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क्या अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर सलाम भेजना सही (मान्य) है, यदि टीवी पर लाइव प्रसारण के दौरान कैमरा उनकी क़ब्रों पर आता हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलात व सलाम भेजना हर समय धर्मसंगत है। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
إِنّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا
الأحزاب : 56
“निःसंदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दुरूद भेजते हैं। ऐ ईमान वालो! तुम भी उन पर दुरूद भेजो और खूब सलाम भेजते रहा करो।” (सुरतुल अहज़ाब : 56)
तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2041) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो कोई भी मुझ पर सलाम भेजता है, तो अल्लाह मुझपर मेरी रूह को लौटा देता है यहाँ तक कि मैं उसके सलाम का जवाब देता हूँ।” इसे अलबानी ने “सही अबू दाऊद” में हसन कहा है।
इसके अलावा अन्य प्रमाण भी हैं जिनमें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद और सलाम भेजने की रूचि दिलाई गई है, खासकर जब आपके प्रतिष्ठित नाम का उल्लेख किया जाए।
अतः यदि कोई व्यक्ति आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद या आपकी क़ब्र की तस्वीर देखने पर आपको याद करे और आप पर दुरूद और सलाम भेजे, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। बल्कि यह अल्लाह की निकटता और आज्ञाकारिता का कार्य है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।
तथा यह उस ज़ियारत का सलाम नहीं है जो क़ब्र के पास भेजा जाता है, बल्कि यह एक दुआ और प्रशंसा है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं : “आदमी का यह कहना : “अस्सलामु अलैका अय्योहन्नबी” (ऐ नबी, आप पर शांति हो) क्या यह एक ख़बर (सूचना) है या दुआॽ मतलब यह कि : क्या आप यह सूचना दे रहे हैं कि रसूल पर सलाम भेजा गया है, या आप यह दुआ कह रहे हैं कि अल्लाह आप को शांति (सलामती) प्रदान करेॽ
इसका उत्तर यह है कि : यह एक दुआ है। आप दुआ करते हैं कि अल्लाह आपको शांति प्रदान करे। अतः यह दुआ के अर्थ में ख़बर (सूचना) है।”
“अश-शर्हुल मुम्ते” (3/150) से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरी बात यह है :
जहाँ तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दोनों आदरणीय साथी (सहाबी) अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का संबंध है, तो उनके लिए ‘रज़ियल्लाहु अन्हु’ (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) और ‘रहिमहुल्लाह’ (अल्लाह उनपर दया करे) कहना हर समय धर्मसंगत है। रही बात सलाम भेजने की, तो यह उनकी क़ब्रों का दौरा करते समय किया जाएगा। टीवी वग़ैरह पर क़ब्र की छवि को देखकर नहीं किया जाएगा। क्योंकि यह वैध (धर्मसंगत) नहीं है। तथा किसी को अधिकार नहीं है कि इसे क़ब्र के पास सलाम के मुस्तहब (वांछनीय) होने पर क़ियास करते हुए मुस्तहब समझे; क्योंकि यह क़ियास अंतर के साथ है (यानी दोनों में बहुत अंतर पाया जाता है), और इबादतें शरई सबूत के बिना मुस्तहब (वांछनीय) नहीं हो सकतीं हैं।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने कहा : “इस्तिहबाब (किसी चीज़ को मुस्तहब – पसंदीदा - कहना) एक शरई हुक्म है। इसलिए यह शरई प्रमाण के बिना साबित नहीं हो सकता। जो कोई भी शरई प्रमाण के बिना अल्लाह के बारे में यह सूचना दे कि वह किसी कार्य को पसंद करता है, तो उसने धर्म में ऐसी चीज़ को वैध ठहरा दिया, जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है। यह ऐसे ही है, जैसे कि वह किसी चीज़ को वाजिब या हराम (निषिद्ध) ठहरा दे। यही कारण है कि इस्तिहबाब के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद पाया जाता है, जिस तरह कि वे उसके अलावा में मतभेद करते हैं। बल्कि वह वैध धर्म का मूल है।”
“मजमूउल-फतावा” (18/65) से उद्धरण समाप्त हुआ।
सारांश यह कि :
जिस व्यक्ति ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कब्र की छवि देखी, तो आप पर सलाम भेजा क्योंकि उसने आपको याद किया, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। तथा यह उस ज़ियारत का सलाम नहीं है जो क़ब्र के पास होता है।
जहाँ तक आपके दोनों साथियों का संबंध है, तो उन्हें याद करते समय उनके लिए ‘रज़ियल्लाहु अन्हु’ और ‘रहिमहुल्लाह’ कहना धर्मसंगत है, सलाम भेजना नहीं।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।