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मेरे परिवार का एक सदस्य आत्माओं के आवागमन पर विश्वास रखता है और मैं इस बात का दृढ़ता से विरोध करता हूँ, इस बात की इस्लामी व्याख्या क्या है (यदि कोई है तो)? क्योंकि मैं उनके विचारों को शुद्ध करना चाहता हूँ (इसलिए कि उनके ईमान में कमी आ गई है)।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सभी प्रशंसायें अल्लाह के लिए हैं और अल्लाह के पैग़ंबर पर दया और शांति अवतरित हो, इसके बाद :
आत्माओं के आवागमन से अभिप्राय यह है कि जब शरीर की मृत्यु हो जाती है, तो आत्मा स्थानांतरित हो कर एक दूसरे शरीर में बसेरा कर लेती है, जिस में वह, जो कुछ कार्य कर के उस ने आगे बढ़ाया है उसके परिणाम स्वरूप, सौभाग्य या दुर्भाग्य का अनुभव करती है, इस प्रकार वह एक शरीर से दूसरी शरीर में स्थानांतरित होती रहती है। इस दृष्टिकोण को स्वीकारना सब से बड़ा बातिल (असत्य) है, और अल्लाह तआला, उसकी पुस्तकों और उसके पैग़ंबरों के साथ महान कुफ्र है, क्योंकि आखिरत, हिसाब, स्वर्ग और नरक पर विश्वास रखना उन चीज़ों में से है जिनके साथ संदेष्टाओं का आना और उतरने वाली किताबों का उन पर आधारित होना आवश्यक रूप से ज्ञात है। और आवागमन को मानना इन सभी चीज़ों को नकारना और झुठलाना है।
आखिरत (परलोक) के मामले की इस्लामी व्याख्या अल्लाह की किताब और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में स्पष्ट रूप से वर्णित है, उन्हीं में से अल्लाह तआला का यह फरमान है : "हर प्राणी को मौत का स्वाद चखना है, फिर तुम सब हमारी ही तरफ लौटाये जाओ गे।" (सूरतुल अनकबूत : 57)
और अल्लाह का यह फरमान : "तुम सब को अल्लाह ही के पास लौट कर जाना है, अल्लाह ने सच्चा वादा कर रखा है, नि:सन्देह वही पहली बार पैदा करता है, फिर वही दुबारा पैदा करेगा ताकि ऐसे लोगों को जो कि ईमान लाये और उन्हों ने नेकी के काम किये, इंसाफ के साथ बदला दे और जिन लोगों ने कुफ्र किया उनके लिये खौलता हुआ पानी पीने को मिलेगा और दुखदायी अज़ाब होगा उनके कुफ्र के कारण।" (सूरत यूनुस :4)
और यह फरमान : "जिस दिन हम परहेज़गारों (ईश्भय रखने वालों) को अत्यन्त दयालू अल्लाह का मेहमान बनाकर जमा करेंगे। और अपराधियों को (बहुत प्यास की हालत में) नरक की तरफ हाँक ले जायेंगे।" (सूरत मर्यम :85-86)
और यह फरमान : "उस ने उन सब को घेर रखा है और सब की पूरी तरह गिन्ती भी कर रखा है। ये सारे के सारेक़ियामत के दिन अकेले उसके सामने हाज़िर होने वाले हैं।" (सूरत मर्यम :94-95)
और यह फरमान : "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं, वह तुम सबको ज़रूर क़ियामत के दिन जमा करेगा।" (सूरतुन-निसा :87)
और यह फरमान : "इन काफिरों का भ्रम (गुमान) है कि वह पुन: जीवित नहीं किए जायेंगे, आप कह दीजिए कि क्यों नहीं, अल्लाह की सौगन्ध ! तुम अवश्य पुन: जीवित किए जाओगे, फिर जो तुम ने किया है उस से अवगत कराए जाओगे, और अल्लाह पर यह अत्यन्त सरल है।" (सूरतुत-तग़ाबुन:7)
इनके अलावा और भी मोहकम आयतें हैं।
और हदीस में आखिरत के उल्लेख और उसके सिद्धीकरण और उसके मसाईल के विस्तार के विषय में इतनी बातें वर्णित हैं जिन की गिन्ती भी नहीं की जा सकती, उन्हीं में से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : "नि:सन्देह तुम नंगे पैर, नंगे शरीर और बिना ख़त्ना के उठाये जाओगे, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अल्लाह तआला का यह फ़रमान पढ़ा :
"जैसे हम ने पहली बार उत्पत्ति (पैदा) की थी उसी प्रकार पुन: करेंगे, यह हमारे ज़िम्मा वादा है और हम इसे अवश्य कर के ही रहेंगे।" (सूरतुल अम्बिया: 104) और सबसे पहले क़ियामत के दिन इब्राहीम अलैहिस्सलाम को कपड़ा पहनाया जायेगा ..." (बुखारी हदीस संख्या :3100, मुस्लिम हदीस संख्याः 5104)
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान : "इंसान के अन्दर एक हड्डी है जिस को धरती (मिट्टी) नहीं खाती है उसी में उसे क़ियामत के दिन जीवित किया जायेगा।´´ लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! वह कौन सी हड्डी है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "रीढ़ की हड्डी।" (मुस्लिम हदीस संख्या :5255)
और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान : "क़ियामत के दिन सूरज को लोगों के समीप कर दिया जायेगा यहाँ तक कि वह उन से एक मील की दूरी पर होगा।" सलीम बिन आमिर (हदीस के रावी) कहते हैं : अल्लाह की क़सम! मुझे नहीं मालूम कि मील का अभिप्राय धरती की दूरी है या वह मील (सलाई) जिस से आँख में सुर्मा लगाया जाता है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "चुनाँचि लोग अपने कर्मों के अनुसार पसीने में डूबे होंगे, कुछ लोग तो दोनों टखनों तक पसीने में डूबे होंगे तो कुछ दोनों घुटनों तक, कुछ लोग कमर तक पसीने में होंगे, तो कुछ को पसीने की लगामपड़ी।" हदीस के बयान करने वाले ने कहा किः और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने अपने हाथ से अपने मुँह की ओर संकेत किया।" (अर्थात मुँह तक पसीना होगा) (मुस्लिम हदीस संख्या :5108)
और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान : "मैं क़ियामत के दिन जन्नत के द्वार पर आऊँगा और उसे खुलवाऊँगा तो उसका चौकीदार कहेगा : आप कौन हैं? तो मैं कहूँगा : मुहम्मद। तो वह कहेगा : आप ही का मुझे आदेश दिया गया है कि आप से पहले किसी के लिए न खोलूँ।" (मुस्लिम हदीस संख्या : 292) इसके अतिरिक्त अन्य हदीसें भी हैं।
अत: आत्माओं के आवागमन का अक़ीदा रखना इन नुसूस (कु़र्आन की आयतों और हदीसों) को झुठलाना और उनको ठुकरा देना, तथा मरने के पश्चात पुनर्जीवन को नकारना है।
शरीअत में क़ब्र के अज़ाब और उसकी नेमतों और दोनों फरिश्तों के प्रश्न करने के सबूत में जो चीज़ें वर्णित हैं, वो सब इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि मनुष्य की आत्मा किसी दूसरे के अंदर स्थानांतरित नहीं होती है, बल्कि आत्मा और शरीर दोनों पर प्रकोप उतरता है और दोनों नेमत का स्वाद भोगते हैं यहाँ तक कि लोग अपने पालनहार के सामने एकत्र किये जायेंगे।
इमाम इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : (( उनके खण्डन के लिए इतना पर्याप्त है कि सभी मुसलमानों का उन्हें काफिर मानने पर इत्तिफाक़ (सर्वसहमति) है, और इस बात पर भी सब एकमत हैं कि जिस ने उनके कथन का समर्थन किया वह इस्लाम धर्म पर नहीं है, और यह कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसके अतिरिक्त धर्म लेकर आये हैं।)) (अल फिसल फिल-मिलल वल-अह्वा वन्निहल 1/166)
यह विश्वास रखना कि शरीर नष्ट हो जायेगी, और उसे दुबारा नही पलटना है कि वह नेमत का स्वाद चखे या यातना का घूँट पिये, यह मनुष्य को शह्वतों (इच्छाओं), अत्याचार और अंधेरों में डुबाने का रास्ता है, और शैतान इस असत्य आस्था वालों से यही चाहता है, इस पर अधिक यह कि वह उन्हें इस दुष्ट मत के द्वारा कुफ्र में ठूँस देता है।
आप पर अनिवार्य है कि इस मनुष्य को नसीहत करें, उसे अल्लाह तआला की वाणी और उसके पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन याद दिलायें, और उसे इस कुफ्र से तौबा करने के लिए कहें। यदि वह तौबा करके सत्य धर्म की ओर पलट आता है तो ठीक है, अन्यथा उस से दूर रहना, उसके पास उठने-बैठने से दूसरों को सावधान करना और उसके अक़ीदा से अलग-थलग होने का ऐलान करना अनिवार्य है ; ताकि लोग उस से धोखा न खायें।
और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।