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अक्सर जब मैं जमाअत के साथ नमाज़ पूरी कर लेता हूँ और नमाज़ के बाद ज़िक्र और सुन्नतों को पढ़ना समाप्त कर लेता हूँ, तो मैं मस्जिद में बैठ जाता हूँ क्योंकि इससे मुझे आराम और इत्मीनान हासिल होता है। क्या (बिना कोई ज़िक्र पढ़े या कोई इबादत किए) मेरे इस बैठने का कोई सवाब हैॽ या यह मेरे किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बैठने जैसा हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जब नमाज़ी अपनी नमाज़ समाप्त कर लेता है और अपने उस स्थान पर बैठा रहता है जहाँ उसने नमाज़ पढ़ी है, तो फ़रिश्ते उसके लिए क्षमा की प्रार्थना करते हैं, जैसा कि उस हदीस में उल्लेख किया गया है, जिसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 445) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 649) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “फ़रिश्ते तुममें से किसी के लिए तब तक दुआ करते हैं जब तक वह उस जगह पर रहता है जहाँ उसने नमाज़ अदा की है, जब तक कि उसका वुज़ू न टूटे। वे कहते हैं : ऐ अल्लाह! इसे क्षमा कर दे, ऐ अल्लाह! इसपर दया कर।”
तथा बुखारी और मुस्लिम की एक अन्य रिवायत में है : “जब तक कि वहाँ उसका वुज़ू न टूटे, और जब तक वह वहाँ कष्ट न पहुँचाए।”
इसका प्रत्यक्ष अर्थ : यह है कि यह पुण्य उसके लिए है जो बैठता है और उसका वुज़ू नहीं टूटता और ग़ीबत आदि से किसी को कष्ट नहीं देता है, चाहे वह अल्लाह के ज़िक्र में व्यस्त हो या न हो। और अल्लाह का अनुग्रह बहुत विशाल और उसकी उदारता बहुत महान है। इसलिए उम्मीद है कि आप इन शा अल्लाह इस सवाब को प्राप्त करेंगे। लेकिन यदि आप अल्लाह का ज़िक्र करने या क़ुरआन पढ़ने में व्यस्त रहते हैं, तो यह अधिक पूर्ण और बेहतर है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।