गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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ऐसी महिलाएँ जिनसे एक स्थिति में शादी करना जायज़ है और दूसरी स्थिति में नहीं

प्रश्न

क्या इस्लाम में ऐसे मामले हैं जहाँ एक महिला से एक स्थिति में शादी करना जायज़ है और उसी महिला से दूसरी स्थिति में शादी करना जायज़ नहीं हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जी हाँ, ऐसे मामले हैं। निम्न में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो इसको स्पष्ट करते हैं :

1 – किसी अन्य पति (के तलाक़ या मौत) से इद्दत बिताने वाली औरत से शादी करना हराम है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

ولا تعزموا عقدة النكاح حتى يبلغ الكتاب أجله

البقرة: 235

“तथा विवाह का अनुबंध पक्का न करो, यहाँ तक कि लिखा हुआ हुक्म अपनी अवधि को पहुँच जाए।” [सूरतुल-बक़रह : 235] (अर्थात् इद्दत समाप्त हो जाए)।

इसमें हिकमत यह है कि इस बात की संभावना है कि वह महिला (पहले पति से) गर्भवती हो, जिसके परिणामस्वरूप “पानी” (शुक्राणु) मिश्रित हो जाएगा और वंश संदिग्ध हो जाएगा। (यदि इद्दत खत्म होने से पहले उससे शादी की गई)।

2 - व्यभिचारिणी से विवाह करना हराम है यदि यह ज्ञात हो कि उसने व्यभिचार किया है जब तक कि वह तौबा न कर ले और उसकी इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) समाप्त हो जाए। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह फरमाता है :

والزانية لا ينكحها إلا زان أو مشرك وحرم ذلك على المؤمنين

“तथा व्यभिचारिणी से नहीं विवाह करेगा, परंतु कोई व्यभिचारी अथवा बहुदेववादी। और यह ईमान वालों पर हराम (निषिद्ध) कर दिया गया है।” (सूरतुन-निसा : 3).

3 - एक पुरुष के लिए उस महिला से शादी करना हराम है जिसे उसने तीन बार तलाक़ दिया है, जब तक कि दूसरा पति उसके साथ एख वैध विवाह में संभोग न कर ले, क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है :   

الطلاق مرتان ... فإن طلقها، فلا تحل له من بعد حتى تنكح زوجاً غيره

“यह तलाक़ दो बार है ... फिर यदि वह उसे (तीसरी) तलाक़ दे दे, तो उसके बाद वह उसके लिए ह़लाल (वैध) नहीं होगी, यहाँ तक कि उसके अलावा किसी अन्य पति से विवाह करे...” (सूरतुल-बक़रा : 229-230).

4 - उस महिला से शादी करना हराम है जो [हज्ज या उम्रा के] एहराम की अवस्था में है जब तक कि वह एहराम की अवस्था से बाहर न निकल जाए।

5 - एक ही समय में दो बहनों से शादी करना हराम है, क्योंकि अल्लाह का फरमान है :   وأن تجمعوا بين الأختين 

“(तुमपर हराम कर दिया गया है) ... और यह कि तुम दो बहनों को (निकाह में) एकत्रित करो।” (सूरतुन-निसा : 23). इसी तरह एक महिला और उसकी फूफी (बुआ) तथा एक महिला और उसकी ख़ाला (मौसी) से एक ही समय में शादी करना भी मना है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “किसी महिला और उसकी फूफी को या किसी महिला और उसकी खाला को एक निकाह में एकत्रित न किया जाए।” (सहीह बुखारी : 5111, सहीह मुस्लिम : 1408)। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसके पीछे का कारण (हिकमत) स्पष्ट करते हुए फरमाया : “निःसंदेह यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम अपनी रिश्तेदारी के बंधन को तोड़ दोगे।” और ऐसा इसलिए है क्योंकि सह-पत्नियों के बीच ईर्ष्या होती है। यदि उनमें से एक दूसरे के रिश्तेदारों में से है, तो उनके बीच रिश्तेदारी का बंधन कट जाएगा। लेकिन अगर उस औरत को तलाक़ दे दिया गया है और उसकी इद्दत खत्म हो गई है, तो उसकी बहन, फूफी और ख़ाला का निकाह हलाल हो जाता है, क्योंकि निषेध का कारण समाप्त हो गया।

6 - एक समय में चार से अधिक महिलाओं से विवाह करना जायज़ नहीं है, क्योंकि अल्लाह का फरमान है :

فانكحوا ما طاب لكم من النساء مثنى وثلاث ورباع

النساء: 3

“तो अन्य औरतों में से जो तुम्हें पसंद हों, दो-दो, या तीन-तीन, या चार-चार से विवाह कर लो।” (सूरतुन-निसा : 3).

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चार से अधिक महिलाओं से शादी करने वालों को इस्लाम में प्रवेश करने पर यह आदेश दिया कि वे उनमें से चार से अधिक को छोड़ दें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: “अल-मुलख़्ख़स अल-फिक़्ही” लिफज़ीलतिश-शैख़ सालेह बिन फौज़ान अल-फौज़ान