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नास्तिकों (अविश्वासियों) की छवि अपनाने के नियम

18-01-2012

प्रश्न 21694

पश्चिम की छवि अपनाने की सीमाएं क्या हैं ॽ क्या हर वह चीज़ जो नई है और हमारे पास पश्चिम से आती है तो वह उनकी छचि अपनाना है ॽ दूसरे शब्दों में : हम किसी चीज़ पर कैसे हुक्म लगाएं गे कि वह हराम (निषिद्ध) है इसलिए कि वह काफिरों की छवि अपनाना है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इब्ने उमर से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने किसी क़ौम (जाति) की छवि अपनाई वह उन्हीं में से है।” इसे अबू दाऊद ने (अल्लिबास -वस्त्र- /3512) रिवायत किया है, अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3410) में कहा कि यह हदीस हसन सहीह है।

अल-मुनावी और अल-अलक़मी ने कहा : अर्थात देखने में (प्रत्यक्ष में) उनके पोशाक की तरह पोशाक पहना, तथा उनके पहनावे और उनके कुछ कार्यों में उनके तरीक़े और चाल चलन को अपनाया। (अंत हुआ). तथा क़ारी ने कहा : अर्थात् जिसने अपने आप को पोशाक वगैरह में काफिरों के समान ठहरा लिया, या फासिक़ों (पापियों) या फाजिरों (दुराचारियों), या अह्ले तसव्वुफ तथ सदाचारी और पुनीत लोगों की छवि अपनाया (तो वह उन्हीं में से है) : अर्थात् पाप व बुराई और भलाई व नेकी में ।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने “अस्सिरातुल मुस्तक़ीम” में फरमाया : इमाम अहमद वगैरह ने इस हदीस से दलील पकड़ी है, और इस हदीस की कम से कम स्थिति यह है कि यह उनके साथ समानता अपनाने के हराम (निषिद्ध) होने की अपेक्षा करती है,जैसाकि अल्लाह तआला के इस फरमान में है:

مَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ

‘‘और तुम में से जो उनसे दोस्ती रखे वह उन्हीं में से है।’’

तथा वह अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा के इस कथन के समान है कि : जिसने अनेकेश्वरवादियों के देश में निर्माण किया,उनके नैरोज़ और महरजान नामी त्योंहारों को मनाया और उनकी छवि और समानता अपनाई यहाँ तक उसकी (इसी स्थिति में) मृत्यु हो गई,तो वह क़ियामत के दिन उन्हीं के साथ उठाया जायेगा।

तथा इसका अभिप्राय संपूर्ण समानता और छवि अपनान भी लिया जा सकता है, तो ऐसी स्थिति में वह कुफ्र का कारण है,और उनमें से कुछ के हराम होने की अपेक्षा करता है। तथा उसका मतलब यह भी लिया जा सकता है कि वइ उस चीज़ के अंदर उन्हीं में से है जिसमें उनकी समानता और छवि अपना रहा है।यदि वह कुफ्र,या पाप,या उसका प्रतीक है तो उसका हुक्म उसी तरह होगा। तथा इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के माध्यम से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने गैर अरबों की नकल (समानता) करने से मनाही किया है और फरमाया है : “जिसने किसी क़ौम की छवि अपनाई वह उन्हीं में से है।” और इसे क़ाज़ी अबू याला ने उल्लेख किया है। और इसी से कई विद्वानों ने ग़ैर मुसलमानों के पोशाक में से कई चीज़ों के मक्रूह होने पर दलील पकड़ी है। (अंत हुआ) देखिए : औनुल माबूद शरह सुनन अबू दाऊद।

काफिरों की छवि अपनाने के दो प्रकार हैं :

हराम और वैध (अवर्जित)

प्रथम : हराम और निषिद्ध : ज्ञान और जानकारी रखते हुए कोई ऐसा काम करना जो काफिरों के धर्म की विशेषताओं में से है,और वह चीज़ हमारी शरीअत में वर्णित न हो . .तो यह हराम है। तथा वह कबीरा गुनाहों में से भी हो सकती हैं, बल्कि कुछ प्रमाणों के हिसाब से कुफ्र भी हो जाता है। चाहे आदमी ने उसे काफिरों के साथ सहमति जताते हुए किया है,या मन की इच्छा (वासना) की वजह से,या किसी संदेह और आशंका के कारण जो उसके मन में विचार डालती हो कि उसका करना दुनियो और आखिरत में लाभदायक है।

यदि कहा जाए कि क्या वह व्यक्ति जो इस कार्य को करता है,हालांकि वह जाहिल व अनभिग है तो क्या वह इस से पापी होगा,जसैकि कोई क्रिसमस मनाता है ॽ

तो उसका उत्तर यह है कि : जाहिल (अनजाना) आदमी अपनी अनभिज्ञता के कारण गुनहगार नहीं होगा,किंतु उसे शिक्षित किया जायेगा,यदि वह फिर भी उस पर अटल रहता है तो वह गुनहगार होगा।

दूसरा प्रकार : अवर्जित : कोई ऐसा कार्य करना जो मौलिक रूप से काफिरों से नहीं लिया गया है,किंतु काफिर लोग भी उसे करते हैं। तो इसमें नकल और समानता का निषेद्ध नहीं है,लेकिन उसमें विरोध करने का लाभ छूट सकता है।

“दुनिया के कामों में यहूदियों व ईसाईयों वगैरह की नकल करना और छवि अपनाना कुछ शर्तों के साथ ही जाइज़ है :

1- यह उनके अनुष्ठानों,परंपराओं और प्रतीकों में से न हो जो उनके साथ विशिष्ट है।

2- यह उनकी शरीअत में से न हो,और उसका उनके धर्म शास्त्र से होना विश्वसनीय उद्धरण से साबित होगा,उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला अपनी किताब में या अपने पैगंबर की ज़ुबानी या मुतवातिर उद्धरण से हमें सूचना दे, उदाहरण के तौर पर पिछले समुदायों में वैध अभिवादन का साष्टांग प्रणाम।

3- हमारी शरीअत में उसका विशेष वर्णन न हो,यदि उसमें सहमति या विरोध के साथ कोई विशेष वर्णन मौजूद है,तो जो कुछ हमारी शरीअत में आया है उसके द्वारा उस काम से निस्पृह हो जायेंगे।

4- यह सहमति शरीअत के किसी मामले के विरोध का कारण न बनती हो।

5- यह सहमति उनके त्योहारों में न हो।

6- यह सहमति अपेक्षित आश्यकता के अनुसार हो उससे बढ़कर न हो।”

देखिएः किताब 'अस्सुनन वल आसार फिन्नहिये अनित् तशब्बुहे बिल-कुफ्फार' लेखकः सुहैल हसन, पृष्ठः 58-59.

नफ्ल (स्वेच्छिक) रोज़े बिद्अत
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