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क्या शिर्क (अनेकेश्वरवाद) से तौबा करने वाले के लिए उस से होने वाले शिर्क के सभी कामों को याद करना अनिवार्य है ताकि वह उनसे तौबा करे, या कि यह शैतान का वसवसा है ताकि वह तौबा और इस्लाम में प्रवेश करने से घृणित कर दे ॽ या कि केवल शहादतैन (अर्थात ला-इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह) कहना आप के लिए उसमें प्रवेश करने के लिए काफी है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
शिर्क या उसके अलावा अन्य पापों को करने वाले के लिए सभी प्रकार के गुनाहों को याद करना अनिवार्य नहीं है, बल्कि उसके लिए इतना काफी है कि वह एक सामान्य तौबा में इख्लास (सच्चाई व ईमानदारी) से काम ले जो उसके स्वीकार किए जाने की शर्तों को सम्मिलित हो।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्यह ने “अल-फतावा अल-कुब्रा” (5/281) में फरमाते हैं : “जिस व्यक्ति ने एक सामान्य तौबा किया तो यह उसके सभी गुनाहों की माफ़ी की अपेक्षा करती है, यद्यपि उसने सभी गुनाहों को याद न किया हो,सिवाय इसके कि इस सामान्य तौबा का कोई विरोधक हो जो उसे विशिष्ट कर देता हो, उदाहरण के तौर पर कुछ गुनाह ऐसे हों कि जिन्हें यदि वह याद रखता तो उनसे तौबा नहीं करता ; क्योंकि वह उसका पक्का संकल्प रखता था,या उसका मानना यह था कि वह अच्छा है बुरा नहीं है,तो जो गुनाह ऐसा है कि यदि वह उसे याद रखता तो उससे तौबा नहीं करता तो वह तौबा में दाखिल नहीं होगा,और यदि वह गुनाह ऐसा है कि यदि वह उसे याद रखता तो उससे तौबा करता तो सामान्य तौबा उसे सम्मिलित हो जायेगी।” अंत हुआ।
तथा इमाम इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने “मदारिजुस्सालिकीन” (1/283) में फरमाया : “गुनाह से तौबा करने में जल्दी करना तुरंत अनिवार्य है,और उसे विलंब करना जाइज़ नहीं है,तो जब उसने उसे विलंब कर दिया तो विलंब करने के कारण उसने दोष (पाप) किया, फिर यदि उसने गुनाह से तौबा कर लिया तो उसके ऊपर एक दूसरा तौबा बाक़ी रह गया और वह तौबा को विलंब करने से तौबा करना है, जबकि तौबा करने वाले के दिल में यह बात बहुत कम ही आती है,बल्कि उसके दिमाग में यह बात होती है कि जब उसने गुनाह से तौबा कर लिया तो उसके ऊपर कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गई,हालांकि उसके ऊपर तौबा को विलंब करने से तौबा करना बाक़ी है,और इस से केवल सामान्य रूप से उस गुनाह से जिसे वह जानता है और जिसे वह नहीं जानता है, तौबा करना ही नजात दिला सकता है,क्योंकि बंदा अपने जिन गुनाहों को नहीं जानता है वे उनसे बहुत अधिक हैं जिन्हें वह जानता है,और उसका उस से अनभिज्ञ और अनजान होना उस पर पकड़ न किए जाने में कोई लाभ नहीं देगा यदि वह जानकारी करने पर सक्षम था,क्योंकि वह ज्ञान और अमल दोनों को त्याग करने का दोषी है,अतः उसके हक़ में अवज्ञा (पाप करना) अधिक गंभीर है,तथा सहीह इब्ने हिब्बान में वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“इस उम्मत में शिर्क चींटियों की धीमी चाल से भी अधिक गुप्त और छिपा हुआ है।” तो अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, तो उस से छुटकारा का रास्ता क्या है ॽआप ने फरमाया : यह कि तुम कहो :
अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका अन उशरिका व अना आलमो,व अस्तग़फिरूका लिमा ला आलमो” अर्थात् ऐ अल्लाह, मैं तेरा शरण चाहता हूँ इस बात से कि मैं तेरे साथ शिर्क करूँ इस हाल में कि मैं जानता हूँ,और तेरी क्षमा चाहता हूँ उस चीज़ से जिसे मैं नहीं जानता।” तो यह उस चीज़ से क्षमा मांगना है जिसे अल्लाह तआला जानता है कि वह गुनाह है और बंदा उसे नहीं जानता है। तथा सहीह हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप अपनी नमाज़ में यह दुआ करते थे:
“अल्लाहुम्मग़्-फिर् ली ख़तीअती व जह्ली,व इस्राफी फी अम्री,वमा अन्ता आलमो बिहि मिन्नी,अल्लाहुम्मग-फिर् ली जिद्दी व हज़्ली,व खतई व अम्दी,व कुल्लो ज़ालिका इंदी,अल्लाहुम्मग़ फिर ली मा क़द्दम्तो व मा अख्खरतो,वमा असरर्तो वमा आलन्तो, वमा अन्ता आलमों बिहि मिन्नी,अन्ता इलाहिय्या ला इलाहा इल्ला अन्ता”
अर्थात् ऐ अल्लाह! मेरी गलती, मेरी नादानी (मूर्खता),और मेरे अपने मामले में सीमा उल्लंघन को और जिसे तू मुझसे अधिक जानता है, सबको माफ कर दे। ऐ अल्लाह तू मेरी संजदीगी, मेरे मज़ाक,मेरी गलती और मेरे जान बूझकर किए गए गुनाह को क्षमा कर दे, और ये सब मेरे अंदर मौजूद हैं, ऐ अल्लाह ! तू मुझे माफ कर दे जो कुछ में ने पहले किया और जो कुछ पीछे किया, जो कुछ छुपाकर किया और जो कुछ खुलेआम किया,और जो तू मुझसे अधिक जानता है, तू मेरा पूज्य है, तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं।
तथा दूसरी हदीस में है कि : “अल्लाहुम्मग़ फिर ली ज़ंबी कुल्लहू ,दिक़्कहू व जिल्लह,खत्अहू व अम्दहू ,सिर्रहू व अलानीयतहू,अव्वलहू व आखिरहू।”
अर्थात् ऐ अल्लाह! तू मेरे समस्त पाप क्षमा कर दे,छोट और बड़े,गलती से होने वाले और जानबूझकर किए गए,गुप्त और खुलेआम,पहले और पिछले।
तो यह सामान्यता और व्यापकता इसलिए है ताकि तौबा उन सभी गुनाहों को सम्मिलित हो जाए जिन्हें बंदा जानता और जिन्हें नहीं जानता है।” अंत हुआ