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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।जब नमाज़ का वक़्त आ जाये और हवाई जहाज़ अभी उड़ रहा हो, और किसी हवाई हड्डे पर उस के उतरने से पूर्व ही नमाज़ के समय के निकल जाने का भय हो, तो विद्वानों की इस बात पर सर्व सहमति है कि आदमी के लिए अपनी शक्ति भर रूकूअ़, सज्दा और क़िबला की ओर मुँह करते हुये उस नमाज़ की आदायगी अनिवार्य है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : "अतएव अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।" (सूरतुत् तग़ाबुन: 16)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ तो उसे अपनी ताक़त भर करो।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है, हदीस संख्या : 1337)
किन्तु यदि यह पता चल जाये कि नमाज़ का समय निकलने से इतना पहले विमान भूमि पर उतर जायेगा जो उस नमाज़ की अदायगी के लिए काफी होगा, या यह कि वह नमाज़ उन नमाज़ों में से है जो दूसरी नमाज़ के साथ एकत्र करके पढ़ी जाती है जैसेकि ज़ुहर की नमाज़ अस्र के साथ, और मग्रिब की नमाज़ इशा के साथ, या यह पता चल जाये कि दूसरी नमाज़ के वक़्त के निकलने से इतना पहले विमान उतर जायेगा जो उन दोनों नमाज़ों को पढ़ने के लिए काफी होगा, तो जमहूर उलमा (विद्वानों की बहुमत) इस बात की ओर गये हैं कि हवाई जहाज़ में उस नमाज़ को पढ़ना जाइज़ है, क्योंकि उसके समय के शुरू होने के साथ ही उसे अदा करने का अनिवार्य रूप से आदेश दिया गया है, जबकि मालिकीया में से कुछ मुताख्खेरीन (बाद में आने वाले) विद्वानों का मत है कि हवाई जहाज़ में नमाज़ पढ़ना शुद्ध नहीं है, क्योंकि नमाज़ के शुद्ध होने की शर्तों में से यह भी है कि नमाज़ ज़मीन पर, या ज़मीन से मिली हुई चीज़ उदाहरण के तौर पर सवारी, या नौका पर पढ़ी जाये, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "मेरे लिए धरती नमाज़ पढ़ने की जगह (मस्जिद) और पाक (पवित्र) बना दी गयी है।" इसे बुखारी ने तयम्मुम के अध्याय (हदीस संख्या :335) और मुस्लिम ने मसाजिद के अध्याय (हदीस संख्या : 521) में रिवायत किया है।