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मैं अल्लाह के सुनने और देखने की कैफ़ियत का अर्थ जानना चाहता हूँ। जब हम यह कहते हैं कि हम कैफ़ियत नहीं जानते, तो क्या इसका मतलब यह है कि हम मनुष्य अपने आस-पास जिन चित्रों और छवियों को देखते हैं, वे बिल्कुल उन्हीं चित्रों और छवियों के समान नहीं हैं, जिन्हें अल्लाह सर्वशक्तिमान देखता है, और ऐसे ही आवाज़ों के संबंध में कह सकते हैॽ या “कैफ़ियत” से अभिप्राय कोई और चीज़ हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह तआला सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है। उसका श्रवण सभी आवाज़ों को व्याप्त है। “उससे एक कण के बराबर भी कोई चीज़ ओझल नहीं रहती, न आकाशों में और न धरती में, तथा न उससे छोटी कोई चीज़ है और न बड़ी, परंतु वह एक स्पष्ट पुस्तक में (अंकित) है।” [सूरत सबा : 3] “वह आँखों की चोरी तथा सीने की छिपाई हुई बातों को जानता है।” [सूरत ग़ाफ़िर : 19]
अल्लाह तआला के नामों में “सब कुछ सुनने वाला और सब कुछ देखने वाला” शामिल हैं, और उसकी विशेषताओं (गुणों) में : “श्रवण और दृष्टि” शामिल हैं। हम निश्चित रूप से उस पर ईमान और विश्वास रखते हैं, लेकिन हम उसके श्रवण और दृष्टि की कैफ़ियत (विवरण) नहीं जानते हैं, जिस तरह कि हम उसके अस्तित्व (ज़ात) की कैफ़ियत और उसकी शेष सभी विशेषताओं की कैफ़ियत नहीं जानते हैं। दूसरे शब्दों में : हम नहीं जानते कि अल्लाह कैसे अलग-अलग बोलियों में सभी ध्वनियों और आवाज़ों को एक ही समय में सुनता है, और हम नहीं जानते कि अल्लाह कैसे ऊपरी दुनिया और निचली दुनिया और शेष सभी प्राणियों को एक ही पल में देखता है।
हम यह भी नहीं जानते हैं कि आँख, हाथ, चेहरा और इस तरह की अन्य विशेषताओं की कैफ़ियत क्या है। चुनाँचे हम उनका कोई ऐसा स्वरूप नहीं जानते जिसका हम वर्णन कर सकें, जिस तरह कि प्राणियों की विशेषताओं के आकारों और रूपों को जाना जाता है। तथा हम उन विशेषताओं का कोई अनुरूप या सदृश (समान या उदाहरण) नहीं जानते हैं, कि हम उन्हें उस पर क़ियास कर सकें, या उसके समान ठहरा सकें। अल्लाह उन सब से बहुत पवित्र और सर्वोच्च है :
لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ الشورى :11
“उसके समान कोई नहीं है। और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।” [सूरतुश-शूरा : 11].
इसीलिए कुछ पूर्वजों ने “तश्बीह” पर “तक्ईफ़” का शब्द बोला है।
इमाम इसहाक़ बिन राहवैह रहिमहुल्लाह ने कहा : “तश्बीह (यानी अल्लाह के गुणों को उसकी रचना के गुणों के समान ठहराना) उस समय होता है, जब कहा जाए : (अल्लाह का) हाथ (मानव के) हाथ जैसा, या (मानव के) हाथ की तरह है, या (अल्लाह का) श्रवण (मानव के) श्रवण जैसा, या (मानव के) श्रवण की तरह है। इसलिए, यदि वह कहता है : (अल्लाह का) श्रवण (मानव के) श्रवण जैसा, या (मानव के) श्रवण की तरह है, तो यह तश्बीह (अल्लाह के गुणों को मानव के गुणों के सदृश ठहराना) है। लेकिन अगर वह उसी तरह कहे, जैसे अल्लाह ने कहा है, कि अल्लाह के हाथ, श्रवण और दृष्टि हैं। और वह यह नहीं कहता है कि कैसे हैं, और न ही वह यह कहता है कि वह (मानव के) श्रवण जैसा है या (मानव के) श्रवण की तरह है, तो यह तश्बीह नहीं होगा। बल्कि यह ऐसे ही है, जैसे अल्लाह तआला ने अपनी पुस्तक में फरमाया है :
لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ وَهُوَ السَّمِيعُ البَصِيرُ الشورى: 11
“उसके समान कोई नहीं है। और वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।” [सूरतुश-शूरा : 11].” उद्धरण समाप्त हुआ।
इसे उनसे इमाम तिर्मिज़ी ने अपनी “सुनन” (3/41 – शाकिर संस्करण) में उद्धृत किया है।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने कहा : “इसलिए उनमें से कुछ ने कहा : यदि प्रश्नकर्ता आपसे पूछे : अल्लाह कैसे उतरता है, या वह सिंहासन पर कैसे बुलंद हुआ, या वह कैसे जानता है, या वह कैसे बोलता, नियत करता और पैदा करता हैॽ तो उससे कहो : वह स्वयं कैसा हैॽ यदि वह कहता है : मुझे नहीं पता कि उसके अस्तित्व की कैफ़ियत क्या है। तो उससे कहो : और मैं भी नहीं जानता कि उसकी विशेषताएँ कैसी हैं। क्योंकि विशेषण की कैफ़ियत का ज्ञान, विशेष्य की कैफ़ियत के ज्ञान के अधीन है।”
“शर्ह हदीस अन्नुज़ूल” पृष्ठ 11 से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : अल्लाह महिमावान या उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें यह नहीं बताया है कि ये गुण कैसे हैं। इसलिए हमारे लिए यह जानना असंभव है कि वे कैसे हैं। क्योंकि जानने के साधन उपलब्ध नहीं हैं, और जब साधन का अस्तित्व नहीं है, तो उद्देश्य का भी अस्तित्व नहीं होगा।
इस परिस्थिति में हम कहते हैं : यह संभव नहीं है कि हम अल्लाह के गुणों की कैफ़ियत बयान करें, और यह जायज़ नहीं है कि हम कैफ़ियत के बारे में प्रश्न करें। अगर कोई कैफ़ियत के बारे में प्रश्न करता है, तो हम उसे इससे मना करेंगे। क्योंकि कैफ़ियत के बारे में प्रश्न करना विनाश का कारण है। इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “अतिशयोक्ति और सख़्ती करने वाले बर्बाद हो गए।” और कैफ़ियत के बारे में सवाल करना, अतिशयोक्ति और सख़्ती करने के तहत आता है। क्योंकि अगर कैफ़ियत जानने में आपके लिए कोई लाभ होता, तो अल्लाह और उसके रसूल ने उसे अवश्य बयान किया होता। बल्कि, हम कहते हैं कि : अल्लाह के गुणों की कैफियत की वास्तविकता तक पहुँचना एक असंभव चीज़ है। क्योंकि मनुष्य अल्लाह के गुणों की कैफ़ियत समझने के स्तर से बहुत कमतर है।”
“शर्ह अल-अक़ीदह अस-सफ़्फ़ारीनिय्यह” पृष्ठ 289 से उद्धरण समाप्त हुआ।
जहाँ तक इस बात का संबंध है कि क्या अल्लाह हमें हमारी छवियों में देखता है, और क्या वह हमारी आवाज़ों को उसी तरह सुनता है, जैसा कि वे हमारे बीच हैं, तो हम उसमें नहीं पड़ते हैं, और न ही हम उस चीज़ के पीछे लगते हैं, जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। लेकिन विद्वानों ने कैफ़ियत के ज्ञान का जो खंडन किया है, उससे उनका मतलब पहला अर्थ है, अर्थात् उसके अपने गुण के साथ विशिष्ट होने की कैफ़ियत, या उसके गुणों की वास्तविकता और तथ्य।
सारांश यह कि ग़ैब (परोक्ष) की वह बात जिसके तथ्य और वास्तविकता के बारे में अल्लाह ने हमें नहीं बताया है, हमें उसके बारे में कुछ भी बात करने का अधिकार नहीं है, विशेष रूप से जिसका संबंध अल्लाह सर्वशक्तिमान के अस्तित्व तथा उसके नामों और गुणों से है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
وَلا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولَئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْؤُولاً الاسراء : 36
“और ऐसी बात के पीछे न पड़ो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान न हो। निश्चय ही कान तथा आँख और दिल, इनमें से प्रत्येक के बारे में (क़ियामत के दिन) पूछा जाएगा।।” (सूरतुल-इसरा : 36)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
قُلْ إِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالْإِثْمَ وَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَأَنْ تُشْرِكُوا بِاللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ الأعراف : 33
“आप कह दीजिए कि मेरे पालनहार ने तो केवल बुरी बातों को हराम किया है, जो उनमें से प्रत्यक्ष हैं और जो छिपी हुई हैं और हर पाप की बात को और ना-हक़ अत्याचार करने को और इस बात को कि तुम अल्लाह के साथ किसी ऐसी चीज़ को शरीक ठहराओ जिसकी उसने कोई सनद नहीं उतारी और इस बात को कि तुम अल्लाह के ज़िम्मे ऐसी बात लगाओ जिसको तुम नहीं जानते।” (सूरतुल आराफ : 33).
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।