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मैं एक अवधि से इस्लाम को व्यवहार में ला रही हूँ और यदि अल्लाह ने चाहा तो मैं उसे स्वीकार करने की इच्छा रखती हूँ, लेकिन मुझे कुछ खतरनाक समस्याओं का सामना है। मैं और मेरे पति एक अवधि से वैवाहिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, बावजूद इसके कि मामला ठीक ठाक चल रहा है किंतु मै सुनिश्चित नहीं हूँ कि स्थिति सदा इसी तरह बनी रहेगी क्योंकि उसे सख्त क्रोध के दौरे पड़ते हैं, और जब से हमारे वकील ने मुझे इसकी सलाह दी है, मैं गंभीरता से उससे अलग होने के बारे में सोच रही हूँ।
समस्या यह है कि अब मुझे उससे प्यार नहीं है, इसके अलावा वह मुझे इस्लाम स्वीकारने से रोकता है तथा वह स्वयं भी इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करता है, और उसका कहना है कि वह मेरे इस्लाम क़बूल करने पर हमारे अलग हो जाने को प्राथमिकता देगा। दूसरी समस्या यह है कि मेरे पास दो बेटियाँ हैं जो एक हिंदू स्कूल में पढ़ रही हैं, तो मेरे इस्लाम में प्रवेश करने के बाद उन दोनों से संबंधित शरीअत का हुक्म (प्रावधान) क्या है। मेरी मुलाक़ात एक मुसलमान व्यक्ति से हुई है जिससे मैं प्यार करती हूँ और वह भी मुझे बहुत प्यार करता है, वह मुझसे दो बार शादी करने का अनुरोध कर चुका है, ज्ञात रहे कि मैं उसके साथ नहीं सेती हूँ और न ही इसतरह की कोई चीज़ मेरे दिल में है। और वह मेरी दोनों बेटियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है यदि वे दोनों भी इस्लाम में प्रवेश कर लेती हैं। उसने कहा है कि वह साल के अंत तक प्रतीक्षा करेगा उसके बाद वह अपने मामले में व्यस्त हो जायेगा, क्योंकि कुछ अन्य महिलाएं भी हैं जिनके साथ वह घर बसा सकता है, परंतु वह मुझे उनपर प्राथमिकता देता है। मुझे बहुत सी चीज़ों के अंदर अपने मामले में सावधानी और दूरदर्शिता से काम लेने की आवश्यकता है, इसके होते हुए भी में अपने पति के प्रति खेद और पाप का आभास करती हूँ, क्योंकि वह हमारे विवाह को सफल बनाने की चेष्टा करता है। लेकिन खेद की बात यह हैं कि धर्म बहुत बड़ी रूकावट बनता है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जब बात यह है कि आपका पति आपको इस्लाम से रोकता है और स्वयं उसमें प्रवेश करने से इनकार करता है और जुदाई (संबंध विच्छेद) को इस्लाम पर प्राथमिकता देता है, और यह कि आपने उसे सत्य धर्म से संतुष्ट करने की कोशिश की लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ, तो इसका मतलब यह होता है कि उसके अंदर कोई भलाई नहीं है। फिर आप यह भी कह रही हैं कि वह गुस्सा करनेवाला, तेज़ मिजाज़ और तीव्र स्वभाव वाला (रुष्ट) आदमी है, और यह कि उसका अच्छा होना क्षणिक और अस्थायी है और यह कि आप उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती हैं, यानी यह आदमी जैसाकि लोग कहते हैं : न दीन का है न दुनिया का, तो फिर उसके साथ बाक़ी रहने में क्या फायदा है। इसलिए ऐसी स्थिति में आपके लिए सलाह यह है कि उससे तुरंत अलग हो जाएं, और अपनी बेटियों के पालन पोषण का अधिकार प्राप्त करने के लिए अनथक प्रयास करें क्योंकि उन दोनों का पालन क्योंकि उनका पोषण इस्लाम पर हुआ है और इस तरह की हालत में इस्लामी शरीअत का प्रावधान और नियम यह है कि जुदाई के समय बच्चों के पालन पोषण का अधिकार पति और पत्नी में से मुसलमान पक्ष को मिलेगा, क्योंकि इस्लाम सर्वोच्च है उसपर कोई सर्वोच्च नहीं हो सकता।
जहाँ तक कहानी के दूसरे भाग यानी उस आदमी का संबंध है जिसे आप मुसलमान कह रही हैं, तो आपके लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वह एक पवित्र और सतीत्व वाला आदमी है, बेहयाई, दुराचार और पाप करने वाला नहीं है, और आप शादी से पहले उसके साथ कोई संबंध बनाने से बाज़ रहें। यदि उसका सतीत्व और उसके धर्म की शुद्धता सिद्ध हो जाए और तो मैं आपको अपने वर्तमान पति से, यदि आप उससे अलग हो जाती हैं तो, शरई इद्दत पूरा करने के बाद इस आदमी से शादी करने की सलाह देता हूँ। और हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह आप को अपनी दया से ढाँप ले, आपके लिए भलाई को आसान कर दे, और इस दीन में प्रवेश करने और कुफ्र और उसके अनुयायियों से मुक्ति पर आपकी मदद करे। तथा आप फिरऔन की मुसलमान बीवी का उसके काफिर पति के साथ कहानी को याद करें जिसके बारे में अल्लाह तआला का फरमान है :
وَضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا لِلَّذِينَ ءَامَنُوا اِمْرَأَةَ فِرْعَوْنَ إِذْ قَالَتْ رَبِّ ابْنِ لِي عِنْدَكَ بَيْتًا فِي الْجَنَّةِ وَنَجِّنِي مِنْ فِرْعَوْنَ وَعَمَلِهِ وَنَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ [سورة التحريم : 11]
‘‘और अल्ला ने ईमान लानेवालों (विश्वासियों) के लिए फिरऔन की बीवी का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जब उसने कहा : ऐ मेरे पालनहार ! मेरे लिए अपने पास स्वर्ग में एक घर बना, और मुझे फिरऔन और उसके (दुष्ट) कार्य से छुटकारा प्रदान कर, और मुझे ज़ालिम (अत्याचारी) क़ौमसे मुक्ति दे।” (सूरतुत्तहरीम : 11).
तथा अल्लाह तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद पर दया और शांति अवतरित करे।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-मुनज्जिद