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क्या रमज़ान के रोज़े की नीयत रात में करना ज़रूरी है, या दिन के समय, जैसे कि अगर आप से चाश्त के समय कहा जाये कि आज का दिन रमज़ान का है, तो क्या आप उसकी क़ज़ा करें गे या नहीं ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
रमज़ान के महीने के रोज़े की नीयत रात ही में फज्र से पहले करना ज़रूरी है। और बिना नीयत किये हुए दिन के समय से उसका रोज़ा रखना किफायत नहीं करे गा (पर्याप्त नहीं होगा)। जिस आदमी को चाश्त के समय यह पता चले कि यह दिन रमज़ान का है और वह रोज़ा की नीयत कर ले, तो उस पर सूरज डूबने तक खाने पीने से रूक जाना अनिवार्य है, तथा उस पर (रमज़ान के बाद) उस दिन की क़ज़ा करना अनिवार्य है। इसका प्रमाण यह है कि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया कि आप ने फरमाया : "जो व्यक्ति फज्र के पहले से ही रोज़े की नीयत न करे उसका रोज़ा नहीं है।"इसे इमाम अहमद और अस्हाबुस्सुनन (अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई, इब्ने माजा, दारमी इत्यादि), इब्ने खुज़ैमा, इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है और इन दोनों ने इसे मरफूअन (जिस हदीस की सनद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचती हो उसे मरफूअ़ कहते हैं) सहीह क़रार दिया है।
यह फर्ज़रोज़े के अन्दर है। जहाँ तक नफ्ल रोज़े की बात है तो उसके रोज़े की नीयत दिन के समय भी करना जाइज़ है, यदि उसने फज्र के बाद खाया, या पिया, या पत्नी संभोग नहीं किया है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सेआइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस मेंप्रमाणित है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक दिन चाश्त के समय उनके पास आये और कहा कि क्या तुम्हारे पास कोई चीज़ (खाने के लिए) है। तो उन्हों ने कहा कि नहीं। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तब मैं रोज़े से हूँ।" इसे इमाम मुस्लिम ने अपनी किताब "अस्सहीह" में रिवायत किया है।
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है। तथा अल्लाह तआला हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दया और शांति अवतरित करे।