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मेरा प्रश्न उत्पीड़ित पर किए हुए अत्याचार या अधिकारों को उनके मालिकों को वापस करने के बारे में है, जो तौबा की शर्तों में से चौथी शर्त है। यदि अत्याचारी व्यक्ति उत्पीड़ित पर किए हुए अत्याचार या अधिकार को उसके मालिक को वापस करने में सक्षम नहीं है, उदाहरण के लिए, यदि वह कर्मचारियों का प्रमुख है और उसने किसी के साथ अन्याय किया, इस प्रकार कि उसके वेतन में वृद्धि को कम कर दिया या उसे वह पदोन्नति नहीं दी जिसका वह हक़दार है। उसके बाद यह प्रमुख सेवानिवृत्त हो गया। तो क्या उसके लिए तौबा (पश्चाताप) का कोई अवसर हैॽ और अगर वह तौबा करता है, तो वह इस कर्मचारी को उसका अधिकार कैसे लौटाएगाॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
लोगों के अधिकारों से संबंधित पापों से तौबा (पश्चाताप) स्वीकार होने के लिए यह शर्त है कि : उत्पीड़ित पर किए हुए अत्याचार या अधिकारों को उनके मालिकों को लौटा दिया जाए। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जिसने अपने भाई पर अत्याचार किया है, तो उसे चाहिए कि उससे मुक्ति हासिल कर ले (माफ़ करा ले)। क्योंकि वहाँ (आख़िरत में) दीनार और दिरहम (रूपए-पैसे) नहीं होंगे। इससे पहले कि उसके (उत्पीड़ित) भाई के लिए उसकी नेकियों में से ले लिया जाए। यदि उसके पास नेकियाँ नहीं होंगी, तो उसके (उत्पीड़ित) भाई की बुराइयाँ लेकर उसपर डाल दी जाएँगी।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6534) ने रिवायत किया है।
यदि उसने उससे बलपूर्वक या छल से धन लिया है, तो वह उससे मुक्ति हासिल कर ले और उससे माफ़ करवा ले, या वह उस धन को उसे किसी भी तरह से वापस कर दे। और यह आवश्यक (शर्त) नहीं है कि उसे इसकी सूचना दी जाए। यदि उसकी मृत्यु हो चुकी है, तो उसे उसके उत्तराधिकारियों (वारिसों) को दे दे।
यदि वह उत्पीड़ित तक पहुँचने में असमर्थ है, तो उस धन को उसकी ओर से दान कर देगा।
यदि वह धन का भुगतान करने में असमर्थ है, और वह अपने आपको उत्पीड़ित से मुक्ति दिलाने (माफ़ करवाने) में सक्षम नहीं है, तो उसे अपने और अपने पालनहार के बीच पश्चाताप करना चाहिए, और शायद अल्लाह उसकी ओर से क़ियामत के दिन भुगतान कर दे।
नववी रहिमहुल्लाह “रौज़तुत्-तालिबीन” (11/246) में कहते हैं : “यदि इसके साथ - यानी पाप करने के साथ - कोई वित्तीय अधिकार जुड़ा हुआ है, जैसे कि ज़कात रोकना, लोगों का धन हड़पना, लोगों के धनों पर अतिक्रमण करना : तो इसके साथ - अर्थात् पश्चाताप के साथ – उससे अपनी ज़िम्मेदारी को समाप्त करना अनिवार्य है, इस प्रकार कि वह ज़कात का भुगतान कर दे और लोगों के धन वापस लौटा दे यदि उसके पास बचे हुए हैं, यदि वह उसके पास नहीं बचा है, तो उसके बदले जुर्माना अदा करे, या हक़दार से हलाल करा ले (माफ़ करवा ले) और वह उसे उस (हक़) से बरी कर दे।
तथा हक़दार को सूचित किया जाना चाहिए अगर वह उसे नहीं जानता था। और यदि वह अनुपस्थित है, तो उसे उसके पास पहुँचाना चाहिए, यदि उसे उससे वहाँ से छीना था। यदि वह मर चुका है, तो उसे उसके वारिस (उत्तराधिकारी) के हवाले कर दे। यदि उसका कोई वारिस नहीं है और उसका कोई अता-पता नहीं है : तो उसे एक ऐसे न्यायाधीश के हवाले कर दे, जिसका चरित्र और दीन-दारी (धार्मिकता) स्वीकार्य है। यदि वह ऐसा करने में असमर्थ है : तो वह उसे गरीबों को इस नीयत के साथ दान कर दे कि यदि वह मिल जाए तो उसे उसकी अदायगी कर देगा...
यदि वह तंग-दस्त (धनहीन) है : तो वह सक्षम होने पर हर्जाना देने का इरादा रखेगा। यदि वह ऐसा करने में सक्षम होने से पहले मर गया : तो सर्वशक्तिमान अल्लाह की कृपा से क्षमा की उम्मीद की जाती है।
नववी ने कहा : मैं कहता हूँ : प्रामाणिक सुन्नत (हदीसों) के स्पष्ट अर्थों की अपेक्षा यह है कि उत्पीड़ित से छीने हुए अधिकार का मुतालबा साबित होना चाहिए, भले ही वह तंग-दस्त (दिवालिया) और असमर्थ होने की स्थिति में मरा हो, अगर वह उसकी प्रतिबद्धता से अवज्ञाकारी था।
लेकिन अगर उसने उन जगहों पर उधार लिया है, जहाँ उसे उधार लेने की अनुमति है और उसे चुकाने में उसकी असमर्थता तब तक बनी रहती है जब तक वह मर नहीं जाता। या ग़लती से उसने कोई चीज़ क्षतिग्रस्त कर दी और वह उसके जुर्माना का भुगतान करने में असमर्थ रहा यहाँ तक कि उसकी मृत्यु हो गई : तो स्पष्ट बात यह है कि आख़िरत में उसके हक़ का मुतालबा नहीं किया जाएगा; क्योंकि उसने अपनी ओर से कोई पाप नहीं किया है, और आशा की जाती है कि अल्लाह तआला हक़ वाल को उसका मुआवजा देगा ...
जहाँ तक ग़ीबत (पिशुनता) का सवाल है, जबकि वह उस व्यक्ति तक न पहुँची हो, जिसकी ग़ीबत की गई है : तो मैंने अल-हन्नाती के फतावा में देखा है कि उसके लिए पछतावा करना और क्षमा माँगना पर्याप्त है। और यदि वह (ग़ीबत) उस तक पहुँच गई है ... तो उसका तरीक़ा यह है कि वह उस आदमी के पास आए जिसकी उसने ग़ीबत की है और उससे हलाल करा ले (यानी उससे माफ़ी माँग ले)। यदि उसकी मृत्यु के कारण ऐसा करना असंभव है या उसकी दूर अनुपस्थिति के कारण ऐसा करना मुश्किल है : तो वह अल्लाह तआला से क्षमा याचना करे। और वारिसों के हलाल (माफ़) करन का कोई एतिबार नहीं है। अल-हन्नाती ने इसी तरह उल्लेख किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
अतः भौतिक अधिकार उत्पीड़ित को लौटाना अनिवार्य है, और नैतिक अधिकारों में खेद प्रकट करना और क्षमा याचना करना पर्याप्त है, यदि वे उत्पीड़ित तक नहीं पहुँचे हैं।
आपने "कर्मचारी के वेतन में वृद्धि को कम करने" या उसे वह पदोन्नति न देने का उल्लेख किया है, जिसका वह हक़दार था : इसमें एक तरफ़ उसके भौतिक अधिकार पर हमला है, और वह उसे उस पैसे से वंचित करना है, जिसका वह हक़दार था। तथा दूसरी तरफ़ इसमें उसकी पदोन्नति को विलंबित करके एक नैतिक दुर्व्यवहार (अत्याचार) है।
इसके आधार पर; भौतिक अधिकार के संबंध में आपके लिए अनिवार्य है कि : उस अधिकार के मालिक से खुद को हलाल कर लें, या उसे पैसे का भुगतान कर दें, जो कि उतनी मात्रा में होना चाहिए जिससे वह आपके उसपर अत्याचार करने के कारण वंचित कर दिया गया है।
तथा आप किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता ले सकते हैं जो उस उत्पीड़ित के पास आपके लिए सिफारिश करे और उससे क्षमा का अनुरोध करे।
यदि आप दोनों बातों को करने में असमर्थ हैं, तो अधिक से अधिक पश्चाताप और क्षमा याचना करें, और अल्लाह तआला से दुआ करें कि वह क़ियामत के दिन आपकी ओर से भुगतान कर दे।
जहाँ तक नैतिक अधिकार का संबंध है, तो यदि वह नहीं जानता था कि आपने उसके साथ अन्याय किया है, तो आपके लिए खेद प्रकट करना और अल्लाह से क्षमा माँगना पर्याप्त है। और यदि वह इसके बारे में जानता था, तो आपके लिए उससे हलाल होना अनिवार्य है, जब तक कि आपको यह डर न को कि यदि वह जान गया तो इससे कोई और बड़ी बुराई (ख़राबी) पैदा हो सकती है।
हम अल्लाह से प्रश्न करते हैं कि आपकी तौबा को स्वीकार करे और आपकी ज़िम्मेदारी को समाप्त कर दे और अपनी आज्ञाकारिता पर आपकी मदद करे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।