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अगर किसी मुसलमान पर कोई विपत्ति आती है, तो हम कैसे जान सकते हैं कि यह उसके पापों की सज़ा है या उसके दर्जे को बढ़ाने के लिए एक परीक्षा है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
क़ुरआन और सुन्नत के अनुसार, विपत्तियों और परीक्षणों के दो प्रत्यक्ष कारण हैं – अल्लाह की अपने निर्णय और नियति में हिकमत के अलावा – :
पहला कारण : मनुष्य द्वारा किए गए पाप और अवज्ञा के कार्य, चाहे वे कुफ्र (अविश्वास) हों, या साधारण पाप हों, या कोई बड़ा पाप हो। उनके कारण सर्वशक्तिमान अल्लाह उस व्यक्ति को बदला और तत्काल दंड के रूप में विपत्ति से पीड़ित करता है।
अल्लाह तआला फरमाता है :
وَمَا أَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَفْسِكَ
النساء/79
“तथा तुम्हें जो बुराई पहुँचती है, वह ख़ुद तुम्हारे (बुरे कर्मों के) कारण है।” [सूरतुन-निसा : 79]। टीकाकारों ने कहा : यानी, तुम्हारे पाप के कारण।
तथा महिमावान अल्लाह ने फरमाया :
وَمَا أَصَابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَنْ كَثِيرٍ
الشورى/30
“तथा जो भी विपत्ति तुम्हें पहुँची, वह उसके कारण है जो तुम्हारे हाथों ने कमाया। तथा वह बहुत-सी चीज़ों को क्षमा कर देता है।” [सूरतुश-शूरा : 30]। देखिए : “तफ़सीरुल-कुरआन अल-अज़ीम” (2/363)
तथा अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“जब अल्लाह अपने किसी बंदे का भला चाहता है, तो वह उसके लिए इस दुनिया ही में तुरंत सज़ा दे देता है, और जब अल्लाह अपने किसी बंदे का बुरा चाहता है तो उसके पापों की सज़ा को रोके रखता है, यहाँ तक कि क़ियामत के दिन उसे उसकी पूरी सज़ा देगा।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2396) ने रिवायत किया है और इसे हसन कहा है और अल्बानी ने “सहीह अत-तिर्मिज़ी” में इसे सहीह कहा है।
दूसरा कारण : अल्लाह तआला धैर्यवान मोमिन के पद को बढ़ाना चाहता है, इसलिए वह उसे विपत्ति से पीड़ित करके परखता है ताकि वह उससे संतुष्ट हो और धैर्य से काम ले, फिर उसे आख़िरत में धैर्य रखने वालों का बदला दिया जाएगा, और अल्लाह के पास सफल लोगों में से दर्ज किया जाएगा। विपत्ति नबियों और नेक लोगों के साथ भी लगी रही और उसने उन्हें नहीं छोड़ा। अल्लाह ने इसे उनके लिए एक सम्मान बना दिया जिसके माध्यम से वे जन्नत में उच्च पद प्राप्त करेंगे।
इसीलिए सहीह हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है : “यदि किसी बंदे के लिए अल्लाह की ओर से एक ऐसा दर्जा निर्धारित कर दिया गया होता है, जिसे वह अपने कर्मों से प्राप्त नहीं कर पाता, तो अल्लाह उसके शरीर, या उसके धन या उसकी संतान में उसका परीक्षण करता है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3090) ने रिवायता किया है और अलबानी ने “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (संख्या : 2599) में इसे सहीह कहा है।
अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “बड़ा प्रतिफल बड़ी परीक्षाओं के साथ आता है। और जब अल्लाह किसी क़ौम से प्यार करता है, तो वह उनकी परीक्षा लेता है। फिर जो संतुष्ट होता है, वह उसकी प्रसन्नता प्राप्त करता है, तथा जो कोई इससे क्रोधित होता है, उसके लिए क्रोध है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2396) ने रिवायत किया है और हसन कहा है तथा शैख अलबानी ने “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (संख्या/146) में सहीह कहा है।
उक्त दोनों कारणों का उल्लेख आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में एक साथ किया गया है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मोमिन को एक काँटा चुभता या उससे बड़ी कोई तकलीफ़ पहुँचती है, तो अल्लाह उसके कारण उसका एक दर्जा बढ़ा देता है, या उसके कारण उसका एक पाप दूर कर देता है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5641) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2573) ने रिवायत किया है।
फिर इन दोनों कारणों का संयुक्त होना और एक साथ पाय जाना उन रूपों से अधिक है जिनमें उनमें से प्रत्येक अकेले पाया जाता है :
क्या तुम नहीं देखते कि जिस किसी को अल्लाह उसके पापों के कारण विपत्ति से ग्रस्त करके आज़माए और वह उसे धैर्य और कृतज्ञता के साथ सहन करे, तो सर्वशक्तिमान अल्लाह उसके पापों को क्षमा कर देगा, जन्नत में उसका दर्जा बढ़ा देगा और उसे उन लोगों का प्रतिफल देगा जो धैर्यवान हैं और उसके प्रतिफल की आशा रखने वाले हैं।
इसी प्रकार, जिस किसी को अल्लाह विपत्ति से इसलिए पीड़ित करता है ताकि वह उस उच्च पद को प्राप्त कर सके जो अल्लाह ने जन्नत में उसके लिए निर्धारित कर रखा है, तो उसके पिछले पाप क्षमा कर दिए जाते हैं और इसे दुनिया में उसके लिए उसपर बदला समझा जाता है। इसलिए उसके लिए आख़िरत में बदला दोहराया नहीं जाएगा। जैसा कि कुछ रसूलों और नबियों के साथ ऐसा ही हुआ, जैसे आदम अलैहिस्सलाम और यूनुस अलैहिस्लाम : जब महिमावान अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत से निकालकर परीक्षा ली, तथा यूनुस बिन मत्ता अलैहिस्सलाम को मछली के पेट में डुबोकर कर परीक्षा ली। तो अल्लाह ने उनके धैर्य और अल्लाह से प्रतिफल की आशा रखने के कारण, इस परीक्षा के द्वारा उनके पद को ऊँचा कर दिया। तथा यह उस अवहेलना के लिए प्रायश्चित बन गई जो उनमें से प्रत्येक से हुई थी।
इसका प्रमाण यह है कि सांसारिक बदला आख़िरत में दिए जाने वाले बदला से अलग नहीं है, तथा इन दोनों कारणों का उल्लेख कई प्रामाणिक हदीसों में एक साथ किया गया है, जिनमें से एक सा’द बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्होंने कहा : “मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, लोगों में से सबसे कठिन परीक्षा किसकी होती है? आपने फरमाया : “अंबिया अलैहिमुस्सलाम की, फिर दूसरे सबसे अच्छे और फिर अच्छेतर लोगों की। चुनाँचे मनुष्य का उसकी धार्मिक प्रतिबद्धता के स्तर के अनुसार परीक्षा ली जाती है। यदि उसकी धार्मिक प्रतिबद्धता ठोस है, तो उसकी परीक्षा अधिक कठोर होगी, लेकिन यदि उसकी धार्मिक प्रतिबद्धता में कोई कमजोरी है, तो उसकी धार्मिक प्रतिबद्धता के स्तर के अनुसार उसकी परीक्षा ली जाएगी। एक व्यक्ति पर निरंतर विपत्ति आती रहती है यहाँ तक कि उसे इस अवस्था में छोड़ती है कि वह धरती पर इस हाल में चलता है कि उसपर कोई पाप नहीं होता।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2398) ने रिवायत करके “हसन सहीह” कहा है।
हालाँकि, इन दो कारणों में से एक कारण दूसरे कारण की तुलना में कुछ प्रकार के परीक्षणों में अधिक स्पष्ट हो सकता है। इसे उस विपत्ति से संबंधित परिस्थितियों के माध्यम से समझा जा सकता है :
यदि पीड़ित व्यक्ति काफ़िर है, तो उसकी विपत्ति उसके पद को बढ़ाने के लिए नहीं हो सकती है, क्योंकि क़ियामत के दिन अल्लाह के निकट काफ़िर का कोई महत्व नहीं होगा। लेकिन उसमें दूसरों के लिए एक सीख और उपदेश हो सकता है, कि वे वैसा न करें जैसा उसने किया था। तथा यह उसके लिए इस दुनिया में अल्लाह की तात्कालिक सज़ा हो सकती है, जो उस (सज़ा) के अलावा है जो अल्लाह ने उसके लिए आख़िरत में रख छोड़ी है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया :
أَفَمَنْ هُوَ قَائِمٌ عَلَى كُلِّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ وَجَعَلُوا لِلَّهِ شُرَكَاءَ قُلْ سَمُّوهُمْ أَمْ تُنَبِّئُونَهُ بِمَا لا يَعْلَمُ فِي الأرْضِ أَمْ بِظَاهِرٍ مِنَ الْقَوْلِ بَلْ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مَكْرُهُمْ وَصُدُّوا عَنِ السَّبِيلِ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ * لَهُمْ عَذَابٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الآخِرَةِ أَشَقُّ وَمَا لَهُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ وَاقٍ
الرعد /33-34
‘‘तो क्या वह जो प्रत्येक प्राणी के कार्यों का संरक्षक है (वह उपासना के अधिक योग्य है या ये मूर्तियाँ?) और उन्होंने अल्लाह के कुछ साझी बना लिए हैं। आप कहिए कि उनके नाम बताओ। या क्या तुम उसे उस चीज़ की सूचना देते हो, जिसे वह धरती में नहीं जानता, या केवल ऊपर ही ऊपर बातें कर रहे हो? बल्कि उन लोगों के लिए जिन्होंने कुफ़्र किया, उनका छल सुंदर बना दिया गया और वे सीधे रास्ते से रोक दिए गए। और जिसे अल्लाह पथभ्रष्ट कर दे, फिर उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं। उनके लिए एक यातना सांसारिक जीवन में है और निश्चय आख़िरत की यातना अधिक कड़ी है। और उन्हें अल्लाह से कोई भी बचाने वाला नहीं।” (सूरतुर-रा’द : 33-34)
लेकिन अगर पीड़ित व्यक्ति कोई मुसलमान है जो खुलेआम पाप करने वाला है, या स्पष्ट रूप से अवज्ञा करने वाला पापी है, तो सबसे अधिक संभावना है कि उसे इस विपत्ति के द्वारा बदला और सज़ा दी जा रही है, क्योंकि पापों का प्रायश्चित करना किसी व्यक्ति के पद में वृद्धि करने से पहले आता है, और पापी को अपने पद में वृद्धि की अपेक्षा अपने पापों के प्रायश्चित की अधिक आवश्यकता है।
दूसरी ओर, यदि मुसलमान एक आज्ञाकारी, नेक उपासक है, उसके और अल्लाह के बीच सच्ची बंदगी (भक्ति), कृतज्ञता, गुणगान, उसकी ओर पलटने और उसके प्रति समर्पित होने के अलावा कुछ भी नहीं है : तो यह सबसे अधिक संभावना है कि यह विपत्ति सम्मान और पद में वृद्धि के लिए है। और लोग पृथ्वी पर अल्लाह के गवाह हैं। यदि वे उसमें धार्मिकता को जानते पहचानते हैं, तो वे उसे अल्लाह के निकट उच्च पद की खुशखबरी दे सकते हैं यदि वह अपनी विपत्ति पर धैर्य रखता है।
लेकिन यदि पीड़ित व्यक्ति नाराज़गी, असंतोष और घबराहट व्यक्त करता है, तो यह नहीं सोचा जा सककता कि उसकी विपत्ति उसके लिए उसके पद को बढ़ाने के लिए अल्लाह की ओर से एक सम्मान है, जबकि अल्लाह जानता है कि वह धैर्य और संतोष का प्रदर्शन नहीं करेगा। इसलिए इस मामले में सबसे अधिक संभावना यह है कि यह बदला और सज़ा के तौर पर है।
कुछ सदाचारियों का कहना है : “दंड और बदला के रूप में विपत्ति की निशानी : विपत्ति आने के समय धैर्य का न होना, घबराहट व बेचैनी का प्रदर्शन करना और लोगों से शिकायत करना है।
जबकि पापों के प्रायश्चित और शुद्धिकरण के रूप में परीक्षण की निशानी ; बिना किसी शिकायत, घबराहट या अधीरता के, तथा आदेशों का पालन करने और आज्ञाकारिता के काम करने में भारीपन (बोझ) के बिना, सुंदर धैर्य का पाया जाना है।
तथा किसी व्यक्ति के पद को ऊँचा करने के लिए परीक्षण की निशानी ; संतोष और स्वीकृति, आत्मा की शांति और नियति के प्रति राहत व सुकून होना यहाँ तक कि विपत्ति छट जाए।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इस प्रकार, ये केवल काल्पनिक साक्ष्य हैं, जिन पर आदमी विचार कर सकता है; ताकि वह विपत्तियों और परीक्षणों में अल्लाह की कुछ हिकमत के बारे में जान सके। इसलिए नहीं कि वह अपने बारे में या अल्लाह के पीड़ित बंदों के बारे में निश्चित रूप से यह हुक्म लगाए।
शायद इस पूरे विवरण से अधिक महत्वपूर्ण यह कहना है कि : व्यावहारिक लाभ जिसके बारे में बंदे को सोच-विचार करना चाहिए वह यह है कि हर मुसीबत और आज़माइश उसके लिए अच्छी और पुण्य का कारण है अगर वह सब्र करे और अल्लाह से सवाब की आशा रखे, तथा हर मुसीबत और आज़माइश उसके लिए बुरी है, अगर वह घबराहट व व्याकुलता और नाराज़गी (असंतोष) प्रकट करे। अगर वह अपने आपको मुसीबतों को झेलने और अल्लाह के निर्णय से संतुष्ट होने पर प्रशिक्षित कर ले, तो उसके बाद उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसे मुसीबत का कारण मालूम है या नहीं। बल्कि उसके लिए हमेशा यही बेहतर है कि वह अपने आपको पाप और लापरवाही का दोष दे और उसमें अपनी कोई गलती या कमी ढूंढ़े। क्योंकि हम सभी गलतियाँ करने वाले हैं। हममें से ऐसा कौन है जिसने अल्लाह के प्रति अपने कर्तव्यों में लापरवाही न बरती हो? अगर अल्लाह ने मुसलमानों को उहुद के दिन बड़े नरसंहार से पीड़ित किया, भले ही वे पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथी थे और रसूलों और नबियों के बाद सबसे अच्छे लोग थे, क्योंकि उन्होंने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेश के खिलाफ़ काम किया था, तो उसके बाद कोई व्यक्ति अपने बारे में कैसे सोच सकता है कि वह अपने ऊपर आने वाली हर मुसीबत में उच्च पद का हकदार है? इबराहीम बिन अदहम रहिमहुल्लाह – जब तेज़ हवाएँ और आकाश में उलट-पलट (बादल बनना) देखते – तो कहते : यह मेरे पापों के कारण है; अगर मैं तुम्हारे बीच से निकल जाऊँ, तो यह तुम पर नहीं पड़ेगा।
तो हम लापरवाह पापियों का क्या हाल होना चाहिए?
फिर, इन सबसे भी अधिक औचित्य और महत्वपूर्ण यह है कि बंदा हमेशा और सभी परिस्थितियों में अपने पालनहार के प्रति अच्छा गुमान (सकारात्मक सोच) रखे; क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह की तरफ़ से जो कुछ भी आता है, वह अच्छा होता है। तथा वही इस योग्य है कि उससे डरा जाए और वही इस योग्य है कि क्षमा करे।
हम सर्वशक्तिमान अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हम पर दया करे और हमें क्षमा कर दे, हमें वह सिखाए जिससे हमें लाभ हो और हमें हमारी विपत्तियों में अज्र व सवाब प्रदान करे। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला है और प्रार्थनाओं का उत्तर देने वाला है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।