गुरुवार 16 शव्वाल 1445 - 25 अप्रैल 2024
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क्या रमज़ान में सम्पूर्ण धन की ज़कात निकाली जायेगी ?

प्रश्न

मैं हर वर्ष अपने धन की ज़कात रमज़ान में निकालता हूँ। मैं केवल उसी राशि की ज़कात निकालता हूँ जो पिछले रमज़ान में मेरे पास थी . . . अर्थात जिस पर एक साल बीत चुका है। तो क्या जो मैं कर रहा हूँ वह सही है ? या कि मेरे ऊपर जो कुछ भी मैं ने साल के दौरान बचत किया है उन सब की ज़कात निकालना अनिवार्य है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

ज़कात के अनिवार्य होने की कुछ शर्तें हैं जिन में से एक शर्त एक साल का बीतना है,अर्थात् उस माल पर जो ज़कात के निसाब (न्यूनतम राशि) को पहुँच गया है उस पर एक हिज्री साल गुज़र जाये। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "किसी माल में ज़कात अनिवार्य नहीं है यहाँ तक कि उस पर एक साल बीत जाये।" इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इरवाउल गलील (हदीस संख्या : 787) में सहीह कहा है।

सोने, चांदी, पैसे (केश) और चौपायों (पशुओं) में ज़कात के वाजिब होने के लिए एक साल का गुज़रना अनिवार्य है।

साल के दौरान प्राप्त होने वाले धन के दो प्रकार हैं :

प्रथम : जो किसी धन से उत्पन्न होने वाला लाभ हो, तो उस पर साल का बीतना उसके असल (मूल) धन पर साल का बीतना है।

दूसरा : जो स्थायी रूप से कोई अलग धन हो, जो किसी वैध तरीक़े से प्राप्त किया गया हो, जैसेकि विरासत, हिबा (उपहार) या वेतन से जमा किया गया हो, तो उस पर ज़कात वाजिब नहीं है यहाँ तक कि उस पर उसके निसाब तक पहुँचने के दिन से एक साल बीत जाये।

तथा मुसलामन के लिए, ज़कात को उसके समय से पहले ही निकालने के अध्याय से, रमज़ान के महीने में उसके पास जो कुछ भी माल बचा है उन सब की ज़कात निकालना जाइज़ है, चाहे उस पर साल गुज़र चुका है या उस पर साल नहीं गुज़रा है। इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा और हाकिम ने रिवायत किया है, तथा हाकिम ने उसे सहीह क़रार दिया है, कि अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने "अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपने सदक़े (ज़कात) को उसके समय आने से पहले ही देने के बारे में प्रश्न किया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें इस बारे में रूख्सत (अनुमति) प्रदान कर दी।" इस हदीस को अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 545) में हसन कहा है।

और यह इस बात से अधिक आसान है कि इंसान हर प्राप्त होने वाले धन का स्थायी रूप से एक साल निर्धारित करे ताकि कहीं ऐसा न हो कि उस पर माल एक दूसरे में दाखिल हो जाये और उसके ऊपर हिसाब सन्दिग्ध हो जाये। जिसके कारण उसके ऊपर ज़कात के माल में से कोई चीज़ दाखिल हो जाये, या वह संदेह और तंगी में पड़ जाये कि उसने पूरे माल की ज़कात निकाली है या नहीं ? तथा प्रश्न संख्या (26113) देखिये।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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