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मैंने सुना है कि मुसलमान को तरावीह की नमाज़ अकेले पढ़ना चाहिए, जिस तरह कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीन बार के अलावा तरावीह की नमाज़ अकेले पढ़ी है। क्या यह बात सही हैॽ
मैंने यह भी सुना है कि रमज़ान में तरावीह के दौरान पूरा क़ुरआन पढ़ना बिद्अत है; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं किया है, क्या यह बात सही हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
रमज़ान में रात की नमाज़ (तरावीह) जमाअत के साथ पढ़ना धर्मसंगत है और अकेले भी पढ़ना धर्मसंगत है। लेकिन इसे जमाअत के साथ पढ़ना अकेले पढ़ने से बेहतर है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कई रातों में अपने सहाबा को यह नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ाई है।
सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में साबित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कई रातों को अपने सहाबा को (तरावीह की) नमाज़ पढ़ाई। फिर जब तीसरी या चौथी रात थी तो आप उनके पास नहीं आए। जब सुबह हुई तो आपने फरमाया : “मुझे तुम्हारे पास आने से केवल इस बात ने रोका कि मुझे डर हुआ कि यह तुम्हारे लिए अनिवार्य न कर दी जाए।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1129) ने रिवायत किया है। और मुस्लिम (हदीस संख्या : 761) के शब्द ये हैं कि : “लेकिन मुझे डर हुआ कि रात की नमाज़ तुम्हारे लिए अनिवार्य न कर दी जाए, फिर तुम उसे पढ़ने में असमर्थ रहो।”
इस प्रकार तरावीह की नमाज़ को जमाअत के साथ अदा करना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत से साबित है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तरावीह की नमाज़ को जमाअत के साथ पढ़ने को जारी रखने से रोकने वाली चीज़ का उल्लेख किया है और वह इसके अनिवार्य किए जाने का डर है। जबकि यह डर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के कारण समाप्त हो चुका है। क्योंकि जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हो गई, तो अल्लाह की ओर से वह्य का आना बंद हो गया और उसके अनिवार्य होने की आशंका समाप्त हो गई। जब कारण समाप्त हो गया और वह वह्य के बंद होने की वजह से अनिवार्य किए जाने का भय है, तो उसके (जमाअत के साथ पढ़ने के) सुन्नत होने की स्थिति बहाल हो गई।
देखें : शैख इब्ने उसैमीन की “अश-शर्हुल मुम्ते” (4/78)।
इमाम इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह ने कहा :
इससे इंगित होता है कि : रमज़ान में क़ियाम की नमाज़ पढ़ना पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नतों में से एक सुन्नत है, जो वांछनीय है और जिसके लिए प्रोत्साहित किया गया है। उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे पुनर्जीवित करके केवल उसी चीज़ को जारी किया जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पसंद करते थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उसे नियमित रूप से पढ़ने से केवल इस डर ने रोका कि वह आपकी उम्मत पर अनिवार्य न कर दी जाए। तथ्य यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ईमान वालों के प्रति बड़े दयालु थे। जब उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में इस बात का ज्ञान था और उन्हें यह पता चला कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मौत के बाद अनिवार्य चीज़ों (कर्तव्यों) को न बढ़ाया जा सकता है और न उनमें कमी की जा सकती है : तो उन्होंने उसे (यानी जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़ को) लोगों के लिए (फिर से) क़ायम कर दिया, इस सुन्नत को पुनर्जीवित किया और लोगों को इसका आदेश दिया। यह 14 हिजरी की बात है। यह एक ऐसी चीज़ है जिसका सौभाग्य अल्लाह ने उनके लिए सहेज रखा था और इसके द्वारा उन्हें प्रतिष्ठा प्रदान किया।”
“अत-तमहीद” (8/108, 109).
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने तरावीह की नमाज़ जमाअत के साथ एवं अकेले अदा की है, यहाँ तक कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें एक इमाम पर एकत्रित कर दिया।
अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल क़ारी से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैं उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ रमज़ान की एक रात को मस्जिद में गया। लोग अलग-अलग और बिखरे हुए थे। कोई व्यक्ति अकेला नमाज़ पढ़ रहा था और कुछ लोगों का समूह किसे व्यक्ति के पीछे नमाज़ पढ़ रहा था। इस पर उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : “मैं समझता हूँ है कि अगर मैं इन लोगों को एक क़ारी (पाठक) के पीछे एकत्रित कर दूँ, तो यह बेहतर होगा।” फिर उन्होंने इसका संकल्प करते हुए उन्हें उबैय बिन कअब के पीछे एकत्रित कर दिया। फिर मैं एक अन्य रात उनके साथ निकला, तो देखा कि लोग अपने पाठक (इमाम) के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हैं। उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : यह नवाचार (नया तरीक़ा) कितना अच्छा है। लेकिन (रात का) वह हिस्सा जिसमें ये सो जाते हैं, उस हिस्से से बेहतर है जिसमें ये नमाज़ पढ़ते हैं। - उनका अभिप्राय रात का अंतिम हिस्सा था – उस समय लोग रात के प्रारंभ में तरावीह की नमाज़ पढ़ते थे।”
इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 1906) ने रिवायत किया है।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के शब्द : “यह कितना अच्छा नवाचार (नया तरीक़ा) है” को बिदअतों को वैध ठहराने का तर्क बनाने वालों का खंडन करते हुए फरमाया :
जाहँ तक रमज़ान में क़ियाम करने का संबंध है, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे अपनी उम्मत के लिए निर्धारित किया है और कई रातों तक उन्हें जमाअत के साथ (क़ियाम की) नमाज़ पढ़ाई है। वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में जमाअत के साथ एवं अकेले नमाज़ पढ़ते थे। लेकिन उन्होंने नियमित रूप से किसी एक जमाअत में तरावीह की नमाज़ नहीं पढ़ी; ताकि ऐसा न हो कि वह उनके लिए अनिवार्य कर दी जाए। परंतु जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का निधन हो गया, तो शरीयत स्थिर हो गई। फिर जब उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ख़लीफ़ा हुए, तो उन्हें एक इमाम पर एकत्रित कर दिया और वह उबैय बिन कअब हैं, जिन्होंने उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के आदेश पर लोगों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ाई। और उमर रज़ियल्लाहु अन्हु सीधे मार्ग पर स्थापित खलीफाओं में से हैं, जिनके बारे में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है : “तुम्हारे लिए अनिवार्य है कि मेरी सुन्नत तथा सीधे मार्ग पर रहनेवाले खलीफाओं की सुन्नत को अपनाओ। उसे दृढ़ता से थामे रहो और दाँतों से जकड़ लो।” इसलिए उनका यह काम सुन्नत है। लेकिन उन्होंने कहा : “यह एक अच्छा नवाचार (नया तरीक़ा) है।” क्योंकि यह अरबी भाषा में नवाचार है (अर्थात अरबी भाषा में नवाचार या नये तरीक़े को ‘बिदअत’ कहा जाता है), क्योंकि उन्होंने ऐसा कार्य किया था जो वे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन के दौरान नहीं किया करते थे। अर्थात तरावीह की नमाज़ के लिए इकट्ठा होना। हालाँकि यह एक सुन्नत है और शरीयत में से है।” “मजमूउल-फतावा” (22/234, 235).
दूसरी बात :
रमज़ान के महीने में, नमाज़ के दौरान तथा उसके बाहर क़ुरआन का ख़त्म करना (पूरा क़ुरआन पढ़ना), एक प्रशंसनीय कार्य है। जिबरील अलैहिस्सलाम हर रमज़ान में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ कुरआन को दोहराते थे। फिर जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु का वर्ष था तो उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ उसे दो बार दोहराया था।
प्रश्न संख्या (66504) के उत्तर में इसका उल्लेख किया जा चुका है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।