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क़ुरआन करीम और अहादीस शरीफ में अनेक अज़कार का उल्लेख हुआ है जो उन सवाब और उपहारों का वर्णन करते हैं जिन्हें अल्लाह के हुक्म से स्वर्ग में जाने वाला मुसलमान पायेगा, विशिष्ट रूप से मैं यहाँ हूर-ईन (स्वर्गांगना) का उल्लेख करता हूँ, साथ ही साथ अल्लाह तआला उसे उसकी दुनिया की बीवी से भी मिला देगा यदि वह नेक और ईमान वाली औरतों में से होगी।
मेरा प्रश्न यह है कि : स्वर्ग में जाने वाली नेक मोमिन औरत किस चीज़ की प्रतीक्षा करेगी विशेषकर अगर उसका पति नेक न होगा और अल्लाह की पनाह वह नरकवासियों में से होगा ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और आप को सभी परिवार और प्रियजनों के साथ स्वर्गवासियों में से बनाये।
अगर औरत का पति उस के साथ स्वर्ग में प्रवेष करेगा, तो वहाँ भी वह उस का पति होगा, किन्तु अगर वह नरकवासियों में से है, या दुनिया में युवती की शादी ही नहीं हुई थी, तो स्वर्गवासियों में से किसी आदमी से उस का विवाह कर दिया जायेगा।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया जिस के शब्द यह हैं :
"अगर औरत जन्नती है और दुनिया में उस की शादी नहीं हुई थी, या शादी हुई पर उस का पति जन्नत में नहीं गया, तो उस के लिये कौन होगा ?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
"इस का उत्तर अल्लाह तआला के इस कथन के सामान्य अर्थ से निकाला जायेगा:
"जिस चीज़ को तुम्हारा मन चाहे और जो कुछ तुम मांगो, सब तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में उपस्थित है।" (सूरत फुस्सिलत : 31)
तथा अल्लाह तआला के इस कथन से:
"उन के मन जिस चीज़ को चाहें और जिस से उन की आँखें लज़्ज़त हासिल करें, सब वहाँ होगा और तुम उस में हमेशा रहोगे।" (सूरतुज़ ज़ुख़रूफ : 71)
अत: औरत अगर स्वर्गवासियों में से है और उसकी शादी नहीं हुई थी, या उस का पति स्वर्गवासियों में से नहीं है, तो जब वह स्वर्ग में जायेगी तो वहाँ स्वर्गवासियों में ऐसे मर्द भी होंगे जिन की शादी नहीं हुई थी, और आदमियों के लिए -जिन की शादी नहीं हुई थी- हूर ईन में से बीवियाँ होंगीं, और उन के लिए दुनिया वालों में से भी बीवियाँ होंगी अगर वे चाहेंगे और उन का मन उसकी इच्छा करेगा।
इसी प्रकार हम उस महिला के बारे में भी कहेंगे जिस की शादी नहीं हुई थी या शादी हुई थी किन्तु उस का पति उस के साथ स्वर्ग में प्रवेष नहीं किया, कि यदि वह शादी की इच्छा करेगी तो जो कुछ उस का मन चाहेगा, उस के लिए उस का वहाँ उपलब्ध होना ज़रूरी है ; क्योंकि आयत के सामान्य अर्थ का यही तर्क है।" (मजमूअ़ फतावा शैख इब्ने उसैमीन 2/52)
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है।