अपनी प्रकृति पर हो या उसमें कल्पना दाखिल हो गई हो, चुनाँचे वह छोटी कर दी गई हो या बड़ी कर दी गयी हो या सुन्दर कर दी गयी हो या विकृत कर दी गयी हो, या वह कंकाल की प्रतिनिधित्व करने वाली लाइनों के रूप में कर दी गयी हो। अतः उन चित्रों के निषिद्ध होने का आधार उनके चैतन प्राणियों के चित्रों का होना है।’’

“स्थायी समिति के फतावा ”(1/ 696) से समाप्त हुआ।

तथा उनका यह भी कहना है कि :

“निर्जीव दृश्यों जैसे पहाड़ों, पेड़ों, घाटियों, नदियों और समुद्रों के चित्र बनाने में कोई हानि नहीं है, क्योंकि उस के अंदर कोई निषेध (वजर्न) नहीं है।”

“स्थायी समिति के फतावा” (1/315) से समाप्त हुआ।

तथा अधिक लाभ के लिए देखें: फत्वा संख्या (110504) और (143709)।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर