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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यह उन गलतियों में से है जो हरम में प्रवेश करते समय होती हैं, और उन्हें निम्नलिखित तरीक़े पर स्पष्ट किया जा सकता है :
“ सर्व प्रथम :
कुछ लोग यह समझते हैं कि हज्ज या उम्रा करने वाले के लिए मस्जिदुल हराम में एक विशिष्ट द्वार से प्रवेश करना ज़रूरी है, चुनाँचे उदाहरण के तौर पर कुछ का विचार यह है कि यदि वह उम्रा करने वाला है तो उसके लिए उस द्वार से प्रवेश करना ज़रूरी है जिसका नाम बाबुल उम्रा (उम्रा का द्वार) है, और यह एक ज़रूरी या धर्म संगत चीज़ है, तथा कुछ लोगों का विचार यह है कि उसके लिए बाबुस्सलाम से प्रवेश करना ज़रूरी है, और यह कि उसके अलावा द्वार से प्रवेश करना गुनाह या घृणित (मकरूह) है, हालाँकि इसका कोई आधार नहीं है, बल्कि हज्ज और उम्रा करने वाले के लिए किसी भी द्वार से प्रवेश करना जायज़ है, और जब वह प्रवेश करे तो अपने दायें पैर को पहले रखे और वह दुआ पढ़े जो अन्य सभी मस्जिदों में प्रवेश करने के बारे में वर्णित है, चुनाँचे वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम पढ़े और कहे :
اللهم اغفر لي ذنوبي وافتح لي أبواب رحمتك
“अल्लाहुम्मग़ फिर्ली ज़ुनूबी वफ्तह ली अब्वाबा रहमतिक” (ऐ अल्लाह! मेरे पाप क्षमा कर दे, और मेरे लिए अपनी रहमत (दया व करूणा) के द्वार खोल दे।). इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 713) ने रिवायत किया है।
दूसरा :
कुछ लोग मस्जिद में प्रवेश करने और काबा को देखने के समय कुछ विशिष्ट दुआएँ गढ़ लेते हैं, वे ऐसी दुआएँ गढ़ लेते हैं जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित नहीं हैं और उनके द्वारा दुआ करते हैं, हालाँकि ऐसा करना बिद्अतों में से है, क्योंकि किसी ऐसे कथन, या कर्म, या अक़ीदा (आस्था) के द्वारा अल्लाह की उपासना करना जिस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा नहीं थे, बिदअत और पथभ्रष्टता है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस से सावधान किया है।
तीसरा :
कुछ लोगों का - यहाँ तक कि हाजियों के अलावा का भी - यह अक़ीदा रखना गलत है कि मस्जिदुल हराम का तहिय्या (यानी सलाम, तहिय्यतुल मस्जिद) तवाफ करना है, अर्थात मस्जिदुल हराम में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुन्नत यह है कि वह तवाफ करे, कुछ फुक़हा के इस कथन को आधार बनाते हुए कि मस्जिदुल हराम की सुन्नत तवाफ है। जबकि वास्तविकता यह है कि मामला ऐसा नहीं है, बल्कि मस्जिदुल हराम अन्य सभी मस्जिदों के समान है जिनके बारे में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जब तुम में से कोई व्यक्ति मस्जिद में प्रवेश करे तो न बैठे यहाँ तक कि वह दो रकअत नमाज़ पढ़ ले।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 444) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 714) ने रिवायत किया है।
किंतु अगर आप मस्जिदुल हराम में तवाफ के लिए प्रवेश करें, चाहे वह तवाफ हज्ज व उम्रा का तवाफ हो, या नफ्ली (ऐच्छिक) तवाफ हो जैसेकि हज्ज व उम्रा के अलावा अन्य तवाफ, तो ऐसी स्थिति में आपके लिए तवाफ करना काफी होगा यद्यपि आप ने दो रकअत नमाज़ नहीं पढ़ी है, और यही हमारे इस कथन का अर्थ है कि मस्जिदुल हराम का तहिय्या (सलाम) तवाफ है। इस आधार पर, यदि आप तवाफ की नीयत से नहीं प्रवेश किए हैं, बल्कि नमाज़ की प्रतीक्षा या किसी आम सभा या इसी तरह की चीज़ के लिए अंदर गए हैं तो मस्जिदुल हराम अन्य मस्जिदों के समान है, उसके अंदर बैठने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़ना सुन्नत है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका आदेश दिया है।”
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह की किातब “दलीलुल अख्ता अल्लती यक़ओ फीहा अल्हाज्जो वल-मोतमिरो”