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निश्चित रूप से यह बात सर्वश्रेष्ठ है कि दान करते समय नाम को ज़ाहिर न किया जाए, किंतु कुछ परिस्थितियों में जबकि आदमी के लिए उस व्यक्ति के नाम को गुप्त रखना संभव नहीं होता है जिसने धन का अनुदान किया है, तो क्या उसके लिए यह कहना जाइज़ है कि यह धन मुझे एक व्यक्ति ने अनुदान करने के लिए दिया है, या कि यह झूठ समझा जायेगा ?
आप से अनुरोध है कि हमें अपने सुझाव से अवगत करायें ताकि मैं दिखावा या शोहरत (प्रसिद्धि) और पाखण्ड में न पड़ूँ और ताकि मैं अपनी नीयत को अल्लाह के लिए खालिस कर सकूँ।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
नफ्ली दान (स्वैच्छिक सदक़ा) को गुप्त रखना उसे ज़ाहिर करने से बेहतर है, अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘सात लोगों को अल्लाह तआला उस दिन अपने साये तले साया देगा जिस दिन कि उसके सिवा कोई अन्य साया न होगा - उनमें से आप ने उल्लेख किया - एक वह आदमी जिसने सदक़ा किया तो उसे इस तरह गुप्त रखा कि जो कुछ उसका दाहिना हाथ खर्च करता है उसे उसका बायां हाथ नहीं जानता।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1334) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1712) ने रिवायत किया है।
और आप का फरमान : (यहाँ तक कि न जाने . . .) सदक़ा को गुप्त रखने में अतिशयोक्ति से काम लिया गया है, जबकि कभी कभार उसके प्रत्यक्ष करने में कोई हित होता है, जैसे कि उसे देखकर लोगों का उसका अनुसरण करना।
दूसरा :
अगर इंसान अपने धन का सदक़ा निकाले, फिर दूसरे से कहे कि यह धन फलाँ की ओर से है तो यह झूठ है और झूठ बोलना हराम है।
यदि वह इस मामले को गुप्त रखना चाहता है ताकि कोई इस सदक़ा को न जान सके, तो तौरिया और तारीज़ का इस्तेमाल करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है यदि इसकी ज़रूरत है। (तौरिया कहते हैं : असल बात को छिपाकर दूसरी बात ज़ाहिर करना, तारीज़ : किसी चीज़ पर ढाल कर बात कहना)
उसके लिए संभव है कि कहे : यह धन मेरा नहीं है, और इस से उसका अभिप्राय यह हो कि वह धन अल्लाह का धन है।
या कहे : यह धन एक सदक़ा करने वाले का धन है जो इस को दान करना चाहता है, और इस से उसका अभिप्राय स्वयं से हो, तथा इसके समान अन्य सच्ची इबारतें जिस से सदक़ा को गुप्ता रखने का मक़सद प्राप्त हो जाए।