मंगलवार 9 रमज़ान 1445 - 19 मार्च 2024
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वह अपने परिवार के साथ कैसे व्यवहार करे जो मीलादुन्नबी का उत्सव मनाते हैं और उसे अपने साथ भाग न लेने का ताना देते हैं?

प्रश्न

मैं पैगंबर के जन्म दिवस का जश्न नहीं मनाता हूँ, जबकि इसके विपरीत परिवार के शेष सदस्य इसका उत्सव मनाते हैं। वे कहते हैं : मेरा इस्लाम एक नया इस्लाम है, और मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रेम नहीं करता हूँ, तो क्या इस बारे में आप कोई सदुपदेश (नसीहत) करेंगे?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के योग्य है।

सर्व प्रथम :

सम्मानित भाई! आप ने एक ऐसी चीज़ का जश्न मनाने को त्यागकर अच्छा किया, जो लोगों के बीच फैली हुई आदतों की बिदअतों में से एक बिदअत है। तथा आप उन लोगों की ओर ध्यान न दें, जो आपको नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरणा करने का ताना देते हैं, और आपको इस्लाम के मागदर्शन पर स्थिर रहने का दोषी ठहराते हैं ; क्योंकि अल्लाह तआला ने जिस संदेष्टा को भी उनकी क़ौम (जाति) की ओर भेजा, तो उन्हों ने उनका मज़ाक उड़ाया (उपहास किया), और उनकी बुद्धि और उनके धर्म की भर्त्सना की, जैसाकि अल्लाह का फरमान है :

كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ [الذاريات : 52]

''इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा कि यह जादूगर है या दीवाना!'' (सूरतुज़-ज़ारियात : 52)

अतः आपके लिए पैगंबरों के अंदर एक नमूना (आदर्श) है, इसलिए आपको जो कष्ट पहुँचता है उस पर सब्र करें और अपने पालनहार के पास अज्र व सवाब की आशा रखें।

दूसरा :

आपके लिए नसीहत यह है कि : उन लोगों से बहस और चर्चा न करें, सिवाय इसके कि आप उनमें से किसी समझदार को देखें जो आपकी बात सुने और लाभ उठाए। तो आप इस तरह के लोगों का चयन करके उन्हें मीलादुन्नबी (पैगंबर के जन्म दिवस) के जश्न की वास्तविकता, उसके हुक्म, और उसे खंडित करने के प्रमाणों से अवगत कराएं, और उनके लिए पैगंबर के अनुसरण की प्रतिष्ठा, बिदअत अविष्कार करने की दुष्टता स्पष्ट करें। जब आप इस तरह के लोगों को देखें, तो उनके साथ संवाद करने और उन्हें सदुपदेश करने में आपके लिए कुछ लाभदायक बातें प्रस्तुत हैं :

1- हम इन लोगों के साथ वहीं से शुरूआत करें जहाँ इन्हों ने समापन किया है, और वह है उन लागों का आप से यह कहना कि आपका इस्लाम, एक नया इस्लाम है। तो इस पर हम कहते हैं : दोनों में धर्म और इस्लाम के एतिबार से कौन सबसे प्राचीन और पुराना है : जो ईद मीलादुन्नबी मनाने वाला है, या वह जिसने इसे कभी नहीं मनाया? बिना किसी सन्देह के हर बुद्धिमान इन्साफ पसंद के निकट इसका उत्तर यही है कि : जिसने मीलाद का जश्न नहीं मनाया वह इस्लाम और धर्म के एतिबार से सबसे पुराना और प्राचीन है। चुनांचे सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, ताबेईन, तथा ताबेईन का अनुसरण करनेवाले, और उनके बाद, मिस्र में उबैदी शासन काल (के उदय) तक के लोगों ने ईद मीलादुन्नबी का जश्न नहीं मनाया है, बल्कि यह उनके बाद शुरू हुआ। तो वास्तव में नये इस्लाम वाला कौन है?!

2- हमें देखना चाहिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सबसे अधिक कौन प्रेम करता हैः क्या सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, या कि उनके बाद आने वाले पिछली शताब्दियों के लोग? बिना किसी सन्देह के हर बुद्धिमान और इन्साफ पसंद के निकट इसका उत्तर यही है कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सबसे अधिक और सबसे बड़ी महब्बत करनेवाले थे। ता क्या उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जन्म दिवस मनाया या कि उसे त्याग दिया। और इस तरह के लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस का समारोह आयोजित करके कैसे सहाबा किराम का उनके अपने नबी की महब्बत में मुक़ाबला करने वाले हो सकते है?!

3- हमें पूछना चाहिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महब्बत का अर्थ क्या है? निःसन्देह हर न्याय प्रिय और बुद्धि वाले के निकट उसका मतलब : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़े (मार्गदर्शन) का पालन करना, आपके रास्ते पर चलना है। यदि ये मीलाद मनाने वाले अपने नबी के मार्गदर्शन के प्रतिबद्ध होते और आपके अनुसरण और आज्ञापालन के रास्ते पर चले होते : तो पैगंबर प्रेमी और अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुपालन करनेवाले सहाबा के लिए जो चीज़ विस्तृत व पर्याप्त थी इनके लिए भी वह विस्तृत और पपर्याप्त होती। और वे भली भांति इस बात को जान लेते कि हर प्रकार की भलाई उन लोगों का अनुसरण करने में है जो गुज़र चुके हैं, और जो लोग बाद में आने वाले हैं उनके नवाचार पैदा करने (बिदअत गढ़ने) में बुराई ही बुराई है।

क़ाज़ी अयाज़ - नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महब्बत की निशानी के बारे में अध्याय - में कहते हैं : यह बात जान लो कि जो व्यक्ति किसी चीज़ से महब्बत करता है : तो उसे प्राथमिकता देता है और उसके साथ सहमति को वरीयत देता है, अन्यथा वह अपनी महब्बत में सच्चा नहीं होगा। वह केवल उसका दावेदार होगा। अतः नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से महब्बत में सच्चा आदमी : वह है जिसके ऊपर उसकी निशानी ज़ाहिर हो, और उसमें सबसे पहली निशानी : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण, आपकी सुन्नत का उपयोग, आपके कथनों और कर्मों का अनुकरण करना, आपके आदेशों का पालन और आपके निषेद्धों से उपेक्षा करना, अपनी कठिनाई और आसानी, चुस्ती और नापसंदी में आप के व्यवहारों से सुसज्जित होना, है। इसका साक्षी : अल्लाह तआला का यह कथन है :

}قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللّهُ { [آل عمران:31]

''कह दीजिए! अगर तुम अल्लाह से महब्बत करते हो तो मेरा आज्ञापालन करो, खुद अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा।'' (सूरत-आल इम्रान: 31)

आप की शरीअत को प्राथमिकता देना, और उसके अपने की चाहत और अपनी स्वेच्छा की सहमति पर वरीयाता देना, अल्लाह तआला का कथन है:

والذين تبوؤا الدار والإيمان من قبلهم يحبون من هاجر إليهم ولا يجدون في صدورهم حاجة مما أوتوا ويؤثرون على أنفسهم ولو كان بهم خصاصة [الحشر : 9]

''और (उनके लिए) जिन्हों ने इस घर में (यानी मदीना में) और ईमान में उन से पहले जगह बना लिया है, और अपनी तरफ हिजरत कर के आने वालों से महब्बत करते हैं और मुहाजिरों को जो कुछ दे दिया जाय, उससे वे अपने सीनों में कोई संकोच नहीं करते, बल्कि स्वयं अपने ऊपर उन्हें प्राथमिकता देते हैं अगरचे खुद उनको कितनी ही कठोर जरूरत हो।'' (सूरतुल हश्र : 9) और अल्लाह तआला की प्रसन्नता में बन्दों को नाराज़ करना...

जो व्यक्ति इस गुण से सुसज्जित है : तो वह अल्लाह और उसके पैगंबर से पूर्ण महब्बत करनेवाला है। और जिसने इनमें से कुछ चीज़ों में इसके खिलाफ किया तो उसकी महब्बत में अभाव और कमी है, और वह उसकी संज्ञा से बाहर नहीं निकले गा।

''अश्शिफा बि-तारीफि हुक़ूक़िल मुस्तफा'' (2/24, 25).

4- हमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म तिथि के बारे में देखना चाहिए, क्या उसके बारे में कोई चीज़ प्रमाणित है? और फिर हम उसके मुक़ाबिल में देखें कि क्या आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु की तिथि के बारे मे कोई चीज़ प्रमाणित है? निःसन्देह हर बुद्धिमान और न्याय प्रिय का उत्तर यही होगा कि : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म की तिथि प्रमाणित नहीं है, जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु की तिथि निश्चित रूप से प्रमाणित है।

जब हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी के बारे में लिखित पुस्तकों में देखेंगे तो : तो हम पायेगे कि सीरत के लेखक आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जन्म तिथि के बारे में कई कथनों पर मतभेद करते हैं, जो निम्नलिखित हैं :

1.सोमवार, दो रबीउल अव्वल।

2.आठ रबीउल अव्वल।

3.दस रबीउल अव्वल।

4.बारह रबीउल अव्वल।

5.तथा अज़-ज़ुबैर बिन बक्कार कहते हैं : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के महीने में पैदा हुए।

अगर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस पर कोई चीज़ निष्कर्षित होती तो सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम आप से उसके बारे में अवश्य पूछते, या आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम स्वयं उन्हें बतलाए होते, लेकिन इनमें से कोई भी चीज़ घटित नहीं हुई।

रही बात आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु की : तो इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि वह हिजरत के ग्यारहवें वर्ष, रबीउल अव्वल की बारहवीं तारीख है। फिर हम देखें कि ये बिदअती लोग यह जश्न कब मनाते हैं? ये लोग आप की मृत्यु के समय में जश्न मनाते हैं, आपके जन्मदिवस में नहीं! बातिनी उबैदियों - जिन्हों ने अपना नसब झूठमूट गढ़कर, फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की ओर निस्बत करते हुए, अपना नाम ''फातिमी'' रख लिया था - ने उनके ऊपर अपनी बिदअत को चला दिया और इन्हों ने बड़ी सादगी (साधरणता) से इसे क़बूल कर लिया। वो लोग वास्तव में ज़िन्दीक़ व मुलहिद (अधर्मी व नास्तिक) थे, उन्हों ने हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु पर खुशी मनाना चाहा, तो यह अवसर ईजाद कर दिया और इसके लिए समारोह आयोजित किए, जबकि वास्तव में उनकी चाह अपनी खुशी का प्रदर्शन करने की थी। तो उन्हों ने सीधे-सादे मुसलमानों को यह भ्रम दिलाया कि जो इन समारोहों में उनसे सहमति रखे, वह वास्तव में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपनी महब्बत को अभिव्यक्त कर रहा है। इस तरह वे लोग अपनी दुष्टता और छल में सफल हो गए। तथा इन लोगों के साथ ''महब्बत'' के अर्थ को विकृत करने में कामयाब हो गए, और उसे मीलाद के क़सीदे पढ़ने, जौ और मिठाईयाँ वितरित करने, साथ ही साथ नाच के हलक़े आयोजित करने, महिलाओं और पुरूषों के बीच मिश्रण, तथा उसके साथ म्यूज़िक, बेपर्दगी, अश्लीलता में बना दिया है, जबकि बिदअत पर आधारित विनतियाँ और शिर्क पर आधारित बातें इसके अलावा हैं जो उन सभाओं और हलक़ों में कही जाती हैं।

इस बिदअत की खंडता का सविस्तार वर्णन हमारी साइट पर प्रश्न संख्या : (10070) और (13810) के उत्तरों में गुज़र चुका है, अतः उन्हें देखें।

तथा इस बिदअत के खंडन में शैख सालेह अल-फौज़ान की किताब इस लिंकः (हुक्मुल एहतिफ़ाल बिल-मौलिदिन नबवी) के तहत देखें।

तीसरा :

आप - ऐ सवाल करनेवाले भाई - अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी करने पर सब्र से काम लें, और विरोध करने वालों की अधिक संख्या आपको धोखे में न डालने पाए। तथा हम आपको ज्ञान प्राप्त करने, और लोगों को लाभ पहुँचाने का लालायित होने की वसीयत करते हैं। तथा आप अपने परिवार वालों की ओर से इस तरह के कार्यों को अपने और उनके बीच मतभेद का कारण न बनाएं, क्योंकि वे लोग दूसरे लोगों की तक़लीद करते हैं जो उन्हें इन समारोहों के जायज़ होने, बल्कि एच्छिक होने! का फत्वा देते हैं। इसलिह आप इन्कार और खण्डन करने में उनके साथ नरमी से काम लें और अच्छी बातें, अच्छे कार्य और अच्छे आचार का प्रदर्शन करने के इच्छुक बनें। और आप उन्हें अपने व्यवहार और उपासना पर पैगंबर के अनुसरण का प्रभाव दिखाएं। हम आपके लिए अल्लाह से तौफीक़ का प्रश्न करते हैं।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर