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उम्रा या हज्ज की सई करने के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ने का क्या हुक्म हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सई के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ना सुन्नत नहीं है। जबकि अहनाफ़ ने इसे मुसतहब कहा है।
इब्नुल हुमाम रहिमहुल्लाह ने कहा : “जब वह सई से फ़ारिग़ हो जाए : तो उसके लिए मुसतहब (वांछनीय) है कि अंदर प्रवेश करे और दो रकअत नमाज़ पढ़े, ताकि सई का अंत भी तवाफ़ के अंत की तरह हो, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि सई का आरंभ तवाफ़ के आरंभ की तरह हज्रे-अस्वद के छूने से होगा।
और इस क़ियास की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इसके बार में नस (स्पष्ट प्रमाण) मौजूद है, और वह अल-मुत्तलिब बिन अबी वदाअह की हदीस है, उन्होंने कहा : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि जब आप अपनी सई से फ़ारिग़ हुए, तो अंदर आए, यहाँ तक कि जब आप (हज्रे-अस्वद के) कोने के बराबर में हो गए, तो मताफ़ के किनारे पर दो रकअत नमाज़ अदा की, जबकि आपके और तवाफ करने वालों के बीच कोई आड़ न थी।” इसे अहमद, इब्ने माजा और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है।” “फ़त्ह़ुल क़दीर” (2/460) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इस हदीस से दलील पकड़ना दो कारणों से गलत है :
पहला कारण : दरअसल हदीस के शब्द حينَ فرغَ من سَبعِهِ “हीना फ़-र-ग़ा मिन् सब्इहि” (यानी जब आप अपने सात चक्करों से फ़ारिग हुए) है, من سَعْيِهِ “मिन् सा’इहि” (अपनी सई से) नहीं है।
नसाई (हदीस संख्या : 2962) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2958) ने अल-मुत्तलिब बिन अबी वदाअह से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि जब आप अपने सात चक्करों से फ़ारिग़ हुए, तो मताफ़ के किनारे आए और दो रकअत नमाज़ अदा की, जबकि आपके और तवाफ़ करने वालों के बीच कोई आड़ न थी।”
तथा एक दूसरी रिवायत में स्पष्ट रूप से तवाफ़ का शब्द आया है, जिसे इब्ने ख़ुज़ैमा (हदीस संख्या : 815) और इब्ने हिब्बान (हदीस संख्या : 2363) ने अल-मुत्तलिब बिन अबी वदाअह से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि जब आप अपने तवाफ़ से फ़ारिग़ हुए, तो मताफ़ के किनारे आए और दो रकअत नमाज़ अदा की, जबकि आपके और तवाफ़ करने वालों के बीच कोई आड़ न थी।”
दूसरा कारण : वह हदीस ज़ईफ़ (कमज़ोर) है।
अल्लामा अलबानी ने “तमामुल-मिन्नह” पृष्ठ : 303 में कहा : “उल्लिखित हदीस ज़ईफ़ (कमज़ोर) है। क्योंकि यह कसीर बिन कसीर बिन अल-मुत्तलिब की रिवायत से है, और उनकी इसनाद के बारे में असहमति पाई जाती है। इब्ने उयैना ने कहा : उन्होंने इसे कसीर से, और कसीर ने अपने घराने के किसी व्यक्ति से और उसने उनके दादा अल-मुत्तलिब से रिवायत किया है।
तथा इब्ने जुरैज ने कहा : मुझे कसीर बिन कसीर ने अपने पिता के माध्यम से अपने दादा से यह हदीस बयान की।” उद्धरण समाप्त हुआ।
अल-आज़मी ने इब्ने ख़ुज़ैमा की तह़क़ीक़ में कहा : “इसकी सनद (संचरण की श्रृंखला) ज़ईफ़ (कमजोर) है। इब्ने जुरैज मुदल्लिस हैं और उन्होंने इसे ‘अन्अना’ के शब्द के साथ रिवायत किया है। तथा इसकी इसनाद में असहमति पाई जाती है, जिसके स्पष्टीकरण के लिए इस समय कोई गुंजाइश नहीं है।" उद्धरण समाप्त हुआ।
जबकि इस हदीस को ‘शुऐब अल-अर्नऊत’ ने ‘इब्ने हिब्बान’ की तह़क़ीक़ में सहीह कहा है।
निष्कर्ष यह कि :
सई के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ना सुन्नत नहीं है और इस बारे में सई को तवाफ़ पर क़ियास नहीं किया जाएगा।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।