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मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हुई है जिसे आनुवंशिक त्वचा रोग है, जो कि कुष्ठ रोग है, जिसमें जन्म ही से त्वचा सफेद होती है। इस आदमी के भाइयों के बेटे हैं जो इस बीमारी के वाहक हैं। उसने शादी का पैग़ाम देने के समय मुझसे इस दोष को छिपाया था, और सगाई (मँगनी) के दिन जब हमने उससे पूछा, तो उसने कहा : मेरे भाइयों की बीमारी उन्हें डर के परिणामस्वरूप आई थी। शादी के बाद, मुझे ठीक उसके विपरीत पता चला, कि यह बीमारी उनमें जन्म ही से थी। तो क्या मेरे लिए तलाक़ (लेना) जायज़ हैॽ ज्ञात रहे कि मुझे इस रोग से घिन आती है, और यदि मैं उन्हें देखती हूँ तो क्रोधित हो जाती हूँ। ऐ अल्लाह, ऐसा अल्लाह की रचना पर आपत्ति के तौर पर नहीं है। मैंने गर्भनिरोधक गोलियाँ ली हैं; क्योंकि मैं इस तरह के अपने बच्चे देखकर बर्दाश्त नहीं कर सकती।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि यह पता चले कि आपके पति के भाइयों के बच्चे कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं – जो कि एक आनुवंशिक रोग है - और आपको डर है कि आपके बच्चे भी ऐसे ही पैदा होंगे, तो आपके लिए तलाक़ माँगना जायज़ है। क्योंकि यह एक (वैध) कारण है, और फ़ुक़हा ने निकाह को फ़स्ख़ (रद्द) करने के जायज़ होने के कारणों में उल्लेख किया है कि यदि पति या पत्नी कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं और यह आशंका है कि उसका संकर्मण संतान तक पहुँच जाएगा।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुग़्नी” (7/185) में फरमाया : “निकाह़ को फ़स्ख़ करना (तोड़ना) इन दोषों के साथ इसलिए विशिष्ट है, क्योंकि वे निकाह से अभिप्रेत आनंद उठाने से रोकते हैं। क्योंकि कुष्ठ और कोढ़ दिल में घृणा उत्पन्न करते हैं, जो उसके निकट जाने से रोकता है। और उसके नफ़्स और संतान को लगने की आशंका होती है। तो इस तरह वह लाभ उठाने से रोकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा अहमद (हदीस संख्या : 22440), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2226) तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1187) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2055) ने सौबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“जिस भी महिला ने बिना उचित कारण के अपने पति से तलाक़ माँगा, तो उसपर जन्नत की महक हराम (वर्जित) है।”
इस हदीस को इब्ने खुज़ैमा और इब्ने हिब्बान ने सहीह कहा है, जैसाकि हाफ़िज़ ने “फ़त्हुल-बारी” (9/403) में उल्लेख किया है, तथा अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” में और शुऐब अल-अर्नऊत ने ‘मुसनद’ की तह़क़ीक़ में इसे सहीह कहा है।
तथा मानसिक तकलीफ़ (कष्ट) तलाक़ माँगने को वैध ठहराने वाले उचित कारण के अंतर्गत आता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।