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क्या जो व्यक्ति अपने सेल फोन (मोबाइल) पर रुक़्या (झाड़-फूँक की दुआएँ) सुनता है, वह उन लोगों के अंतर्गत आता है जो रुक़्या (झाड़-फूँक) करवाते हैं, या कि इसमें केवल वही व्यक्ति आता है जो राक़ी (झाड़-फूँक करने वाले) के पास जाता है, जैसा कि उस हदीस में आया है जिसमें कहा गया है : “मेरी उम्मत के सत्तर हज़ार लोग बिना हिसाब व किताब के स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। वे ऐसे लोग हैं जो रुक़्या (झाड़-फूँक) नहीं करवाते, अपशकुन नहीं लेते, न दाग़ने के द्वारा उपचार करते हैं और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैंॽ”
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
मुस्लिम (हदीस संख्या : 218) ने इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सस ने फरमाया : "मेरी उम्मत के सत्तर हजार लोग बिना हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। उन्होंने कहा: वे कौन हैं, ऐ अल्लाह के रसूलॽ आप ने फरमाया : "वे ऐसे लोग हैं जो दूसरों को अपने लिए रुक़्या करने को नहीं कहते हैं, न वे अपशकुन लेते है, न वे दाग़ने के द्वारा उपचार करते हैं और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।"
तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 220) ही में इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि : "वे रुक़्या नहीं करते हैं।'' विद्वानों ने इस शब्द के विषय में यह कहा है कि यह वर्णनकर्ता की ओर भ्रम हुआ है, और यह कि सही शब्द यह है किः ''वे दूसरों को अपने लिए रुक़्या करने को नहीं कहते हैं"।
शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने कहा :
''आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह नहीं कहा किः "वे रुक़्या नहीं करते हैं।", यद्यपि यह मुस्लिम की कुछ संदों में वर्णित है जो कि गलत है; क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खुद को और दूसरों को रुक़्या किया है। लेकिन आपने किसी दूसरे से अपने लिए रुक़्या करने के लिए नहीं कहा है। अतः रुक़्या करवाने वालाः दूसरे से अपने लिए दुआ करने की मांग करने वाला होता है। जबकि दूसरे को रुक़्या करने वाले (राक़ी) का मामला इसके विपरीत है; क्योंकि वह उसके लिए दुआ करने वाला होता है।''
''इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम'' (पृष्ठ 488) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा आप रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
''रुक़्या करने वाले और रुक़्या करवाने वाले के बीच अंतर यह है किः रुक़्या करवाने वालाः प्रश्न करने वाला, दूसरे व्यक्ति से मांग करने वाला और अपने दिल से अल्लाह के अलावा किसी और की ओर तवज्जुह करने वाला होता है। जबकि रुक़्या करने वालाः एहसान करनेवाला, और दूसरे को लाभ पहुँचाने वाला होता है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
''अल-मुस्तदरक अला मजमूओ फतावा इब्ने तैमिय्यह'' (1/18)।
इस आधार पर, जो इन सत्तर हज़ार लोगों की विशेषता है, वह यह है किः वे लोग किसी से यह मांग नहीं करते हैं कि वह उन्हें रुक़्या (झाड़-फूँक) करे।
क्योंकि हदीस में वर्णित शब्द (ला यसतर्क़ून) का अर्थ यह है किः वे दूसरों से रुक़्या करने की मांग नहीं करते हैं। परंतु यदि मनुष्य अपने आपको रुक़्या करता है या किसी दूसरे को रुक़्या करता हैः तो इसमें कोई कराहत (आपत्ति) की बात नहीं है।
दूसरा :
जहाँ तक टेप या मोबाइल फोन या अन्य डिवाइस पर रुक़्या सुनने का संबंध है, तो जो हमें प्रतीत होता है यह है कि यह रुक़्या की मांग करने के शीर्षक के अंतर्गत नहीं आता है।
इस तरीक़े से रुक़्या करना, इन शा अल्लाह, लाभदायक है। और बहुत से लोग इससे लाभान्वित हुए हैं। यद्यपि सबसे अच्छा यह है कि मनुष्य खुद क़ुरआन पढ़े, या कोई दूसरा उसपर कुरआन पढ़े।
शैख अब्दुल अज़ीज़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने यह फतवा दिया है किः रेडियो से सूरतुल-बक़रा का पाठ करने से शैतान को घर से भगाया जा सकता है।
''मजमूओ फतावा शैख इब्ने बाज़'' (24/413)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।