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रोज़े की क़ज़ा करने से पहले क़ज़ा को विलंबित करने का फिद्या देने का हुक्म

27-07-2023

प्रश्न 122319

एक महिला पूछ रही है कि उसपर रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना और ग़रीबों को खाना खिलाना अनिवार्य है, तो क्या वह प्रति दिन के लिए (अलग-अलग) खाना खिलाएगी, या छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करने के बाद सभी दिनों के लिए एक ही बार में खाना खिलाएगीॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जिस व्यक्ति ने रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा को अगले रमज़ान के शुरू होने तक विलंबित कर दिया, तो यदि वह बीमारी, गर्भावस्था या स्तनपान और इसी तरह के अन्य कारणों से था, तो उसपर छूटे हुए दिनों की क़ज़ा करने के अलावा कुछ अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर वह बिना किसी कारण (उज़्र) के था, तो उसने गुनाह किया है और उसपर छूटे हुए दिनों की क़ज़ा करना ज़रूरी है, तथा क्या उसपर फ़िद्या देना ज़रूरी है या नहींॽ इसके बारे में विद्वानों के बीच मतभेद है। जमहूर विद्वानों का मत है कि फिद्या अनिवार्य है और यह हर दिन के लिए एक गरीब को खाना खिलाना है। तथा प्रश्न संख्या : (26865) के उत्तर में, हमने कहा है कि राजेह (प्रबल) दृष्टिकोण यह है कि फ़िद्या अनिवार्य नहीं है, लेकिन जिसने एहतियात के तौर पर फ़िद्या निकाल दिया, तो अच्छा है।

यह फ़िद्या - उनके अनुसार जो इसके पक्षधर हैं - अगला रमज़ान शुरू होते ही इनसान पर अनिवार्य हो जाता है। और वह उसे उसी समय निकाल सकता है, तथा वह उसे रोज़ों की क़ज़ा के साथ भी विलंबित कर सकता है। लेकिन अपने दायित्व का निर्वहन करने के लिए उसमें जल्दी करना बेहतर है।

“अल-मौसूअह अल-फिक़्हिय्यह” (28/76) में आया है :

“रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा विलंब के साथ है, लेकिन अधिकांश विद्वानों (जमहूर) ने इसे इस शर्त पर कि क़ज़ा का समय छूटने न पाए, अगला रमज़ान शुरू होने तक सीमित कर दिया है। क्योंकि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : “मेरे ऊपर रमज़ान के छूटे हुए रोज़े होते थे, तो मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रति अपने कर्तव्यों के कारण उन्हें शाबान ही में क़ज़ा कर पाती थी।” यह नमाज़ के समान है, जिसे अगली नमाज़ का समय आने तक विलंबित नहीं किया जाता।

तथा अधिकांश विद्वानों के अनुसार, आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की इस हदीस के कारण, रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना अगला रमज़ान आने तक बिना किसी उज़्र के विलंबित करना जायज़ नहीं है, (और ऐसा करना पाप का भागी है)। यदि किसी व्यक्ति ने इसे विलंबित कर दिया, तो उसपर फिद्या देना अनिवार्य है : प्रत्येक दिन के लिए एक गरीब व्यक्ति को खाना खिलाना है, क्योंकि इब्ने अब्बास, इब्ने उमर और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुम से वर्णित है कि उन्होंने उस व्यक्ति के बारे में कहा, जिसपर छूटे हुए रोज़े की क़ज़ा अनिवार्य थी, परंतु उसने अगले रमज़ान के आने तक रोज़े नहीं रखे : "उसपर क़ज़ा करना और हर दिन के लिए एक गरीब को खाना खिलाना अनिवार्य है।” यह फिद्या उसे विलंबित करने के लिए है .... जबकि रोज़े की क़ज़ा करने से पहले, उसके साथ और क़ज़ा के बाद खाना खिलाना जायज़ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

अल-मिरदावी अल-हंबली रहिमहुल्लाह ने कहा :

“वह कफ़्फ़ारा के रूप में पर्याप्त भोजन खिलाएगा। तथा रोज़े की क़ज़ा करने से पहले, उसके साथ और उसके बाद खाना खिलाना जायज़ है। अल-मज्द – अर्थात् : इब्ने तैमिय्यह शैखुल-इस्लाम के दादा - ने कहा : हमारे निकट सबसे अच्छा उसे पहले ही देना है; अच्छाई की ओर जल्दी करने और देरी की बुराइयों से छुटकारा हासिल करने के तौर पर।”  अल-इंसाफ़ (3/333) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

रोज़ों का क़ज़ा
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