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यमन की एक महिला ने अपनी मृत्यु से पहले अपने वारिसों को वसीयत किया कि वे उसके निजी धन से उसकी ओर से हज्ज करवायें, तो क्या इस औरत की तरफ से ऐसे लोगों की के द्वारा हज्ज करना जाइज़ है जो जद्दा शहर में हैं ॽ और क्या वह जद्दा में अपने घर से एहराम बांधे गा, या यमन वालों के तटीय मीक़ात पर जायेगा और वहाँ से एहराम बांधे गा, या कि उस व्यक्ति का जो इस महिला की ओर से हज्ज करेगा उसका यमन का होना अनिवार्य है ॽ अर्थात क्या उसका हज्ज के लिए निकलना यमन से होना चाहिए ॽ और क्या यह अनिवार्य है कि यह हज्ज करने वाला इस वसीयत वाली औरत के शहर का हो ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रतिनिधि के ऊपर यह अनिवार्य नहीं है कि वह उसी व्यक्ति के शहर (देश) से हज्ज करे जिसकी ओर से वह हज्ज कर रहा है, और न यहकि वह उसकी मीक़ात से एहराम बांधे, बल्कि प्रतिनिधि स्वयं अपने मीक़ात से एहराम बांधे गा, और इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है कि वह यमन की एक महिला की ओर से जद्दा से हज्ज करे, और वह प्रतिनिधि जद्दा से एहराम बांधे गा।
तथा इफ्ता की स्थायी समिति से अफ्रीक़ा के एक आदमी के बारे में प्रश्न किया गया जो अपनी माँ की तरफ से किसी व्यक्ति को हज्ज करने के लिए नियुक्त करना चाहता है, तो समिति ने उत्तर दिया : “उपर्युक्त व्यक्ति के लिए जाइज़ है कि वह मक्का या उसके अलावा अन्य स्थान से किसी भरोसेमंद आदमी को प्रतिनिधि बना दे जो उसकी माँ की तरफ से हज्ज करे, यदि उसकी माँ मुत्यु पा चुकी है, या वह बुढ़ापा (वयोवृद्धि) के कारण या ऐसी बीमारी की वजह से जिस से स्वस्थ होने की आशा नहीं है, स्वयं हज्ज करने में असमर्थ है।
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, आपकी संतान और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।” अंत हुआ
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति