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मैं सऊदी में रहता हूँ और अल्लाह की आज्ञा से इस वर्ष हज्ज के लिए जाऊँगा, किंतु अपने कार्य की परिस्थितियों के कारण मैं अरफह के दिन दस बजे सुबह विमान पर सवार हूँगा, तो क्या यह हज्ज सही होगा यदि मैं अरफह के दिन जाऊँ और अरफह के दिन से पहले जो मनासिक (हज्ज के कार्य) हैं उन्हें न करूँ ॽ और यदि विमान लेट हो जाए और मैं अराफात की पहाड़ी पर मग़्रिब के बाद पहुँचूँ तो मेरा हज्ज नष्ट हो जायेगा, जबकि ज्ञात रहे कि मैं पहली बार हज्ज कर रहा हूँ। और मेरे ऊपर अरफह में कब तक होना अनिवार्य है ताकि मेरा हज्ज सही हो सके ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ज़ुल-हिज्जा के नवें दिन हज्ज का एहराम बांधने और सीधे अरफह जाने में आप के ऊपर कोई आपत्ति की बात नहीं है, और यदि आप ज़ुहर और दसवीं ज़ुल-हिज्जा की फज्र के बीच उसमें प्रवेश कर गए तो आपका हज्ज सही हो जायेगा। तो यह सब (अरफह में) ठहरने का समय है ; क्योंकि तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 891), नसाई (हदीस संख्या : 3039), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1950) और इब्न माजा (हदीस संख्या : 3016) ने उर्वा बिन मुज़र्रस्स अत्ताई से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया : मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास मुज़दलिफा में आया जिस समय आप नमाज़ (फज्र की नमाज़) के लिए निकले तो मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! मैं तै की दोनों पहाड़ियों से आया हूँ, मैं ने अपनी सवारी (ऊँटनी) को थकाया है, और अपने आपको थकाया है, अल्लाह की क़सम ! मैं ने कोई रेतीला पहाड़ नहीं छोड़ा मगर उस पर ठहरा हूँ, तो क्या मेरा हज्ज मान्य है ॽ तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो हमारी इस नमाज़ में उपस्थित हुआ, और हमारे साथ ठहरा यहाँ तक कि हम ने कूच किया, जबकि वह इस से पहले अरफह में रात या दिन के समय ठहर चुका है, तो उसने अपना हज्ज पूरा कर लिया और अपने नुसुक (हज्ज के कार्य) को संपन्न कर लिया।” तिर्मिज़ी ने फरमाया : यह हदीस हसन सहीह है।
तथा कई एक विद्वानों ने इस बात पर सहमति का उल्लेख किया है कि अरफह में ठहरना यौमुन्नह्र (क़ुर्बानी के दिन - दसवीं ज़ुल-हिज्जा) के फज्र तक रहता है।
नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “ठहरने का समय अरफह के दिन सूरज ढलने और दसवीं ज़ुल हिज्जा (क़ुर्बानी) की रात फज्र के निकलने के बीच है, यही मालिक, अबू हनीफा और जमहूर का मतह है। तथा क़ाज़ी अबुत्तैयिब और अब्दरी का कहना है : अहमद के सिवाय सभी विद्वानों का यही मत है, क्योंकि उन्हों ने कहा है : उसका समय अरफह के दिन फज्र उदय होने और उसके यौमुन्नह्र को उदय होने के बीच है।” “अल-मजमूअ” (8/141) से समाप्त हुआ।
तथा इब्न क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “हम इस बात के अंदर विद्वानों के बीच कोई मतभेद नहीं जानते कि अंतिम समय यौमुन्नह्र को फज्र का उदय होना है। जाबिर ने कहा : हज्ज नहीं छूटता यहाँ तक कि मुज़दलिफा की रात को फज्र उदय हो जाए।” अबुज़्ज़ुबैर ने कहा : तो मैं ने उन से कहा : क्या अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा फरमाया है ॽ तो उन्हों ने कहा: हाँ।” इसे असरम ने रिवायत किया है।
जहाँ तक उसके प्रथम समय का संबंध है तो वह अरफह के दिन फज्र निकलने से है, अतः जिस व्यक्ति ने अरफह को इस समय के किसी हिस्से में पा लिया और वह बुद्धिमान (समझदार) है तो उसका हज्ज पूरा हो गया।
तथा मालिक और शाफई ने कहा : उसका प्रथम समय अरफह के दिन सूरज के ढलने से है...
और वह किसी भी तरह से अरफा में पहुँच जाए, और वह बुद्धिमान (समझदार) है तो यह उसके लिए फिफायत करेगा, चाहे खड़े हुए, या बैठे हुए या सवार या सोया हुआ हो। और यदि वह वहाँ उसे पार करते हुए गुज़रा और उसे पता नहीं चला कि यह अरफा है तब भी उसके लिए काफी होगा। इसे मालिक, शाफई और अबू हनीफा ने रिवायत किया है।” “अल-मुग्नी” (3/12) से अंत हुआ।
इस आधार पर, हाजी जब भी यौमुन्नह्र को फज्र निकलने से पूर्व पहुँच जाए, तो उसने हज्ज को पा लिया, सो उसे चाहिए कि हज्ज के जो कार्य उसके ऊपर बाक़ी रह गए हैं उनकी अदायगी करे।
तथा हम अल्लह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आपके हज्ज को स्वीकार फरमाये।