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मैं इस्लाम में गर्भ धारण करने की फज़ीलत जानना चाहता हूँ और महिला को गर्भ की अवधि के दौरान किन इबादतों के करने की सलाह देनी चाहिए, और क्या गर्भवती महिला की नमाज़ का अज्र व सवाब गैर-गर्भवती महिला की नमाज़ से बढ़कर है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि औरत का गर्भवती होना और उसे जनना एक धार्मिक उद्देश्य की प्राप्ति का कारण है जो अल्लाह को प्रिय है,और वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुयायी, एकेश्वरवादी मुसलमानों की नसल को अधिक करना है, यह सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है जिसकी एक महिला को अपने गर्भ में नीयत करना चाहिए।
माक़िल बिन यसार से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : एक आदमी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और फरमाया : मैं ने एक हसब व नसब और सौंद्रय वाली औरत को पा लिया है, लेकिन वह बच्चा नहीं जनती है, तो क्या मैं उससे शादी कर लूं ॽ
आप ने फरमाया : नहीं।
फिर वह पुनः आपके पास आया तो आप ने उसे मना कर दिया।
फिर वह तीसरी बार आपके पास आया तो आप ने फरमाया : “प्यार करने वाली, बच्चा जनने वाली औरत से शादी करो, क्योंकि मैं तुम्हारे कारण अन्य क़ौमों पर गर्व करने वाला हूँ।”
इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2050) और नसाई (हदीस संख्या : 3227) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सही कहा है।
इसी उद्देश्य के कारण जिसकी ओर हम ने संकेत किया है,उस गर्भ के अंदर जो उसके धारण करने वाली महिला पर कठिन होता है और वह उसे सहन करती है,कई लाभ हैं जो उसकी माँ को प्राप्त होते हैं, उन्हीं में से कुछ यह हैं :
1- इस प्रशिक्षण कार्रवाई के लिए मानसिक और शैक्षिक तैयारी जो सामान्य रूप से सबसे खतरनाक और पेचीदा काम है,जिसके अंदर वे दोनों बच्चे की शिष्टाचार और धर्मनिष्ठता पर पालन-पोषण करने को अल्लाह के चेहरे (प्रसन्नता) के लिए समझते हैं,और इस बात की आशा रखते हैं कि अल्लाह उन दोनों के लिए उनके बेटे के नेक अमल के कारण अज्र व सवाब लिख दे,ताकि वह उन दोनों के लिए उनके बाद सदक़ा जारिया (बाक़ी रहने वाला दान) बन जाए,और वे दोनों उसकी वजह से महान अज्र व सवाब प्राप्त करें जिन्हें केवल अल्लाह जानता है।
2- गर्भवती महिला को होने वाली कठिनाई जैसे – कष्ट, बीमारयिां, और बहुधा स्वास्थ्य संबंधी,मानसिक और आर्थिक परेशानियां,सबके सब अज्र व सवाब हैं जो इन् शा अल्लाह गर्भवती महिला के लिए लिखे जाते हैं,अल्लाह तआला मुसलमान बंदे को उसे दुनिया में ग्रस्त होने वाली हर परेशनी और कष्ट पर अज्र व सवाब देता है,यहाँ तक कि उसे जो कांटा भी चुभता है उसके द्वारा अल्लाह तआला उसके पापों को मिटा देता है,तो ज़चगी और गर्भ की कठिनाईयाँ तो इससे बहुत बड़ी चीज़ हैं।
3- बल्कि यदि मान लिया जाए कि यह औरत गर्भ को जनने के दौरान मर जाए,तो वह शहीद होकर मरेगी,और यह उसकी उस अवस्था की फज़ीलत का प्रमाण है जिस में वह है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “और ज़चगी में मरने वाली औरत शहीद है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3111) ने रिवायत किया है और नौववी ने “शरह मुस्लिम” (13/62) में उसे सहीह कहा है,और फरमाया : जो औरत जनने के कारण मर जाती है,अर्थात उस चीज़ के साथ जो उसमें एकत्र होती है उससे अलग नहीं होती है।
दूसरा :
जहाँ तक उन इबादतों का संबंध है जिनमें व्यस्त होना गर्भवती महिला के लिए संभव है,तो वे सभी इबादतें है जिन्हें मुसलमान अपने दिन और रात में करता है, जैसे- नमाज़,रोज़ा - यदि उसे हानि पहुँचने का भय न हो -, सदक़ा व ख़ैरात, क़ुरआन करीम की तिलावत,शरई अज़कार की पाबंदी, लोगों के साथ उपकार करना,रिश्तेदारों से भेंट मुलाक़ात करना,नफ्स का नियंत्रण और निरीक्षण करना और उसे शिष्टाचार,कार्यों और कथनों के उच्च स्थान पर पहुँचाना।
शायद महिला को इस अवधि में जिस चीज़ की ओर अपने ध्यान को आकर्षित करना चाहिए उनमें से महत्वपूर्ण चीज़ ठीक प्रशिक्षण, पालन पोषण के तरीक़े (शैलियां) सीखना और इस से संबंधित विशिष्ट पुस्तकें पढ़ना, या प्रशिक्षण करने वाले विद्वानों के भाषण सुनना, चाहे वे शिष्टाचार संबंधी प्रशिक्षण, या स्वास्थिक,या मानसिक या शैक्षिक क्षेत्र से संबंधित हों। ताकि उस महान उद्देश्य के लिए तैयारी हो सके जिसकी अल्लसह तआला ने माता पिता को ज़िम्मेदारी सौंपी है, और वह देख-रेख और प्रशिक्षण की अमानत है, चुनांचे माता पिता उसमें जानकारी और समझबूझ के साथ प्रवेश करें ताकि सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त कर सकें और लोक व परलोक में उन्हें अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त हो।
रही बात महिला के लिए उसकी गर्भावस्था में विशिष्ट अज़कार और प्रावधानों की, तो हम शरीअत के अंदर इन में से कोई भी चीज़ नहीं जानते हैं।
अंत में हम यहाँ इस बात पर चेतावनी देते हैं कि कुछ हदीसें ऐसी आई हैं जो इस बात का पता देती हैं कि पत्नी के गर्भवती होने का अज्र व सवाब अल्लाह के रास्ते में रोज़ा रखने वाले और क़ियाम करने वाले के अज्र व सवाब के समान है,तथा जन्म देने,दूध पिलाने और दूध छुड़वाने पर अन्य बहुत से अज्र व सवाब का निष्कर्षित होना, किंतु ये मनगढ़ंत और झूठी हदीसें हैं, जिनको रिवायत करना और वर्णन करना जाइज़ नहीं है सिवाय इसके कि वह चेतावनी के तौर पर हो,तथा हमारी साइट पर इनमें से कुछ का प्रश्न संख्या (121557) के उत्तर में उल्लेख हो चुका है।