गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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हज्ज करने के लिए पति से अनुमति लेना

प्रश्न

क्या महिला के लिए हज्ज करना जायज़ है भले ही उसके पति ने उसे अनुमति न प्रदान की हो?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यदि हज्ज उसके ऊपर अनिवार्य है और उसके पति ने उसे उससे रोक दिया है, तो वह हज्ज करेगी भले ही उसके पति ने उसे अनुमति नहीं दी है। तथा उसके पति के लिए उसे अनिवार्य हज्ज से रोकना जायज़ नहीं है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने ‘‘अल-मुग्नी’’ (5/35) में फरमाया :

‘‘पुरूष के लिए अपनी पत्नी को इस्लाम के हज्ज से रोकने का अधिकार नहीं है। यही कथन नखई, इसहाक़, अबू सौर और असहाबुर-राय का है, और यही इमाम शाफई के दो कथनों में से सही कथन है, क्योंकि वह एक अनिवार्य (हज्ज) है, अतः उसके लिए उसे, रमज़ान के रोज़े और पाँच दैनिक नमाज़ों के समान, उससे रोकने का अधिकार नहीं है। तथा महिला के लिए इस बारे में उससे अनुमति लेना मुस्तहब (वांछनीय) है। इमाम अहमद ने स्पष्टता के साथ यही बात कही है। यदि उसने अनुमति प्रदान कर दी तो ठीक है अन्यथा वह उसकी अनुमति के बिना ही हज्ज के लिए निकलेगी। जहाँ तक स्वैच्छिक हज्ज की बात है तो वह उसे उससे रोक सकता है।

इब्नुल मुंज़िर कहते हैं : जिन विद्वानों से मैंने ज्ञान अर्जित किया है उन सब की इस बात पर सर्वसहमति है कि वह (पति) उसे (पत्नी को) स्वैच्छिक हज्ज के लिए निकलने से रोक सकता है। ऐसा इसलिए कि पति का हक़ अनिवार्य है, अतः वह (पत्नी) उसे ऐसी चीज़ के कारण नहीं छोड़ सकती जो अनिवार्य नहीं है।‘’ संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया : यदि पति अपनी पत्नी को हज्ज से रोक दे तो क्या वह गुनाहगार (पापी) होगा?

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

‘’हाँ, वह गुनाहगार होगा यदि उसने अपनी पत्नी को ऐसे हज्ज से रोका है जिसकी शर्तें पूरी थीं, तो वह पापी है, अर्थात यदि उस (पत्नी) ने कहा कि : यह महरम है, यह मेरा भाई है जो मेरे साथ हज्ज करेगा, और मेरे पास खर्च उपलब्ध है, मैं आपसे एक पैसा भी नहीं मांगती, और उसने अनिवार्य हज्ज नहीं किया है तो उस (पति) के लिए उसे अनुमति प्रदान करना अनिवार्य है। यदि उसने ऐसा नहीं किया तो वह उसकी अनुमति के बिना ही हज्ज करेगी, सिवाय इसके कि उसे इस बात का डर हो कि वह उसे तलाक़ दे देगा, तो ऐसी स्थिति में वह क्षम्य समझी जाएगी।‘’ संपन्न हुआ

‘‘फतावा इब्ने उसैमीन’’ (21/115)

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर