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रमज़ान में दिन के दौरान दाँतों को सफेद करने वाली किट का उपयोग करने का क्या हुक्म है, यह जानते हुए कि इसमें एक पदार्थ होता है जो दाँतों पर उन्हें सफेद करने के लिए लगाया जाता है, और यह प्रक्रिया कई घंटों तक चलती है। क्या इसका इस्तेमाल करना जायज़ हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
दाँतों को सफेद करने वाली किट; यह मुँह के दाँतों के आकार का शरीर (साँचा) होता है, जिसके अंदर सफेद करने वाला पदार्थ होता है। इन साँचों को दाँतों पर पहना जाता है और दिन में एक निश्चित अवधि के लिए छोड़ दिया जाता है
रोज़ेदार व्यक्ति के रोज़े की शुद्धता पर इन साँचों के प्रभाव को जानने के लिए ; यह देखा जाएगा कि इन साँचों से किस हद तक पदार्थ मुँह के अंदरूनी हिस्से में रिसता है :
पहली स्थिति : यह है कि वे दाँतों और मसूड़ों पर कसकर बंद हों। इसलिए उनमें से कुछ भी मुँह में न जाता हो, या यदि उसमें से कुछ निकले (रिसे) तो रोज़ेदार उसे अपने मुँह से बाहर थूक दे, तो इस स्थिति में ये साँचे रोज़े की शुद्धता को प्रभावित नहीं करेंगे, क्योंकि रोज़े को अमान्य करने का कोई कारण नहीं है।
दूसरी स्थिति : यह है कि उनसे पदार्थ रिस्ता हो और रोज़ेदार उसे निगल जाए; तो ऐसी स्थिति में रोज़ेदार के लिए उनका उपयोग करना जायज़ नहीं है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : जहाँ तक रोज़ेदार के लिए टूथब्रश और टूथपेस्ट का उपयोग करने का संबंध है, तो यह दो हालतों से खाली नहीं है :
पहली हालत :
वह टूथपेस्ट बहुत तेज़ हो जो पेट तक पहुँच जाए, और उसका इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति उसे नियंत्रित करने में समर्थ न हो, तो यह उसके लिए निषिद्ध है और उसके लिए इसका उपयोग करना जायज़ नहीं है, क्योंकि इससे उसका रोज़ा ख़राब हो जाता है, और जो चीज़ हराम की ओर ले जाती है, वह भी हराम है। तथा लक़ीत बिन सबिरह की हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा : “नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा (अतिशयोक्ति) से काम लो, सिवाय इसके कि तुम रोज़े से हो।” यहाँ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नाक में पानी चढ़ाने में अतिशयोक्ति करने से रोज़े की हालत को अपवाद (अलग) किया है, क्योंकि अगर वह रोज़े के दौरान अपनी नाक में पानी चढ़ाने में अतिशयोक्ति करता है, तो पानी उसके पेट में रिस सकता है, जिससे उसका रोज़ा ख़राब (अमान्य) हो जाएगा। इसलिए हम कहते हैं : यदि टूथपेस्ट इतना तेज़ है कि वह उसके पेट में पहुँच जाता है, तो उसके लिए इस स्थिति में उसका उपयोग करना जायज़ नहीं है, या कम से कम हम उससे कहते हैं कि : यह मकरूह (नापसंदीदा) है।
दूसरी हालत :
यदि वह इतना तेज़ न हो और उसके लिए उससे बचना संभव हो, तो उसके लिए उसका इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि मुँह के अंदर का हिस्सा बाहर के हुक्म के अधीन है। इसलिए इनसान पानी से कुल्ली करता है और इससे उसके रोज़े को कोई नुकसान नहीं होता है। अगर मुँह के भीतर का हिस्सा (शरीर के) अंदर के हुक्म के अधीन होता, तो रोज़ेदार को कुल्ली करने से रोक दिया जाता।”
“मजमूओ फ़तावा अश-शैख इब्न उसैमीन” (16/351) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।