गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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क्या शहद में ज़कात है ?

प्रश्न

क्या शहद में ज़कात वाजिब (अनिवार्य) है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

विद्धानों में से कुछ -उन्हीं में से इमाम अहमद भी हैं- इस बात की तरफ गये हैं कि शहद में ज़कात है, और उन्हों ने इस पर कई प्रमाणों से तर्क स्थापित किया है, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं:

1- इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1824) ने अम्र बिन शुऐब से और वह अपने बाप के द्वारा अपने दादा अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शहद में उश्र (दसवां हिस्सा ज़कात) लिया है। अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा में इसे "हसन सहीह" कहा है।

2- सुलैमान बिन मूसा से वर्णित है, वह अबू सय्यारा अल-मुतई रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि उन्हों ने कहा : मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! मेरे पास मधुमक्खियाँ (अर्थात शहद) है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : उश्र (दसवाँ भाग ज़कात) का भुगतान करो। मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! उन्हें मेरे लिए सुरक्षित कर दीजिये, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें मेरे लिये सुरक्षित कर दिया।" इस हदीस को इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1823) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा में इसे हसन लि-गैरिही कहा है।

तथा सिंदी इब्ने माजा के हाशिया में फरमाते हैं:

"अज़्ज़वाइद" में है कि : इब्ने अबी हातिम ने अपने पिता के हवाले से कहा कि : सुलैमान बिन मूसा ने अबू सय्यारा से भेंट नहीं की है, और यह हदीस मुर्सल है। तथा तिर्मिज़ी ने इस हदीस के बाद किताबुल-इलल में इमाम बुखारी से वर्णन किया है कि यह हदीस मुर्सल है, फिर कहा : सुलैमान ने किसी भी सहाबी से मुलाक़ात नहीं की है।" (मुर्सल उस हदीस को कहते हैं जिस में ताबेई बिना सहाबी के माध्यम के सीधा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करता है।)

3- अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1600) अम्र बिन शुऐब अपने बाप के द्वारा अपने दादा से रिवायत करते हैं कि उन्हों ने कहा : बनू मुतआ़न का हिलाल नामी एक व्यक्ति अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास अपनी मधुमक्खियों का उश्र (ज़कात का दसवां भाग) लेकर आया, और उस ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह अनुरोध किया था कि आप उस के लिए सलबा नामी एक घाटी को सुरक्षित कर दें, तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस के लिए उस घाटी को सुरक्षित कर दिया था। फिर जब उमर रज़ियल्लाहु अन्हु खलीफा बने तो सुफयान बिन वह्ब ने उमर बिन खत्ताब के पास पत्र लिख कर उस के बारे मे पूछा, तो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब लिखा : अगर वह अपनी मधुमक्खियों का जो उश्र नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दिया करते थे, तुम्हें अदा करें तो उन के लिए सलबा को सुरक्षित कर दो, अन्यथा वह बारिश की मक्खियाँ हैं जो चाहे उसे खाये। इसे शैख अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में हसन कहा है।

तथा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहिमहुल्लाह से भी ऐसा ही वर्णित है, किन्तु उन से संबंधित सब से सहीह बात यह है कि शहद में ज़कात नहीं है।

तथा इमाम अहमद से पूछा गया : क्या आप इस बात की तरफ जाते हैं कि शहद में ज़कात है ? उन्हों ने कहा : हाँ, मैं इस बात की तरफ जाता हूँ कि शहद में ज़कात, उश्र (दसवां भाग) है, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन से लिया है। मैं ने कहा : यह इस आधार पर था कि उन्हों ने उसे स्वेच्छा पूर्वक दिया था ? उन्हों ने कहा : नहीं, बल्कि (उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने) उन से लिया था।

देखिये : "अल-मुग़नी" (4/183 , 184)

तथा जमहूर उलमा (विद्वानों की बहुमत) - जिन में इमाम मालिक और शाफेई भी शामिल हैं - इस बात की ओर गये हैं कि शहद में ज़कात नहीं है, और उन्हों ने शहद में ज़कात को अनिवार्य करने के बारे में वर्णित आसार (हदीसों) को ज़ईफ (कमज़ोर) कहा है, और उन में से जो (हदीस) सहीह है उस का तर्क यह बताया है कि उन्हों ने जो शहद उश्र (ज़कात) में दिया था वह उन के लिए मधुमक्खियों की घाटी को सुरक्षित किये जाने के बदले में था, जैसाकि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित हदीस का प्रत्यक्ष अर्थ यही है।

इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : "आसमान की बारिश और बहने वाले पानी से सिंचित चीज़ों में उश्र (दसवां भाग ज़कात) का अध्याय, तथा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के विचार में शहद में कुछ भी नहीं है।"

हाफिज़ इब्ने हजर "फत्हुल बारी" में कहते हैं:

"इब्ने अबी शैबा और अब्दुर्रज़्ज़ाक ने सहीह इसनाद के साथ इब्ने उमर के मुक्त दास नाफिअ़ से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने मुझे यमन भेजा तो मैं ने चाहा कि शहद से उश्र (दसवां भाग ज़कात) वसूल करूँ, तो मुग़ीरा बिन हकीम अस-सनआनी ने कहा : उस में कुछ भी नहीं है, तो मैं ने उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के पास पत्र लिखा तो उन्हों ने कहा कि : उस ने सच कहा, वह ईमानदार और सज्जन है, उस में कुछ भी (ज़कात) नहीं है। तथा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ से इस के विरूद्ध विचार भी वर्णित है जिसे अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने रिवायत किया है . . . लेकिन उस की इसनाद ज़ईफ (कमज़ारे) है, और पहली बात ही सब से अधिक प्रमाणित है। मानो कि इमाम बुखारी इस हदीस के ज़ईफ होने की ओर संकेत कर रहे हैं कि (शहद में उश्र -दसवाँ भाग ज़कात- है।).

तथा इमाम बुखारी अपनी तारीख में कहते हैं कि : शहद की ज़कात के बारे में कुछ भी साबित (प्रमाणित) नहीं है।

तथाइमाम तिर्मिज़ी कहते हैं : इस अध्याय में कुछ भी शुद्ध रूप से प्रमाणित नहीं है।

तथा इमाम शाफेई कहते हैं : यह हदीस कि : (शहद में उश्र -दसवां हिस्सा ज़कात- है।) ज़ईफ (कमज़ोर) है।

तथा इब्ने मुंज़िर कहते हैं कि : शहद के बारे में कोई भी सूचना (हदीस) साबित नहीं है, और न ही इस के बारे में कोई इजमाअ़ (विद्धानों की सर्व सहमति) है, अत: इस में ज़कात नहीं है, और यही जमहूर (विद्वानो की बहुमत) का कथन है।" कुछ संक्षेप और संशोधन के साथ समाप्त हुआ।

तथा उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का यह कथन कि : (अगर वह अपनी मधुमक्खियों का जो उश्र नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दिया करते थे, तुम्हें अदा करें तो उन के लिए सलबा को सुरक्षित कर दो) इस बात का प्रमाण है कि उन्हों ने हिलाल से जो कुछ लिया था वह ज़कात नहीं था, बल्कि वह सुरक्षित करने के बदले मे था।

इब्ने मुफलिह हंबली अपनी किताब "अल-फुरूअ़" में उन दलीलों (प्रमाणों) का उल्लेख किया है जिन से शहद में ज़कात को अनिवार्य कहने वालों न दलील पकड़ी है, और उन पर ऐसा वार्तालाप किया है जिस से उन दलीलों की कमज़ोरी का पता चलता है, फिर कहते हैं : "जो व्यक्ति इस में और इस के अलावा में विचार करे गा उस के लिए इस मस्अला की कमज़ोरी स्पष्ट हो जाये गी।"

इसी तरह शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि : क्या शहद पर ज़कात है ?

तो उन्हों ने उत्तर दिया : "सही बात यह है कि उस में ज़कात नहीं है, क्योंकि यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित नहीं है, बल्कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने मधुमक्खियों के स्थानों को सुरक्षित कर दिया था और उन पर उश्र (दसवां हिस्सा ज़कात) वसूल किया था, इस आधार पर शहद में ज़कात अनिवार्य नहीं है, लेकिन अगर आदमी स्वेच्छा पूर्वक उसे निकाल दे तो यह अच्छा है, और उसकी मधुमक्खियों के विकास और उस के मधु की बाहुल्यता का कारण हो सकता है, परन्तु रही यह बात कि यह अनिवार्य है जिस को छोड़ देने से आदमी दोषी (गुनाहगार) हो जायेगा तो इस का कोई प्रमाण नहीं है।"

"फतावा अज़्ज़कात" (पृ0 87)

तथा फतावा की स्थायी समिति से प्रश्न किया गया कि : क्या मधुमक्खियों के द्वारा उत्पादित शहद में ज़कात है या नहीं ?

तो उस ने यह उत्तर दिया कि:

"मधुमक्खियों के द्वारा उत्पादित शहद में ज़कात नहीं है, लेकिन उस के मूल्य में उस वक़्त ज़कात अनिवार्य होगी जब उसे बेचने के लिए तैयार किया गया हो और उस पर एक साल बीत जाये, तथा उस का मूल्य निसाब (ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम राशि) को पहुँच जाये, ऐसी स्थिति में उस में दसवें भाग का एक चौथाई (चालीसवाँ) भाग ज़कात निकाली जायेगी।"

"फतावा अल्लजना अद्दाईमा" (स्थायी समिति के फत्वे) (9/226).

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर