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हमारे देश में, मस्जिदें के दरवाज़े प्रतिदिन अज़ान से एक चौथाई घंटा (पंद्रह मिनट) पहले खोले जाते हैं, जबकि जुमा के दिन सुबह 11:00 बजे से खोले जाते हैं। अतः जो व्यक्ति (जुमा के लिए) पहली घड़ी में जाना चाहता है, वह क्या करेगाॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
जुमा की नमाज़ के लिए पहले जाना सुन्नत है; क्योंकि बुखारी (हदीस संख्याः 881) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 850) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : ‘‘जिसने शुक्रवार को जनाबत (पत्नी से सहवास) के स्नान की तरह स्नान किया फिर (पहली घड़ी में) जुमा की नमाज़ के लिए (मस्जिद) गया, तो मानो उसने (अल्लाह के मार्ग में) एक ऊंट का बलिदान किया, और जो दूसरी घड़ी में गया तो मानो उसने (अल्लाह के मार्ग में) एक गाय की बलि दी, और जो तीसरी घड़ी में गया, तो वह ऐसा है जैसे उसने (अल्लाह के मार्ग में) एक सींग वाले मेंढे की बलि दी, और जो चौथी घड़ी में गया, तो वह ऐसा है जैसे उसने (अल्लाह के मार्ग में) एक मुर्गी की बलि दी, और जो पांचवी घड़ी में गया, तो वह ऐसा है जैसे उसने एक अंडा (अल्लाह के मार्ग में) पेश किया। फिर जब इमाम (ख़ुत्बा के लिए) निकल आता है, तो फरिश्ते भी ख़ुत्बा सुनने के लिए उपस्थित हो जाते हैं।’’
ये घड़ियाँ सूर्य के उदय होने से शुरू होती हैं, जैसा कि शाफेई और अहमद का मत है।
दूसरा :
जो कोई भी जुमा की नमाज़ के लिए पहली घड़ी में जाना चाहता है, लेकिन वह पाता है कि मस्जिदों के दरवाज़े अज़ान से केवल एक ही घंटा पहले खोले जाते हैं : तो यदि वह कोई ऐसी मस्जिद पाता है जिसका सहन (आँगन) विशाल है : तो वह उसकी ओर जल्दी जाए और वहाँ बैठकर नमाज़ पढ़े, क़ुरआन का पाठ करे और अल्लाह का ज़िक्र करे यहाँ तक कि मस्जिद के दरवाजे खोल दिए जाएँ।
लेकिन अगर उसे ऐसी मस्जिद न मिले, इस प्रकार कि अगर वह मस्जिद जाए तो उसे रास्ते में बैठना पड़े : तो वह अपने घर ही में बैठकर अल्लाह का ज़िक्र करे, नमाज़ पढ़े और क़ुरआन का पाठ करे, यहाँ तक कि जब मस्जिद के खुलने का समय हो जाए, तो वह मस्जिद जाए। इस तरह हम उम्मीद करते हैं कि उसे (जुमा के लिए) जल्दी जाने का अज्र (पुण्य) प्राप्त हो जाएगा।
क्योंकि मस्जिद के लिए जल्दी जाने से अभिप्राय: अल्लाह का ज़िक्र करने के लिए और नमाज़ पढ़ने के लिए उसकी ओर जल्दी जाना है।
अतः जो जल्दी जाने में असमर्थ है, तो वह ज़िक्र करने और नमाज़ पढ़ने में असमर्थ न रहे।
और जिसने भलाई का इरादा किया, और उसे अपनी शक्ति भर किया : तो वह कार्य करनेवाले की तरह होगा।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
"वह शर्त जिसमें आदमी असमर्थ है, वह असमर्थता की वजह से समाप्त हो जाएगा।"
''शर्ह उम्दतुल फिक़्ह'' – किताबुत्-तहारा वल-हज्ज” (1/425) से समाप्त हुआ।
उन्होंने यह भी कहा :
"जिसने भलाई (नेकी) करने का इरादा किया, और अपनी क्षमता भर उसे किया और उसे पूरा करने में असमर्थ रहा : तो उसके लिए कार्य करनेवाले का अज्र (सवाब) है।"
''मजमूउल-फतावा'' (22/243) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 1909) ने सह्ल बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः जो व्यक्ति सच्चाई के साथ शहादत मांगे गा अल्लाह उसे शहीदों के पद पर पहुँचा देगा, अगरचे वह अपने बिस्तर पर मरा हो।''
''औनुल-माबूद'' में फरमाया :
"(अल्लाह उसे शहीदों के पद पर पहुँचा देगा): अर्थात् सच्ची मांग के लिए उसे पुरस्कृत करते हुए। (अगरचे वह अपने बिस्तर पर मरा हो): क्योंकि उन दोनों में से प्रत्येक ने भलाई की नीयत की और अपनी यथाशक्ति उसे कियाः अतः दोनों मूल अज्र (सवाब) में बराबर हो गए।" उद्धरण समाप्त हुआ।
इमाम बुख़ारी (हदीस संख्या : 4423) ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तबूक से लौटते हुए जब मदीना के क़रीब पहुँचे तो फरमाया : "मदीना में कुछ लोग ऐसे हैं कि तुम जो भी रास्ता चले हो और जो भी घाटी तय किए हो, वे तुम्हारे साथ थे।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर! और वे लोग मदीना ही में हैं?! आप ने फरमाया : "वे लोग मदीना ही में हैं, उन्हें उज्ऱ (मजबूरी) ने रोक दिया।"
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने फरमयाः
"ये लोग उस काम का इरादा रखते थे जो वे लोग कर रहे थे, और उसमें रुचि रखनेवाले थे, लेकिन वे असमर्थ रहे, इसलिए वे उस कार्य को करनेवाले की तरह बन गए।"
''मजमूउल-फतावा (10/441)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला हा सबसे अधिक ज्ञान रखता है।