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क्या बहन या माँ द्वारा मांगी गई महँगी चीजों को खरीदना अपव्यय माना जाता है, भले ही ये चीजें खरीदार की शक्ति के भीतर हों और उन्हें खरीदने में उसे कठिनाई न होॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह तआला ने फरमाया :
يَا بَنِي آدَمَ خُذُوا زِينَتَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلَا تُسْرِفُوا إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ [الأعراف : 31].
“ऐ आदम की संतान! हर नमाज़ के समय शोभा धारण करो। तथा खाओ और पियो और फुज़ूलख़र्ची न करो। नि:संदेह अल्लाह तआला फुज़ूलख़र्ची (अपव्यय) करने वालों को पसंद नहीं करता।” (सूरतुल आराफ : 31)
अल्लामा अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“अपव्यय या तो पर्याप्त मात्रा से अधिक सेवन करने और खाद्य पदार्थों के सेवन में ऐसी लोलुपता के द्वारा होता है जो शरीर के लिए हानिकारक होती है, और या तो यह खाद्य पदार्थों, पेय और कपड़ों के सेवन में विलासिता (लक्जरी) और लालित्य की वृद्धि के द्वारा होता है, और या हलाल (अनुमेय) से आगे जाकर हराम (निषिद्ध) के सेवन द्वारा होता है।”
तफ़सीर अस-सा’दी (287) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا * إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِرَبِّهِ كَفُورًا [الإسراء : 26-27] .
“और रिश्तेदार को उसका हक़ दो तथा ग़रीब और मुसाफ़िर को भी, और फुज़ूलख़र्ची (अपव्यय) न करो। निःसंदेह फ़ु़ज़ूलख़र्ची करने वाले शैतानों के भाई हैं और शैतान अपने पालनहार का बड़ा ही कृतघ्न है।” (सूरतुल इस्रा : 26-27)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा :
“जब अल्लाह ने खर्च करने का आदेश दिया, तो उसने अत्यधिक खर्च करने से मना किया, बल्कि खर्च मध्यम होना चाहिए, जैसा कि अल्लाह ने एक दूसरी आयात में फरमाया :
وَالَّذِينَ إِذَا أَنْفَقُوا لَمْ يُسْرِفُوا وَلَمْ يَقْتُرُوا وَكَانَ بَيْنَ ذَلِكَ قَوَامًا [الفرقان: 67] .
“और जो ख़र्च करते हैं तो न अपव्यय करते हैं और न ही तंगी से काम लेते हैं, बल्कि वे इन (दोनों) के बीच मध्य मार्ग पर रहते हैं।” (सूरतुल-फुरक़ान : 67)
फिर अल्लाह ने अपव्यय और हद से अधिक खर्च करने से घृणा दिलाते हुए फरमाय :
إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ [الإسراء : 27] .
“निःसंदेह अपव्यय करने वाले लोग शैतानों के भाई हैं" (सूरतुल इस्रा : 27) अर्थात् : उसमें उनके समान हैं।
इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : अपव्यय : अनुचित चीज़ में खर्च करने को कहते हैं। इसी तरह की बात इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने भी कही है।
मुजाहिद ने कहा : यदि कोई व्यक्ति उचित (सही) चीज़ में अपना सारा धन खर्च कर दे, तो वह अपव्यय करने वाला (व्यर्थ ख़र्च करने वाला) नहीं है। लेकिन यदि वह अनुचित चीज़ में एक मुद्द [छोटी राशि] भी खर्च करता है, तो वह अपव्यय (व्यर्थ ख़र्च) करना है।
क़तादह ने कहा : अपव्यय : अल्लाह की अवज्ञा के कार्यों में, तथा अनुचित चीज़ में और भ्रष्टाचार में ख़र्च करने को कहते हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“तफ़सीर इब्ने कसीर” (5/69)।
अल्लामा अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“अल्लाह तआला फरमाता है :
وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ
“और रिश्तेदार को उसका हक़ दो।” अर्थात रिश्तेदार को सद्व्यवहार और सम्मान में से उसका अनिवार्य एवं मसनून (ऐच्छिक) अधिकार दो। यह अधिकार अलग-अलग स्थितियों, रिश्तेदारों, आवश्यकता होने और न होने और समय के अनुसार भिन्न होता है।
وَالْمِسْكِينَ तथा मिसकीन (ग़रीब) को ज़कात और उसके अलावा से उसका हक़ दो, ताकि उसकी निर्धनता समाप्त हो जाए।
وَابْنَ السَّبِيلِ “और यात्री को” इससे अभिप्राय वह परदेसी है जो अपने देश से कट गया हो। चुनाँचे इन सभी को इतनी मात्रा में धन दिया जाएगा, जिससे देने वाले को नुक़सान न पहुँचे और उचित मात्रा से अधिक न हो। क्योंकि यह अपव्यय है, जिससे अल्लाह ने मना किया है। तथा यह सूचना दी है कि :
إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ
“निःसंदेह फ़ु़ज़ूलख़र्ची करने वाले शैतानों के भाई हैं।” क्योंकि शैतान केवल हर निंदनीय चीज़ की ओर बुलाता है। चुनाँचे वह मनुष्य को कंजूसी करने और ख़र्च न करने के लिए कहता है। फिर यदि वह उसकी बात नहीं मानता है, तो वह उसे अपव्यय करने और व्यर्थ में ख़र्च करने के लिए कहता है। जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान केवल सबसे न्यायसंगत चीज़ का आदेश देता है और उसपर लोगों की प्रशंसा करता है, जैसा कि रहमान के नेक बंदों के विषय में अल्लाह तआला के इस कथन में है :
والذين إذا أنفقوا لم يسرفوا ولم يقتروا وكان بين ذلك قواما
“और जो ख़र्च करते हैं, तो न अपव्यय करते हैं और न ही तंगी (कंजूसी) से काम लेते हैं, बल्कि वे इन (दोनों) के बीच मध्य मार्ग पर रहते हैं।” (सूरतुल-फुरक़ान : 67)” “तफ़सीर अस-सा’दी” (456)।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि अल्लाह ने अपने बंदों को उन खाने, पीने और पहनने की पाक व अच्छी चीज़ों का आनंद लेने की अनुमति दी है, जो उसने उनके लिए उतारी है, और उन्हें रिश्तेदारों के साथ संबंधों को बनाए रखने और गरीबों को देने का आदेश दिया, तथा उन्हें अपने खर्च करने और देने में अपव्यय करने से मना किया है।
जहाँ तक हराम चीज़ पर खर्च करने की बात है, तो वह निश्चित रूप से अपव्यय और धन को व्यर्थ करना है। रही बात अनुमेय चीज़ों पर खर्च करने की, तो उसमें अपव्यय खर्च करने वाले की स्थिति, उसके खर्च करने के स्थान और इसके अलावा समय, स्थान और संभावना के संदर्भ में उसे पेश आने वाली रुकावटों के अनुसार भिन्न होता है।
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
हम सुनते हैं कि अपव्यय (फ़ुज़ूलखर्ची) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है, और यह उसके पास मौजूद धन पर निर्भर करता है, चाहे वह व्यापारी हो या अमीर व्यक्तिॽ
तो उन्होंने जवाब दिया :
“यह बात सही है। अपव्यय एक सापेक्ष मामला है, जिसका उस (खर्च करने के) काम से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि उसका संबंध उस कार्य के करने वाले से है। उदाहरण के लिए : यह एक गरीब महिला है, यदि वह एक अमीर महिला के आभूषण के बराबर आभूषण ग्रहण करती है, तो क्या वह अपव्यय करने वाली हैॽ यदि इस आभूषण को कोई अमीर महिला ग्रहण करती है, तो हम कहेंगे कि : यह अपव्यय नहीं है। और यदि इसे कोई गरीब महिला ग्रहण करती है, तो हम कहेंगे कि : इसमें अपव्यय है। यहाँ तक कि खाने और पीने के संबंध में भी लोग अपव्यय में भिन्न होते हैं : कोई व्यक्ति ग़रीब हो सकता है, अर्थात् : लोगों में से किसी के लिए भोजन की थोड़ी मात्रा पर्याप्त होती है, जबकि दूसरे के लिए वह पर्याप्त नहीं होती है। इसके अलावा, यह इस एतिबार से भी भिन्न होता है कि एक व्यक्ति के पास कभी कोई मेहमान आता है। तो वह उसका सम्मान ऐसे भोजन के साथ करता है, जो उसके घर में आमतौर पर नहीं खाया जाता है। लेकिन इसे अपव्यय नहीं माना जाएगा।
महत्वपूर्ण यह है कि अपव्यय का संबंध कर्ता से है, उस क्रिया से नहीं है, क्योंकि लोग उसमें भिन्न हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“लिक़ाउल बाबिल मफ्तूह़” (88/34)
तथा शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने यह भी फरमाया :
“अपव्यय का मतलब है (ख़र्च करने में) हद से आगे बढ़ना, सीमा पार करना। और अल्लाह तआला ने अपनी पुस्तक में बताया है कि वह अपव्यय करने वालों (ख़र्च में सीमा पार करने वालों) को पसंद नहीं करता है। जब हम यह कहते हैं कि अपव्यय का मतलब हद से आगे बढ़ना है, तो यह अपव्यय भिन्न-भिन्न होता है : चुनाँचे एक चीज़ किसी व्यक्ति के मामले में अपव्यय हो सकती है, जबकि वही चीज़ दूसरे व्यक्ति के मामले में अपव्यय नहीं होती है। एक व्यक्ति, जिसने दो मिलियन (बीस लाख) रियाल की लागत से एक घर खरीदा, उसे छह लाख के फर्नीचर से सुसज्जित किया और एक कार खरीदी, अगर वह अमीर है तो वह अपव्यय करने वाला नहीं है। क्योंकि यह बड़े अमीरों के लिए आसान चीज़ है। लेकिन अगर वह अमीर नहीं है, तो वह अपव्यय करने वाला माना जाएगा, चाहे वह मध्यम वर्ग में से हो या गरीबों में से; क्योंकि कुछ गरीब लोग अपने आपको पूर्ण करना (छवि बनाना) चाहते हैं। इसलिए आप उन्हें इन बड़े महलों को खरीदते हुए, और उन्हें ऐसे महँगे फर्नीचर के साथ सुसज्जित करते हुए पाते हैं। और हो सकता है कि उसने उनमें से कुछ लोगों से उधार लिया हो। इसलिए यह गलत है।
इस तरह लोगों की तीन श्रेणियाँ हैं : पहली श्रेणी : जो बहुत अमीर है। इसलिए हम कहते हैं कि : हमारे वर्तमान समय में - और हम यह नहीं कहते हैं कि यह हर समय में लागू होता है - यदि वह दो मिलियन रियाल का एक घर खरीदता है, उसे छह लाख रियाल के फर्नीचर से सुसज्जित करता है और एक कार खरीदता है, तो वह अपव्यय करने वाला नहीं है।
दूसरी श्रेणी : मध्यम वर्ग है। यह उसके हक़ में अपव्यय माना जाएगा।
तीसरी श्रेणी : गरीबों की है। तो यह ग़रीब आदमी के हक़ में मूर्खता मानी जाएगी। क्योंकि वह एक ऐसी चीज़ को पूर्ण करने के लिए कैसे उधार ले सकता है, जिसकी उसे कोई ज़रूरत नहीं हैॽ!” उद्धरण समाप्त हुआ।
“लिक़ाउल बाबिल मफ्तूह़” (23/107)
उपर्युक्त के आधार पर : यदि आपकी माँ और बहन जिन चीज़ों की माँग कर रही हैं, वे अनुमेय चीजें हैं और आप उन्हें खरीदने में सक्षम हैं, इस प्रकार कि यह आपके लिए कठिन नहीं है और किसी ऐसी चीज़ पर ख़र्च को प्रभावित नहीं करेगा जो उससे अधिक महत्वपूर्ण है : तो आपके लिए उन्हें खरीदना जायज़ है। रही बात उसके अपव्यय होने की, तो यह ऊपर वर्णित बातों पर निर्भर करता है। इसलिए यदि यह प्रथागत (आम बात) है कि जो आपकी स्थिति की तरह वाला व्यक्ति है, वह इस तरह की चीज़ें खरीदता है ; तो यह आप लोगों के हक़ में अपव्यय नहीं है।
आपके हक़ में इस तरह की चीजें खरीदना अधिक संभावित (प्रबल) है, जब भी आप ऐसा करने में सक्षम हैं, अगर उन्हें खरीदने पर रिश्तेदारी को निभाना और दिलों को फिर से मिलाना निष्कर्षित होता है, या उसे छोड़ने पर रिश्तेदारी के टूटने, या मुसलमानों के बीच विद्वेष का डर है।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।