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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम :
आखिरी तशह्हुद नमाज़ के स्तंभों में से एक स्तंभ है, और पहला तशह्हुद नमाज़ के वाजिबात में से एक वाजिब है, जैसा कि हमने प्रश्न संख्याः (65847), (125897) के उत्तर में उल्लेख किया है।
दूसरा :
मुसलमान को चाहिए कि वह नमाज़ और उसके अलावा के बारे में वर्णित शरई अज़कार (दुआओं) के शब्दों की पाबंदी करे और जितना संभव हो उनमें कुछ भी परिवर्तन न करे।
बुखारी (हदीस संख्याः 6265) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 402) ने इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : "अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे तशह्हुद सिखाया, जबकि मेरी हथेली आप की दोनों हथेलियों के बीच में थी, जिस तरह कि आप मुझे क़ुरआन की सूरत सिखाया करते थे।’’
इसका मतलब : तशह्हुद के शब्दों पर अधिक ध्यान देना है, अतः उनमें न वृद्धि करे और न उनमें कमी करे और न ही उनमें कुछ परिवर्तन करे, जैसा कि इसी तरह का एहतिमाम (ध्यान) पवित्र क़ुरआन के साथ करते थे।
इसके आधार पर, नमाज़ी के लिए यह अनुमति नहीं है कि : वह ‘अस्सलामो अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन’’ (शांति हो हम पर और अल्लाह के सदाचारी बंदों पर) के बजाय ‘‘अस्सलामो अलैका व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन’’ (शांति हो आप पर और अल्लाह के सदाचारी बंदों पर) कहे, क्योंकि यह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वचन में बदलाव है, और क्योंकि यह अर्थ को बदल देता है।
अतः हमारी आपके लिए यही सलाह है कि आप पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित शब्द का पालन करें, और – हमारे ज्ञान के अनुसार – नमाज़ की विधि और इसमें वर्णित अज़कार और दुआओं के विषय में सबसे अच्छी किताब शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह की किताब ''सिफतो सलातिन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम'' है। अतः उस पुस्तक का एक नुस्खा प्राप्त करने, उसे पढ़ने और उसमें वर्णित बातों के अनुसार काम करने की लालायित बनें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।