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क्या आप इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि केवल सर्वशक्तिमान अल्लाह से कैसे शिकायत की जाएगीॽ सूरत यूसुफ़ में, अल्लाह सर्वशक्तिमान याक़ूब अलैहिस्सलाम की ज़बान पर फरमाता है :
إنما أشكو بثي وحزني إلى الله، وأعلم من الله ما لا تعلمون [سورة يوسف : 96]
“मैं तो अपने दु:ख और अपने ग़म की शिकायत केवल अल्लाह ही से करता हूँ और मैं अल्लाह की ओर से वह जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।” (सूरत यूसुफ़ : 96), तथा सूरतुल-मुजादिला में है :
قد سمع الله قول التي تجادلك في زوجها وتشتكي إلى الله والله يسمع تحاوركما إنّ الله سميع بصير [سورة المجادلة : 1]
“निश्चय अल्लाह ने उस स्त्री की बात सुन ली, जो (ऐ रसूल!) आपसे अपने पति के बारे में झगड़ रही थी तथा अल्लाह से शिकायत कर रही थी और अल्लाह तुम दोनों का वार्तालाप सुन रहा था। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।” (सूरतुल-मुजादिला : 1)
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
शिकायत केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान से होनी चाहिए। क्योंकि यह बंदे की पूर्ण पूज्यता, उसके भरोसे, अपने पालनहार की ओर उसकी निर्धनता और आवश्यकता का हिस्सा है, तथा यह उसके अपने पालनहार के साथ लोगों से पूरी तरह बेनियाज़ होने का प्रतीक है।
शैख़ुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“शिकायत केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान से होती है, जैसा कि सदाचारी बंदे ने कहा : إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ “मैं अपनी चिंता और दुख को केवल अल्लाह के सामने प्रकट करता हूँ।” [सूरत यूसुफ़ : 86] “मिनहाजुस-सुन्नह अन-नबविय्यह” (4/244) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपनी किताब (क़ुरआन) में, उत्तम धैर्य, उत्तम क्षमा और उत्तम परित्याग का आदेश दिया है। तो मैंने शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह – अल्लाह उनकी आत्मा को पवित्र करे – को कहते हुए सुना : उत्तम धैर्य वह है जिसमें कोई शिकायत न हो, और न ही उसके साथ (शिकायत हो), उत्तम क्षमा वह है जिसके साथ निंदा (फटकार) न हो। और उत्तम परित्याग वह है जिसके साथ कोई कष्ट (तकलीफ़) न पहुँचाया जाए। और अल्लाह महिमावान् से शिकायत करना, धैर्य के विपरीत नहीं है। क्योंकि याक़ूब अलैहिस्सलाम – उनपर अल्लाह की शांति हो – ने उत्तम धैर्य का वादा किया था, और नबी जब वादा करता है, तो वह उसका उल्लंघन नहीं करता है। फिर उन्होंने कहा : إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ “मैं तो अपने दु:ख और अपने ग़म की शिकायत केवल अल्लाह ही से करता हूँ।” (सूरत यूसुफ़ : 86)। इसी तरह अय्यूब अलैहिस्सलाम के बारे में अल्लाह ने सूचना दी है कि उसने उन्हें धैर्यवान् पाया, साथ ही उनका यह कथन भी उल्लेख किया है :
مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ [الأنبياء : 83]
“मुझे तकलीफ़ पहुँची है, और तू दया दिखाने वाले सभी लोगों में सबसे दयालु हैं।” (सूरतुल अंबिया : 83)।
वास्तव में, धैर्य के विपरीत अल्लाह की शिकायत करना है, अल्लाह से शिकायत करना नहीं है। जैसा कि किसी ने एक व्यक्ति को देखा जो एक दूसरे आदमी से निराहार और आवश्यकता की शिकायत कर रहा था, तो उन्होंने कहा : हे! तू उस हस्ती की शिकायत जो तुझपर दया करती है, उस आदमी से कर रहा है, जो तुझपर दया नहीं करता हैॽ फिर उन्होंने ये काव्य पद पढ़े (जिसका अर्थ है) :
अगर तू किसी विपत्ति से ग्रस्त हो, तो उसके प्रति धैर्य से काम ले ** उदार व्यक्ति के धैर्य की तरह, क्योंकि वह (अल्लाह) तुझे सबसे अधिक जानने वाला है।
और यदि तूने उसकी शिकायत आदम के बेटे से की, तो केवल ** तू अत्यंत दयावान् (अल्लाह) की शिकायत उससे करता है जो दया नहीं करता।”
“मदारिजुस-सालिकीन” (2/160) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा उन्होंने यह भी कहा :
“शिकायत के दो प्रकार है : उनमें से एक है : अल्लाह से शिकायत करना। तो यह शिकायत धैर्य के विरुद्ध नहीं है, जैसा कि याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा : إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ “मैं तो अपने दु:ख और अपने ग़म की शिकायत केवल अल्लाह ही से करता हूँ।” (सूरत यूसुफ़ : 86) साथ ही उनका यह भी कहना है : فصبر جميل “तो अब धैर्य ही बेहतर है।” और अय्यूब अलैहिस्सलाम ने कहा : مسني الضر “मुझे तकलीफ़ पहुँची है।” इसके साथ ही अल्लाह ने उन्हें धैर्यवान् भी कहा है। तथा धैर्य रखने वालों के सरदार सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ऐ अल्लाह! मैं तुझसे अपनी शक्ति की कमज़ोरी और अपने उपाय की कमी की शिकायत करता हूँ ...”।
दूसरा प्रकार : विपत्ति ग्रस्त व्यक्ति का ज़बाने हाल और ज़बाने क़ाल (अर्थात् अपनी दशा और अपने शब्दों द्वारा) शिकायत करना। यह शिकायत धैर्य के साथ इकट्ठा नहीं हो सकती, बल्कि यह उसके विपरीत है और उसे व्यर्थ कर देती है। इसलिए, उस (अल्लाह) की शिकायत करने और उससे शिकायत करने के बीच अंतर है।” “उद्दतुस-साबिरीन” (पृष्ठ 17) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अल्लामा अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“अल्लाह से शिकायत करना, धैर्य के विपरीत नहीं है। बल्कि जो उसके विपरीत है, वह प्राणियों से शिकायत करना है।”
“तफ़सीर अस-सा’दी” (पृष्ठ 411) से उद्धरण समाप्त हुआ।
सारांश यह कि अल्लाह से शिकायत करना : यह है कि बंदा अगर किसी चीज़ से पीड़ित हो, या उसके साथ कोई मामला घटित हो जाए, या उसे किसी चीज़ की आवश्यकता पड़ जाए : तो वह केवल अल्लाह से शिकायत करे, अपनी ज़रूरत को उसी की ओर ले जाए और उसी के सामने पेश करे (जैसा कि अंबिया अलैहिमुस्सलाम अपनी जरूरतों और शिकायतों में किया करते थे)। इसलिए, वह अपने पालनहार का ज़िक्र करे, उससे दुआ करे और रोए-गिड़गिड़ाए, पश्चाताप करे और उसकी ओर लौटे, और विविध प्रकार की इबादतों के द्वारा उसकी निकटता प्राप्त करे; क्योंकि यह सब उसकी पूर्ण पूज्यता और उसके अल्लाह पर भरोसा रखने के अध्याय से है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।