गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
हिन्दी

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने का आदर्श तरीक़ा

प्रश्न

हमारे आदरणीय गुरूजन, मैं उन लोगों में से हूँ जो परिस्थितियों के अनुसार एक दिन में 50/100 या उस से अधिक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजते हैं। और मैं इस तरह दुरूद पढ़ता हूँ : (اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ) "अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद” (ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आले मुहम्मद पर दया अवतरित कर)। कुछ लोगों ने मुझे बताया है कि मेरा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना अधूरा है। अल्लाह आप लोगों को अच्छा बदला दे, क्या आप हमें बता सकते हैं कि मानव जाति के नायक पर दुरूद भेजने का आदर्श तरीक़ा क्या है, और क्या वास्तव में मेरा तरीक़ा अधूरा है? अल्लाह आप लोगों को बेहतर बदला दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजना अल्लाह की निकटता प्राप्त करने के महान कार्यों और उन उपासना कृत्यों में से है, जिनके लिए शरीअत ने प्रोत्साहित किया है। तथा यह बन्दे के लिए लोक व परलोक में सब से अधिक लाभदायक दुआओं में से, तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की महब्बत का पूरक और उसके आवश्यक तत्वों, आपके आदर व सम्मान, तथा आपके अधिकारों की पूर्ति में से है।

जहाँ तक मानव जाति के नायक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने के आदर्श तरीक़े का संबंध है, तो इस विषय में कई प्रकार के प्रामाणिक शब्द (सूत्र) वर्णित हैं। आप इन्हें विस्तार से अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह की पुस्तक “सिफतो सलातिन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम” (पृष्ठ संख्याः 165, मुद्रण मकतबतुल मआरिफ रियाज़) में देख सकते हैं। इन शब्दों में सब से ज़्यादा सहीह और सबसे अधिक प्रसिद्ध वे दो शब्द (सूत्र) हैं, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा को उस समय सिखाए थे जब उन्होंने आप से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुरूद भेजने का तरीक़ा पूछा था। वे दोनों निम्नलिखित हैं :

प्रथम :

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ

उच्चारणः ''अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा सल्लैता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुन मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा बारक्ता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुन मजीद''

अर्थात : ऐ अल्लाह! मुहम्मद और मुहम्मद की संतान पर रहमत नाज़िल (अवतरित) फरमा, जैसे तूने इब्राहीम और आले इब्राहीम पर रहमत नाज़िल की। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और बुज़ुर्गीवाला (महिमामवान) है। ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आले मुहम्मद पर बर्कत नाज़िल फरमा, जैसे तूने इब्राहीम और आले इब्राहीम पर बर्कत नाज़िल फरमाई। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और महिमावान है।''

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3370) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 406) ने कअब बिन उज्रा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है।

दूसरा :

اللهمَّ صلِّ على محمَّد وأزواجه وذُريَّته، كما صليتَ على آل إبراهيم، وبارِك على محمَّد وأزواجه وذُريَّته، كما باركتَ على آل إبراهيم؛ إنَّك حميدٌ مجيد

उच्चारणः ''अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अज़्वाजिही व ज़ुर्रियतेही कमा सल्लैता अला आले इब्राहीम, व बारिक अला मुहम्मद, व अज़्वाजिही व ज़ुर्रियतेही कमा बारक्ता अला आले इब्राहीमा, इन्नका हमीदुन मजीद''

अर्थात : ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आपकी बीवियों और संतान पर रहमत नाज़िल फरमा, जैसे तूने आले इब्राहीम पर रहमत नाज़िल फरमाई। और मुहम्मद और आपकी बीवियों (पत्नियों) और संतान पर बर्कत नाज़िल फरमा, जैसे तूने आले-इब्राहीम पर बर्कत नाज़िल फरमाई। बेशक तू प्रशंसा के योग्य और बुज़ुर्गीवाला है।''

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 3369) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 407) ने अबू हुमैद साइदी से रिवायत किया है।

और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम केवल सर्वश्रेष्ठ और सबसे उत्तम चीज ही का चयन करेंगे।

देखए : नववी की “रौज़तुत्तालेबीन” (11/66), इब्ने हजर की “फत्हुल बारी” (11/166), अल्बानी की “सिफतो सलातिन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम” (पृष्ठ संख्या : 175), और “अल-मौसूअतुल-फिक़्हिय्या अल-कोयतिय्या” 27/97)

बेहतर यह है कि दुरूद के विभिन्न शब्दों को विविध रूप से पढ़ा जाए - इस प्रकार कि कभी दुरूद के इस शब्द को पढ़े और कभी दूसरे शब्द को पढ़े - ताकि सुन्नत और शरीअत का पालन हो सके, और ताकि ऐसा न हो कि किसी एक प्रकार के दुरूद की प्रतिबद्धतासे दुरूद के दूसरे शब्दों को त्यागना लाज़िम न आए। तथा इसमें ढेर सारे लाभ हैं जो दुरूद के अन्य शब्दों को छोड़कर हमेशा किसी एक ही शब्द का पालन करने से प्राप्त नहीं हो सकते।

लेकिन ध्यान रहे कि दुरूद के विविध शब्दों को आपस में एकत्रित और मिश्रित कर इनके संग्रह से दुरूद का एक संयुक्त शब्द गठित करना धर्मसंगत नहीं है, बल्कि यह सुन्नत के विरुद्ध है; जैसा कि विद्वानों के एक समूह ने इसे पारित किया है।

देखिए : इब्ने तैमिय्या की “मजमूउल-फतावा” (22/335, 458, 24/242, 247), इब्ने क़ैयिम की “जलाउल-अफ्हाम”(पृष्ठ संख्या : 373), “क़वाइद इब्ने रजब” (पृष्ठ संख्या : 14), इब्ने उसैमीन की “अश्शर्हुल मुम्ते” (2/56, 65, 3/29, 98).

उपर्युक्त दुरूद के शब्दों का संबंध नमाज़ में तशह्हुद के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर पढ़े जाने वाले दुरुद से है।

जहाँ तक आपका नमाज़ के बाहर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर : (اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ) के शब्दों द्वारा दुरूद भेजने का संबंध है; तो यदि आपके साथी के कहने का मतलब यह है कि आपके दरूद भेजने का यह शब्द सुन्नत में वर्णित पूर्ण दुरूद की तुलना में अधूरा है तो उसका यह कहना सही है। और अगर उसके कहने का मक़सद यह है कि आपके दुरूद भेजने का शब्द अपर्याप्त है और उससे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद पूरा नहीं होता है, तो मामला ऐसा नहीं है; बल्कि यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर भेजा जाने वाला एक दुरूद है, जिसका शब्द विशुद्ध है और उद्देश्य को पूरा करने वाला है। तथा विद्वानगण निरंतर : “अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद” या “सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम” आदि जैसे शब्द कहते चले आ रहे हैं। अतः इन शा अल्लाह, इस मामले में विस्तार है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने “फत्हुल बारी” (11/166) में स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि : विद्वानों की बहुमत का मानना है कि दुरूद के उद्देश्य को पूरा करने वाला कोई भी शब्द पर्याप्त है। परंतु सुन्नत और धर्म के लिए सावधानी के तौर पर तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित चीज़ का पालन करते हुए, नमाज़ के अन्दर केवल हदीस से प्रमाणित दुरूद पर निर्भर करना चाहिए, उसमें कमी नहीं करना चाहिए।

इसी तरह दुरूद के इस शब्द में यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह सलाम को त्याग कर केवल दुरूद पर आधारित है, जबकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने हमें दुरूद और सलाम दोनों को एक साथ पढ़ने का आदेश दिया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

إِنّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا (الأحزاب : 56)

“बेशक अल्लाह और उसके फ़रिशते नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दुरूद भेजते हैं। ऐ ईमान वालो! तुम भी उन पर दरूद भेजो और खूब सलाम भेजते रहा करो।” (सुरतुल अहज़ाब : 56)

विद्वानों ने स्पष्ट तौर पर बयान किया है कि : मनुष्य के लिए यह मक्रूह (अनेच्छिक) है कि वह हमेशा सलाम के बिना दुरूद का उल्लेख करे, या हमेशा दरूद के बिना सलाम का उल्लेख करे। लेकिन अगर वह उन दोनों का उल्लेख एक साथ करे, या कभी दरूद का उल्लेख करे, और कभी सलाम का उल्ले करे, तो वह उपर्युक्त आयत का अनुपालन करने वाला होगा .. और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

देखिए : फत्हुल बारी (11/167).

और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर