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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यदि दो मुर्तद एक साथ इस्लाम स्वीकार कर लें तो वे दोनों अपने निकाह पर बरक़रार रखे जायेंगे,जिस प्रकार कि दो असली काफिर अपने निकाह पर बरकरार रखे जाते हैं, जैसाकि इसका वर्णन प्रश्न संख्या : (118752) के उत्तर में गुज़र चुका है।
और यदि पति और पत्नी में से कोई एक इस्लाम स्वीकार कर ले,और दूसरे का इस्लाम विलंब हो जाए यहाँ तक कि औरत की इद्दत समाप्त हो जाए, तो अधिकतर विद्वानों के निकट निकाह का नवीकरण करना आवश्यक है।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “यदि पति और पत्नी में से कोई मुसलमान बन जाए,और दूसरा इस्लाम से पीछे रह जाए यहाँ तक कि औरत की इद्दत समाप्त हो जाए,तो सामान्य विद्वानों के कथन के अनुसार निकाह टूट जायेगा। इब्ने अब्दुल बर्र ने कहा : विद्वानों ने इसमें मतभेद नहीं किया है, सिवाय थोड़ी चीज़ के जो नखई से वर्णन की जाती है, जिसमें उन्हों ने विद्वानों के समूह से अलग थलग विचार अपनाया है,उस पर किसी ने उनका अनुसरण नहीं किया है,उनका विचार है कि उसे उसके पति की ओर लौटा दिया जायेगा,भले ही अवधि लंबी हो गई हो, क्योंकि इब्ने अब्बास ने रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ैनब को उनके पति अबुल आस पर उनके पहले निकाह के साथ ही लौटा दिया था। इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। और अहमद ने इस से दलील पकड़ी है। उनसे कहा गया: क्या यह बात रिवायत नहीं की जाती है कि आप ने उन्हें एक नये निकाह के साथ लौटाया ॽ तो उन्हों ने कहा : उसकी कोई असल (आधार) नहीं है। तथा कहा गया है कि : उनके इस्लाम लाने और उनके अपने पति की ओर लौटाये जाने के बीच आठ साल की अवधि थी।” किताब “अल-मुग़नी” (7 / 188) से समाप्त हुआ।
तथा कुछ विद्वानों ने इस बात को चयन किया है कि निकाह नहीं टूटेगा यद्यपि इद्दत समाप्त हो जाए।अतः अगर पति और पत्नी इद्दत समाप्त होने के बाद एक दूसरे की ओर पलटना चाहें तो दोनों के लिए ऐसा करना जाइज़ और निकाह के अनुबंधन के नवीकरण की आवश्यकता नहीं है।
इस कथन को शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या और उनके शिष्य इब्नुल क़ैयिम ने चयन किया है और शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुमुल्लाह ने इसे राजेह करार दिया है।
और इन लोगों ने अबुल आस की पिछली हदीस से दलील पकड़ी है,और इस बात से कि सुन्नत (हदीस) में इस मामले को इद्दत के समाप्त होने से निर्धारित करना वर्णित नहीं है।
देखिए: “अश्शरहुल मुम्ते” (12 / 245 – 248).
इस कथन के आधार पर, आप दोनों अपने पिछले निकाह पर बरक़रार हैं,निकाह के अनुबंधन के नवीकरण की आवश्यकता नहीं है।
हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आप दोनों को हर भलाई की तौफीक़ प्रदान करे।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।