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मेरा प्रश्न तहारत (पवित्रता) की हालत में जुर्राबों पर मसह करने से संबंधित है, इब्ने खुज़ैमा ने जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सफवान बिन अस्साल रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीसे में वर्णित है, फरमाया: हमें मोज़ों पर मसह करने का आदेश दिया गया है यदि हम ने उन्हें पवित्रता (वुज़ू) की हालत में पहना है, मुसाफिर के लिए तीन दिन की अवधि के लिए और निवासी के लिए एक दिन और एक रात की अवधि के लिए।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जहाँ तक मोज़ों या जुर्राबों पर मसह करने की अवधि के आरंभ होने का प्रश्न है तो यह अपवित्र होने (वुज़ू टूटने) के बाद पहली बारे उस पर मसह करने के समय से शुरू होता है, पहली बार मोज़ा पहनने से नहीं शुरू होता है। तथा प्रश्न संख्या (9640) का भी उत्तर देखिये।
जहाँ तक मसह के तरीक़ा का प्रश्न है तो वह यह है कि: अपने दोनों हाथों को पानी से गीला करके उनकी अंगुलियों को दोनों पैरों की अँगुलियों पर रखें, फिर उन्हें अपनी पिंडली तक गुज़ारें, दायें पैर पर दायें हाथ से और बायें पैर पर बायें हाथ से मसह करें, मसह करते समय अपनी अँगुलियों को खुली रखें, और एक से अधिक बार मसह न करें।"देखिये: अल-मुलख्खस अल-फिक़्ही लिल-फौज़ान 1/43.
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया: अर्थात जिस चीज़ का मसह किया जायेगा वह मोज़े के ऊपर का भाग है, वह अपने हाथ को पैर की अँगुलियों के पास से केवल पिंडली तक ले जायेगा, और मसह दोनों हाथों से दोनों पैरों पर एकसाथ किया जायेगा, अर्थात दायें हाथ से दायें पैर पर और बायें हाथ से बायें पैर पर एक ही समय में मसह किया जायेगा,जिस प्रकार कि दोनों कानों का मसह किया जाता है, क्योंकि यही सुन्नत का तरीक़ा है। इसलिए की मुग़ीरा बिन शो'बा रज़ियल्लाहु अन्हु का फरमान है कि: "आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन दोनों पर मसह किया।" और उन्हों ने यह नहीं कहा है कि: दाहिने से शुरू किया, बल्कि यह कहा है कि: उन दोनों पर मसह किया। अतः सुन्नत (हदीस) का प्रत्यक्ष अर्थ यही है। हाँ, यदि मान लिया जाये कि उसका एक हाथ काम नहीं करता है तो वह बायें से पहले दाहिने पैर पर मसह करेगा। बहुत से लोग अपने दोनों हाथों से दाहिने पैर का और दोनो हाथों से बायें पैर का मसह करते हैं, और मेरे ज्ञान के अनुसार उसका कोई आधार नहीं हैं . . . और वह किसी भी तरीक़े पर मोज़े के ऊपर मसह कर लेता है तो वह काफी है किंतु हमारी यह बात अफज़ल (सर्वश्रेष्ठ) के बारे में है।" (अंत) देखिए: फतावा अल-मर-अतुल मुस्लिमा (1/250)
तथा मोज़े के दोनों पक्षों और उसके पीछे का मसह नहीं किया जायेगा, क्योंकि इस बारे में कोई चीज़ वर्णित नहीं है।
शैख इब्ने उसैमीन फरमाते हैं : "कोई कहने वाला कह सकता है कि: प्रत्यक्ष यह होता है कि मोज़े के नीचे का हिस्सा मसह करने के अधिक योग्य है क्योंकि वही मिट्टी और गंदगी से दोचार होता है, किंतु मनन-चिंतन करने से हमें ज्ञात होता है कि मोज़े के ऊपर के हिस्से पर मसह करना ही सर्वश्रेष्ठ है और इसी पर बुद्धि का भी तर्क है, इसलिए कि इस मसह का उद्देश्य सफाई व सुथराई नहीं है, बल्कि इसका मक़सद इबादत करना है, और यदि हम मोज़े के नीचे के हिस्से का मसह करें, तो यह उसे प्रदूषित कर देगा।"
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है। देखिये: इब्ने उसैमीन की किताब अश्शरहुल मुम्ते 1/213.
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद