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अप्रतिबंधिति और प्रतिबंधित तक्बीर क्या है और वह कब शुरू होती है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्रथम दस दिन बहुत महान दिन हैं जिनकी अल्लाह ने अपनी किताब में क़सम खाई है। और किसी चीज़ की क़सम खाना उसके महत्व और उसके महान लाभ को दर्शाता है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
والفجر وليال عشر [ الفجر:1-2)
''क़सम है फज्र की! और दस रातों की!'' (सूरतुल फज्रः 1-2)
इब्ने अब्बास, इब्नुज़्ज़ुबैर, मुजाहिद और कई एक सलफ और खलफ का कहना है : यह ज़ुल-हिज्जा के दस दिन हैं। इब्ने कसीर कहते हैं : ''और यही सहीह है।'' तफ्सीर इब्ने कसीर 8/413.
इन दिनों में नेक अमल करना अल्लाह सर्वशक्तिमान को बहुत पसंदीदा है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''कोई दिन ऐसा नहीं है जिसके अंदर नेक अमल करना अल्लाह के निकट इन दस दिनों से अधिक महबूब और पसंदीदा है।''
तो लोगों ने कहा कि ऐ अल्लाह के पैगंबर : अल्लाह के रास्ते में जिहाद करना भी नहीं?
तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमाया : अल्लाह के रास्ते में जिहाद करना भी नहीं। सिवाय उस आदमी के जो अपनी जान और अपने धन के साथ निकले फिर उसमें से किसी चीज़ के साथ वापस न लौटे।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 969) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 757) ने रिवायत किया है और शब्द तिर्मिज़ी के हैं, तथा अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 605) में सहीह कहा है।
और इन दिनों में नेक कामों में से तक्बीर और तहलील के साथ अल्लाह को याद करना है, इसके प्रमाण निम्निलिखित हैं :
1- अल्लाह तआला का फरमान है :
ليشهدوا منافع لهم ويذكروا اسم الله في أيام معلومات [الحج : 28]
''ताकि वे अपने लाभों को प्राप्त करने के लिए उपस्थित हों, और उन ज्ञात और निश्चित दिनों में अल्लाह का नाम याद करें।'' (सूरतुल हज्जः 28)
और वे ज्ञात दिन ज़ुल-हिज्जा के दस दिन हैं।
2- अल्लाह तआला का फरमान है :
واذكروا الله في أيام معدودات [البقرة :203]
''और गिनती के इन कुछ दिनों में अल्लाह को याद करो।'' (सूरतुल बक़रा: 203)
और यह तश्रीक़ के दिन (अर्थात ज़ुल-हिज्जा की 11, 12, 13 तारीख के दिन) हैं।
3- तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''तश्रीक़ के दिन खाने, पीने और अल्लाह के स्मरण (याद) के हैं।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1141) ने रिवायत किया है।
विद्वानों ने उसकी विधि के बारे में कई कथनों पर मतभेद किया है :
पहला :
" الله أكبر .. الله أكبر .. لا إله إلا الله ، الله أكبر .. الله أكبر .. ولله الحمد "
''अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . .वलिल्लाहिल हम्द''.
दूसरा :
" الله أكبر .. الله أكبر .. الله أكبر .. لا إله إلا الله ، الله أكبر .. الله أكبر .. الله أكبر .. ولله الحمد "
अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . वलिल्लाहिल हम्द''.
तीसरा :
" الله أكبر .. الله أكبر .. الله أكبر .. لا إله إلا الله ، الله أكبر .. الله أكبر .. ولله الحمد " .
अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . . ला इलाहा इल्लल्लाह, अल्लाहु अक्बर . . अल्लाहु अक्बर . .वलिल्लाहिल हम्द''.
इस बारे में मामले के अंदर विस्तार है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई नस (स्पष्ट प्रमाण) मौजूद नहीं है जो किसी निश्चित सूत्र को निर्धारित करता हो।
तक्बीर के दो प्रकार हैं :
1- मुतलक़ (अप्रतिबंधित) : जो किसी चीज़ के साथ प्रतिबंधित नहीं होता है, अतः वह हमेशा, सुबह और शाम, नमाज़ से पहले और नमाज़ के बाद, और हर समय मसनून होता है।
2- मुक़ैयद (प्रतिबंधित) : जो फर्ज़ नमाज़ों के बाद के साथ प्रतिबंधित और सीमित होता है।
मुतलक़ (अप्रतिबंधित) तक्बीर ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों में और तश्रीक़ के सभी दिनों में मसनून है। उसका आरंभ ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्रवेश करने (अर्थात ज़ुल-क़ादा के महीने के अंतिम दिन के सूरज डूबने) से होकर तश्रीक़ के अंतिम दिन (अर्थात ज़ुल-हिज्जा के महीने के तेरहवें दिन के सूरज के डूबने) तक रहता है।
रही बात मुक़ैयद तक्बीर की, तो वह अरफा के दिन फज्र से शुरू होता है और तश्रीक़ के अंतिम दिन के सूरज डूबने तक रहता है - यही अप्रतिबंधित तक्बीर का भी अंतिम समय है -। जब वह फर्ज़ नमाज़ से सलाम फेरे और तीन बार अस्तगफिरूल्लाह कहे और यह दुआ पढ़े :
اللهم أنت السلام ومنك السلام تباركت يا ذا الجلال والإكرام.
''अल्लाहुम्मा अन्तस्सलामो व मिनकस्सलामो तबारकता या ज़ल-जलालि वल-इकराम''
और उसके बाद तकबीर शुरू कर दे।
यह हज्ज न करने वाले के लिए है, रही बात हज्ज करने वाले की तो उसके हक़ में मुक़ैयद (प्रतिबंधित) तक्बीर यौमुन्नहर के दिन ज़ुहर से शुरू होती है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
देखिए : मजमूओ फतावा इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह 13/17, अश-शरहुल मुम्ते लि-इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह 5/220-224.