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क्या आप हमें फरिश्तों (स्वर्गदूतों) के बारे में कुछ जानकारी दे सकते हैं?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह तआला ने फरिश्तों को प्रकाश (रौशनी) से पैदा किया है,पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फरिश्ते नूर (प्रकाश) से पैदा किये गये, और जिन्नात आग की लपट से पैदा किये गये हैं और आदम उसी चीज़ से पैदा किये गये हैं जिस का तुम से उल्लेख किया गया है।" (सहीह मुस्लिम हदीस नं.:2996)
फरिश्ते अल्लाह तआला के आज्ञापालन पर पैदा किये गये हैं (प्राकृतिक रूप से अल्लाह का आज्ञापालन करते हैं) : "जो हुक्म अल्लाह तआला उन्हें देता है उसकी नाफरमानी नहीं करते बल्कि जो हुक्म दिया जाये उसका पालन करते हैं।" (सूरतुत्तह्रीम :6)
फरिश्ते खाते और पीते नहीं हैं, बल्कि उनका खाना तस्बीह (सुब्हानल्लाह कहना) और तह्लील (ला-इलाहा-इल्लल्लाह कहना) है, जैसाकि अल्लाह तआला ने उनके बारे में सूचना दी है : "वह दिन-रात उसकी पवित्रता बयान करते हैं और तनिक सा भी आलस्य नहीं करते।" (सूरतुल अम्बिया: 20)
फरिश्तों ने अल्लाह तआला की वह्दानीयत (एकेश्वरवाद) की गवाही दी है,जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "अल्लाह तआला और फरिश्ते और ज्ञानी इस बात की गवाही देते हैं कि अल्लाह तआला के अतिरिक्त कोई उपास्य (मा´बूद) नहीं और वह न्याय को स्थापित करने वाला है, उस सर्वशक्तिमान और सर्वबुद्धिमान के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं।" (सूरत आल-इम्रान: 18)
जिस प्रकार अल्लाह ने मानवजाति में से संदेश्वाहकों को चुना है, उसी तरह फरिश्तों में से भी कुछ को संदेश्वाहक चुन कर उन्हें सम्मानित किया है : "फरिश्तों में से और इंसानों में से रसूल को अल्लाह ही चुन लेता है, बेशक अल्लाह सुनने वाला देखने वाला है।" (सूरतुल हज्ज :75)
और जब अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया और उन्हें सम्मानित करना चाहा तो फरिश्तों को उन को सज्दा करने का हुक्म दिया : "और जब हम ने फरिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो, तो इबलीस के सिवाय सभी ने सज्दा किया। उस ने नकारा और घमंड किया और वह था ही काफिरों में।" (सूरतुल बक़रा :34)
फरिश्ते एक बड़ी मख्लूक़ हैं और उनके अनेक कार्य हैं, और उनके बहुत सारे गिरोह हैं जिन्हें केवल अल्लाह ही जानता है, उन में से कुछ अर्शके उठाने वाले हैं : "अर्शके उठाने वाले और उसके आस-पास के फरिश्ते अपने रब की तस्बीह तारीफ के साथ-साथ करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं, और ईमान वालों के लिए इस्तिग़फार करते हैं।" (सूरतुल मोमिन :7)
और उन्हीं में से कुछ पैग़ंबरों पर वह्य लेकर उतरते हैं और वह जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर कु़र्आन लेकर उतरे : "इसे अमानतदार फरिश्ता (यानी जिबरील अलैहिस्सलाम) लेकर आया है। आप के दिल पर (नाज़िल हुआ है) कि आप सावधान (आगाह) कर देने वालों में से हो जायें।" (सूरतुश्शुअरा :193-194)
उन्हीं में से मीकाईल अलैहिस्सलाम हैं जो वर्षाबरसाने और खेती उगाने पर नियुक्त (आदिष्ट) हैं।
तथा इस्राफील हैं जो क़ियामत क़ायम होने के समय सूर फूंकने पर नियुक्त हैं।
उन्हीं में से कुछ मनुष्यों और उनके कार्यों की रक्षा के लिए नियुक्त हैं : "नि:सन्देह तुम्हारे ऊपर निरीक्षक (निगराँ) सम्मानित लिखने वाले निर्धारित हैं, जो कुछ तुम करते हो वे जानते हैं।" (10-12)
और उन्हीं में से कुछ सभी अच्छे और बुरे कार्यों के लिखने पर नियुक्त हैं : "जिस समय दो लेने वाले जो लेते हैं,एक दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ बैठा हुआ है। (इंसान) मुँह से कोई शब्द निकाल नहीं पाता लेकिन उसके पास रक्षक (पहरेदार) तैयार हैं।" (सूरत क़ाफ : 17-18)
उन्हीं में से कुछ ईमान वालों के प्राणों को निकालने पर नियुक्त हैं : "वे जिनकी जान फरिश्ते ऐसी हालत में निकालते हैं कि वह पक-साफ हों,कहते हैं कि तुम्हारे लिए सलामती ही सलामती है अपने उन अमलों के बदले जन्नत में जाओ जो तुम कर रहे थे।" (सूरतुन्नह्ल : 32)
तथा कुछ काफिरों की जानों को निकालने पर तैनात हैं : "काश आप देखते जब फरिश्ते काफिरों के प्राण निकालते हैं, उनके मुख पर और नितम्बों पर मार मारते हैं, (और कहते हैं) तुम जलने के अज़ाब का मज़ा चखो।" (सूरतुल-अन्फाल: 50)
उन्हीं में से जन्नत के दारोगा और जन्नतियों की सेवा करने वाले हैं : "उनके पास फरिश्ते हर दरवाज़े से आयेंगे। (कहेंगे कि) तुम पर सलमाती (शान्ति) हो सब्र के बदले,क्या ही अच्छा बदला है इस आखिरत के घर का।" (सूरतुर्र´अद :23-24)
और उन्हीं में से जहन्नम के रक्षक (कोतवाल) हैं : "हे ईमान वालो! तुम खुद अपने आप को और अपने परिवार वालों को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन इंसान और पत्थर हैं, जिस पर कठोर दिल वाले सख्त फरिश्ते तैनात हैं।" (सूरतुत्तह्रीम :6)
और उन्हीं में ईमान वालों के साथ मिलकर जिहाद करने वाले फरिश्ते हैं : "उस समय को याद करो, जब कि आप का रब फरिश्तों को हुक्म दे रहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ,इसलिए तुम ईमान वालों की हिम्मत बढ़ाओ। मैं अभी काफिरों के दिलों में डर डालता हूँ। इसलिए तुम गर्दनों पर मारो और उनके जोड़-जोड़ पर चोट लगाओ।" (सूरतुल अंफाल :13)
रमज़ान के महीने में क़द्र वाली रात (शबे क़द्र) में फरिश्ते उतरते हैं ताकि मुसलमानों के साथ भलाई में हाज़िर हों, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है : "क़द्र की रात एक हज़ार महीनों से बेहतर है। इस में (हर काम को पूरा करने के लिये) अपने रब के हुक्म से फरिश्ते और रूह (जिब्रील) उतरते हैं।" (सूरतुल क़द्र :3-4)
फरिश्ते उस घर में प्रवेश नहीं करते जिस में कोई मूर्ति या तस्वीर (छवि) या कुत्ता हो,नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "फरिश्ते ऐसे घर में दाखिल नहीं होते हैं जिस में कुत्ता या तस्वीर हो।" (सहीह मुस्लिम हदीस नं.: 2106)
फरिश्तों पर ईमान रखना ईमान के स्तंभों में से एक स्तंभ है, और जिसने उनका इंकार किया वह काफिर है : "और जो अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और अंतिम दिवस (क़ियामत के दिन) को न माने वह बहुत दूर बहक गया।" (सूरतुन्निसा :136)