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मैं रिश्तेदारों को छोड़ने (संबंध तोड़ने) के नियम के बारे में जानना चाहता हूँ। ये ऐसे रिश्तेदार हैं जो हमारे लिए समस्याओं और पीड़ाओं का कारण बनते हैं और हम उनकी बुरी नज़रों [ईर्ष्या] और बुरी (दुर्भावनापूर्ण) आत्माओं से पीड़ित हैं। वे हमारे खिलाफ जादू का अभ्यास करते हैं और हमारी संपत्ति चुराते हैं, और हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाते हैं, और हमारे साथ हर तरह से गलत व्यवहार करते हैं। तो क्या हम उन्हें छोड़ सकते हैंॽ इस्लाम के मापदंड में (इस्लामी शिक्षा के अनुसार) उनके इन कार्यों का क्या हुक्म हैॽ मैं पहले ही अपनी माँ और अपने पिता से कह चुका हूँ कि वे उन लोगों से बात न करें, और जितना संभव हो उनसे बचें। तो इस बारे में आपकी क्या राय हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
इस्लामी शरीयत ने रिश्तेदारी को बरकरार रखने और दुर्व्यवहार करने वाले को क्षमा करने, बल्कि उसके दुर्व्यवहार का जवाब सद्व्यवहार के साथ देने का आदेश दिया है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ * وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ
فصلت :34 ، 35
“भलाई और बुराई समान नहीं हैं। बुराई को सबसे अच्छे तरीक़े से दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति जिसके और तुम्हारे बीच दुश्मनी है, ऐसा हो जाएगा मानो वह घनिष्ठ मित्र हो। किंतु यह विशेषता केवल उन लोगों को प्राप्त होती है जो धैर्य से काम लेते हैं, तथा यह चीज़ केवल उसी को प्राप्त होती है जो बड़ा भाग्यशाली होता है।” [सूरत फुस्सिलत : 34-35].
अल्लामा अस-सादी रहिमहुल्लाह ने फरमाया:
''अल्लाह तआला फरमाता है : وَلا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلا السَّيِّئَةُ “अच्छाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते।” अर्थात अल्लाह की प्रसन्नता के लिए नेकियाँ और आज्ञाकारिता के कार्य करना, तथा बुरे कर्म और पाप करना जिनसे अल्लाह क्रोधित और अप्रसन्न होता है, बराबर और समान नहीं हो सकते। इसी तरह लोगों के साथ अच्छाई करना तथा उनके साथ दुर्व्यवहार करना बराबर नहीं हो सकते, न तो अपने अस्तित्व में, न अपने विवरण में और न अपने बदले में। ''क्या अच्छे व्यवहार का बदला अच्छाई के अलावा कुछ और हो सकता है।''
फिर अल्लाह ने एक विशिष्ट प्रकार के सद्व्यवहार का आदेश दिया है, जिसका बड़ा स्थान (महत्व) है। और वह उस व्यक्ति के साथ सद्व्यवहार करना है जिसने आपके साथ दुर्व्यवहार किया है : चुनाँचे अल्लाह ने फरमाया : ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ “बुराई को सबसे अच्छे तरीक़े से दूर करो।” अर्थात यदि कोई आपके साथ, शब्द के द्वारा या कथन के द्वारा, दुर्व्यवहार करे, विशेष रूप से वह व्यक्ति जिसका आपके ऊपर महान अधिकार है, जैसे कि रिश्तेदार, दोस्त और ऐसे ही अन्य लोग, तो आप उसका जवाब अच्छाई से दें। यदि वह आपसे संबंध को तोड़ दे, तो आप उससे संबंध बनाए रखें। अगर वह आप पर अत्याचार करे, तो आप उसे माफ कर दें। यदि वह आपकी अनुपस्थिति या उपस्थिति में आपके बारे में कोई बाते कहे, तो आप उसपर उसी तरह प्रतिक्रिया न करें, बल्कि उसे माफ़ कर दें और उसके साथ विनम्र व्यवहार करें। अगर वह आपको छोड़ दे और आपसे बात न करे, तो उससे अच्छी तरह से बोलें और उसे सलाम करें। यदि आप उसके दुर्व्यवहार का जवाब अच्छे व्यवहार के साथ देगे, तो आपको बड़ा लाभ प्राप्त होगा।
فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ "फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति जिसके और तुम्हारे बीच दुश्मनी है, ऐसा हो जाएगा मानो वह घनिष्ठ मित्र हो।" अर्थात मानो वह आपका सबसे करीबी स्नेही दोस्त है।
وَمَا يُلَقَّاهَا “लेकिन किसी को भी यह प्राप्त नहीं होती है” अर्थात इस सराहनीय स्वभाव की तौफ़ीक़ किसी को नहीं मिलती।
إِلا الَّذِينَ صَبَرُوا "सिवाय उन लोगों के जो धीरज रखते हैं", जो अपने आपको उस चीज़ पर रोके रखते हैं जिसे वे नापसंद करते हैं, और खुद को वह काम करने के लिए बाध्य करते हैं जो अल्लाह को पसंद है। क्योंकि वास्तविकता यह है कि लोग स्वाभाविक रूप से दुर्व्यवहार करने वाले को उसके साथ दुर्व्यवहार करके जवाब देने और उसे माफ़ न करने के इच्छुक होते हैं, तो फिर सद्व्यवहार कैसे कर सकते।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपने आप को धैर्य रखने के लिए बाध्य कर लेता है और अपने पालनहार की आज्ञा का पालन करता है, और उसके अपार सवाब को जानता है, और समझता है कि जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है, उसे उसी तरह से जवाब देना, उसे कुछ भी फायदा नहीं पहुंचाएगा, वह मात्र शत्रुता को और बदतर बना देगा। जबकि उसका उसके साथ अच्छा व्यवहार करना उसके पद (मान-सम्मान) को कम नहीं कर देगा। बल्कि जो कोई भी अल्लाह की खातिर खुद को विनम्र कर लेगा, अल्लाह उसके पद को ऊँचा कर देगा, तो यह मामला उसके लिए आसान हो जाएगा और वह ऐसा खुशी के साथ करेगा और इसमें आनंद का आभास करेगा।
وَمَا يُلَقَّاهَا إِلا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ “तथा यह चीज़ केवल उसी को प्राप्त होती है जो बड़ा भाग्यशाली होता है।” क्योंकि यह मानव जाति के अभिजात वर्ग की विशेषताओं में से एक है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति इस दुनिया और आख़िरत में उच्च स्थिति प्राप्त करता है, जो नैतिकता के सबसे बड़े गुणों में से एक है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 2558) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि एक आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे कुछ रिश्तेदार हैं जिनके साथ मैं संबंध को बनाए रखता हूँ और वे मेरे साथ संबंध को काटते हैं। मैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करता हूँ और वे मेरे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। मैं उनके प्रति सहनशीलता अपनाता हूँ, लेकिन वे मेरे प्रति अज्ञानता से काम लेते हैं!!
तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : "यदि तुम ऐसे ही हो जैसा कि तुम कहते हो, तो गोया तुम उनके मुंह में गर्म राख डाल रहे हो। और जब तक तुम ऐसा करते रहोगे, तुम्हारे साथ अल्लाह की ओर से निरंतर एक सहायक (समर्थक) रहेगा।”
दूसरी बात यह है कि :
हमने जो ऊपर उल्लेख किया है वह लोगों के साथ व्यवहार करने में उच्चतम स्तर है। लेकिन जिस व्यक्ति के पास ऐसा करने की क्षमता नहीं है, या अपने सद्व्यवहार के साथ उन्हें कष्ट पहुँचाने से उपेक्षा करता है और वह डरता है कि अगर वह उनके साथ घुल-मिल गया तो वे उसे जादू टोना या अन्य प्रकार के कष्ट और हानि के द्वारा उसे नुकसान पहुंचाएंगे, जैसा कि प्रश्न में उल्लेख किया गया है, तो वह उनकी बुराई से बचने के लिए उनके साथ संबंध काट सकता है और उन्हें छोड़ सकता है।
इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह ने कहा :
“विद्वानों ने सर्वसम्मति से इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि मुसलमान के लिए अपने भाई को तीन दिनों से अधिक समय के लिए छोड़ना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि उसे इस बात का डर है कि उससे बात करना और उसके साथ संबंध को बनाए रखना उसकी धार्मिक प्रतिबद्धता को भ्रष्ट कर सकता है, या उसके धार्मिक या सांसारिक मामलों में उसे किसी नुकसान से ग्रस्त कर सकता है। यदि ऐसी परिस्थिति है, तो उसे उससे अलग-थलग और दूर रहने की छूट दी गई है। प्रायः अच्छे तरीके से संबंध विच्छेद कर लेना, कष्टदायक संपर्क से बेहतर होता है।
''अत-तमहीद'' (6/127).
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
मेरी पत्नी के घर वाले मुझे और मेरी पत्नी को परेशान करते हैं। तो उन्हें छोड़ देने और उनसे भेंट-मुलाक़ात के लिए न जाने के बारे में क्या हुक्म हैॽ
तो उन्होंने उत्तर दिया : ''आपके लिए उनसे भेंट-मुलाक़ात के लिए न जाने की अनुमति है, यदि उनसे मिलने जाने में आपके लिए कोई हानि या खराबी है, या इसमें आपकी पत्नी को हानि पहुँचती है; इस स्थिति में, आप उनसे मिलने जाने से उपेक्षा कर सकते हैं, तथा आप अपनी पत्नी को भी उनके पास जाने से रोक सकते हैं।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
''फतावा नूरुन अलद दर्ब'' (12 / 474-475)
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।