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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।सब से पहले :
हक़ बात की जानकारी प्राप्त करने और उसका अनुसरण करने पर आपकी उत्सुकता के हम आभारी हैं, और हम अल्लाह तआला से यह प्रश्न करते हैं कि वह हमें हक़ बात को हक़ के रूप में दिखाये और उसका अनुसरण करने की तौफीक़ (सक्षमता) प्रदान करे, तथा असत्य को बातिल के रूप में दिखाये और उस से बचने की तौफीक़ प्रदान करे।
इस मुद्दे में शुद्ध और ठीक बात यह है कि महिला पर अपने संपूर्ण शरीर को मर्दों से ढक कर और छिपाकर रखना अनिवार्य है। प्रश्न संख्या (21134)देखिये।
दूसरा :
आपका यह कहना कि "बाक़ी मुसलमान महिलाओं ने अपना चेहरा नहीं ढका", सही नहीं है। बल्कि संपूर्ण हिजाब (परदे) का आदेश नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों, आप की बेटियों और मुसलमानों की औरतों के लिए सर्वसामान्य (आम) था। जिसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لأَزْوَاجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَاءِ الْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِنْ جَلابِيبِهِنَّ ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ يُعْرَفْنَ فَلا يُؤْذَيْنَ وَكَانَ اللهُ غَفُورًا رَحِيمًا [ الأحزاب : 59]
"ऐ नबी, आप अपनी बीवियों से और अपनी बेटियों से और मुसलमानों की औरतों से कह दें कि वे अपने ऊपर चादर लटका लिया करें, इस से बहुत जल्द उनकी पहचान हो जाया करेगी फिर वे न सतायी जायेंगी, और अल्लाह तआला क्षमा करने वाला दयावान है।"(सूरतुल अहज़ाब : 59)
तथा अल्लाह तआला का यह फरमान भी है :
وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلا مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَى جُيُوبِهِنَّ [النور : 31]
"मुसलमान औरतों से कहो कि वे भी अपनी निगाहें नीची रखें, और अपने सतीत्व की रक्षा करें, और अपनी ज़ीनत (बनाव सिंघार) का प्रदर्शन न करें, सिवाय इसके जो ज़ाहिर हो जाये, और अपनी गरीबानों पर अपनी ओढ़नियाँ डाले रहें।" (सूरतुन्नूर : 31)
इन दोनों आयतों में जो आदेश दिया गया है वह समस्त मुसलमान औरतों के लिए आम (सर्वसामान्य) है।
इमाम बुखारी ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : "अल्लाह तआला पहले पहल हिज्रत करने वाली औरतों पर दया करे कि जब अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी कि "और अपनी गरीबानों पर अपनी ओढ़नियाँ डाले रहें।",तो उन्हों ने अपनी चादरों को फाड़ कर उनका डुपट्टा बना लिया।"
प्रश्न संख्या (6991) भी देखिये।
अबू दाऊद (हदीस संख्याः 4101) ने उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि जब यह आयत उतरी कि : "वे अपने ऊपर चादर लटका लिया करें।",तो अंसार की औरतें इस हाल में बाहर निकलीं कि गोया कपड़ों के कारण उनके सरों पर कव्वे बैठे हों।" इसे अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में सहीह क़रार दिया है।
चुनांचे मुहाजेरीन और अंसार की औरतों ने इस आदेश का पालन करते हुए अपने चेहरों को ढक लिया।
तीसरा :
जहाँ तक शादी का पैगाम देने वाले का अपनी मंगेतर को देखने का प्रश्न है तो ऐसा करना सुन्नत के अनुरूप है। अबू दाऊद (हदीस संख्याः 1783) ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब तुम में से कोई आदमी किसी औरत को शादी का पैगाम दे, तो अगर वह उस चीज़ को देखने पर सक्षम हो जो उसे उस औरत से शादी करने पर उभारती है तो उसे ऐसा करना चाहिए।" (अर्थात् उसे देख लेना चाहिए) वह कहते हैं : मैं ने एक लड़की को शादी का पैगाम दिया तो मैं उसे छिप कर देखने लगा यहाँ तक कि मैं ने उसके अन्दर उस चीज़ को देख लिया जो मुझे उस से शादी करने पर उभारती थी, फिर मैं ने उस से शादी कर ली।" इस हदीस को अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1832)में हसन क़रार दिया है।
और इब्ने माजा की एक रिवायत में आया है कि वह उस औरत को देखने के लिए उसके बाग में छिप गये।
यह हदीस इस बात का प्रमाण है कि सहाबा की औरतें अपने चेहरों को ढकती थीं; क्योंकि यदि औरतों की आदत अपने चेहरों को खोलने की होती तो फिर उस सहाबी को छिप कर बैठने की ज़रूरत न होती, क्योंकि वह उसे हर जगह देख सकते थे जबकि वह अपने चेहरे को खोले हुए होती। लेकिन चूंकि औरतों की आदत अपने चेहरे को ढकने की थी, इसलिए उन्हे छिपने की आवश्यकता पड़ी। और यह बात सर्वज्ञात है कि जब औरत के पास कोई नहीं होता, तो वह अपने चेहरे को कदापि नहीं ढकती है, जैसेकि वह अपने घर या खेत में हो, जैसाकि इस हदीस में है।