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मैंने शाबान के महीने में अपने शिशु को जन्म दिया, फिर मैं बीमार हो गई और निफास का खून केवल तीन दिनों तक आया, फिर वह रुक गया। इसलिए मैंने ग़ुस्ल किया और नमाज़ पढ़ी। और कोई खून नहीं निकला यहाँ तक कि शाबान का महीना खत्म हो गया और रमज़ान शुरू हो गया। और रमज़ान का एक हफ्ता बीत जाने के बाद, डॉक्टर ने मेरे लिए एक एंटीबायोटिक निर्धारित किया। चुनांचे मैं रोज़ा रख रही थी, लेकिन दिनभर खून नहीं निकलता था परंतु मग़रिब से पहले केवल कुछ बूंदें निकलती थीं। रमज़ान के पूरे महीने के दौरान मेरी यही स्थिति रही, मुझे यह पता नहीं चल सका कि मैं शुद्ध हो गई हूँ या नहीं, लेकिन मैंने पूरे महीने रोज़ा रखा। तो क्या मुझे रोज़ा दोहराना चाहिए या नहीं?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथमः
निफास के लिए कोई न्यूनतम अवधि नहीं है। चुनांचे यदि कोई महिला जन्म देने के केवल कुछ दिनों के बाद ही निफास (प्रसवोत्तर रक्तस्राव) से पवित्र हो जाए, तो वह गुस्ल करेगी और नमाज़ पढ़ेगी और रोज़ा रखेगी।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा:
“जब भी महिला शुद्ध हो जाए (अर्थात रक्तस्राव समाप्त हो जाए), भले ही वह जन्म देने के एक दिन या कुछ थोड़े दिनों के बाद ही क्यों न हो, तो वह पवित्र (शुद्ध) हो जाएगी, और उस पर नमाज़ पढ़ना अनिवार्य होगा, और उसका रोज़ा रखना सही होगा और उसके पति के लिए उसके साथ संभोग करना जायज़ होगा।”
इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह के “फतावा नूरुन अलद-दर्ब” से उद्धरण समाप्त हुआ।
एक महिला के - मासिक धर्म या निफास से - शुद्ध होने का पता निम्नलिखित दो संकेतों में से किसी एक के द्वारा चलता है :
प्रथमः श्वेत प्रदर का उत्सर्जन।
दूसराः पूर्ण सूखापन इस तौर पर कि रक्त या पीले या भूरे रंग के निर्वहन का कोई निशान बाक़ी न रहे।
द्वितीयः
निफास से पूरी तरह शुद्ध होने के बाद दिखाई देने वाली रक्त की इन कुछ बूंदों को निफास का हिस्सा नहीं माना जाएगा। इस आधार पर, महिला इस स्थिति में नमाज़ पढ़ेगी और रोज़ा रखेगी।
“फतावा स्थायी समिति – द्वितीय संग्रह (4/259)” में आया है :
“उसकी पत्नी ने रमज़ानुल मुबारक के नौवें दिन जन्म दिया, और जन्म देने के नौ दिन बाद उसका रक्तस्राव बंद हो गया। इसलिए उसने ग़ुस्ल किया और नमाज़ और रोज़ा करना शुरू कर दिया। लेकिन रात आने पर वह देखती थी कि खून की कुछ बूंदें निकलती हैं। जबकि वह दिन के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं देखती थी। तो इसका क्या हुक्म है, और क्या उसकी नमाज़ और उसका रोज़ा सही है?
उत्तर: यदि इस महिला ने रक्तस्राव से शुद्ध पवित्रता देखी थी, तो उसकी नमाज़ और उसका रोज़ा सही है, क्योंकि वह पवित्र महिलाओं के हुक्म में है, तथा वह रात में जो खून की कुछ बूंदें देखती है, उसे निफास नहीं माना जाएगा, और न ही उसे रक्त की संज्ञा दी जाएगी। अतः वह निफास का हुक्म नहीं लेगा।”
उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया:
“एक महिला निफास के दो महीने के बाद और शुद्ध होने के बाद, रक्त की कुछ छोटी बूंदें पाना शुरू करती है। तो क्या वह रोज़ा तोड़ देगी और नमाज़ नहीं पढ़ेगी? या वह क्या करेगी?
तो उन्होंने उत्तर दिया : यदि वह महिला पवित्र हो गई और उसने निश्चित रूप से मासिक धर्म में और निफास में शुद्धता को देख लिया है, मासिक धर्म में शुद्धता से मेरा मतलबः सफेद निर्वहन का उत्सर्जन है, जो कि एक सफेद पानी होता है जिसे महिलाएं अच्छी तरह जानती हैं। तो शुद्धता के बाद जो कुछ भी भूरे या पीले रंग का निर्वहन, या खून का धब्बा, या गीलापन दिखाई देता है, इनमें से कोई भी मासिक धर्म नहीं है। इसलिए यह उसे नमाज़ पढ़ने से नहीं रोकता है और न यह उसे रोज़ा रखने से रोकता है, और न तो यह आदमी को अपनी पत्नी के साथ संभोग करने से रोकता है, क्योंकि यह मासिक धर्म नहीं है। उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं: “हम पीले और भूरे रंग के निर्वहन को कुछ भी नहीं समझते थे।” इसे इमाम बुखारी ने रिवायत किया है, और अबू दाऊद ने इन शब्दों की वृद्धि की है : (तुहर – यानी पवित्र होने - के बाद।) इस हदीस की सनद सहीह है।
इसके आधार पर, हम कहते हैं : निश्चित पवित्रता के बाद घटित होने वाली ये सभी चीज़ें महिला को हानि नहीं पहुँचाती हैं और न तो उसे उसकी नमाज़, उसके रोज़े और उसके पति के उसके साथ संभोग करने से नहीं रोकती हैं। लेकिन उसे चाहिए कि वह जल्दी न करे यहाँ तक की पवित्रता देख ले, क्योंकि कुछ महिलाएं जब रक्तस्राव बंद हो जाता है, तो जल्दी करती हैं और शुद्धता देखने से पहले गुस्ल कर लेती हैं। इसीलिए सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की औरतें अपने कपड़े के टुकड़े उम्मुल-मूमिनीन आयइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास भेजती थीं, - अर्थात वह रुई जिस पर खून लगा होता था - तो वह उनसे कहती थीं : "जल्दबाजी न करें, यहाँ तक सफेद निर्वहन देख लें।” उद्धरण समाप्त हुआ।
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और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।