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अगर कोई व्यक्ति रमज़ान के दिन में रोज़ा तोड़ने की क़सम खाए, तो क्या हुक्म हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सबसे पहले :
रमज़ान का रोज़ा उस वयस्क, समझदार, निवासी मुसलमान के लिए अनिवार्य है जो रोज़ा रखने में सक्षम है। और जो कोई व्यक्ति ऐसा है, उसके लिए बिना उज़्र के रोज़ा तोड़ना हराम है, तथा उसके लिए ऐसा करने की क़सम खाना भी हराम है। क्योंकि उसके ऐसी क़सम खाने में एक हराम (वर्जित) काम करने पर दृढ़ संकल्प और निश्चय पाया जाता है।
दूसरा :
यदि कोई मुसलमान पाप करने की क़सम खा लेता है, तो उसके लिए वह करने की अनुमति नहीं है जो उसने करने की क़सम खाई थी। बल्कि उसे अपनी क़सम तोड़ देनी चाहिए और क़सम तोड़ने का कफ्फारा (प्रायश्चित) देना चाहिए। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस व्यक्ति ने कुछ करने की क़सम खाई, फिर उसने उसके अलावा किसी काम को उससे बेहतर देखा, तो उसे उस काम को करना चाहिए जो बेहतर है और अपनी क़सम का प्रायश्चित करना चाहिए।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 1650) ने रिवायत किया है।
क़सम तोड़ने का कफ़्फ़ारा यह है : दस ग़रीबों को खाना खिलाना, या उन्हें कपड़े पहनाना, या एक ग़ुलाम आज़ाद करना। परंतु जो व्यक्ति इनमें से कुछ भी करने में सक्षम न हो, तो वह तीन दिन का रोज़ा रखे। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
لا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُمُ الأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ ذَلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ وَاحْفَظُوا أَيْمَانَكُمْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
المائدة: 89
“अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखना है। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जब तुम क़सम खा लो तथा अपनी क़समों की रक्षा करो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें (आदेश) खोलकर बयान करता है, ताकि तुम आभार व्यक्त करो।” (सूरतुल मायदा : 89)
तीसरा :
जिस व्यक्ति ने ऐसा किया है उसे अल्लाह के सामने पश्चाताप करना चाहिए, क्योंकि एक मुसलमान के लिए रमज़ान में रोज़ा तोड़ने की क़सम खाना बहुत ही घृणित है। यह दर्शाता है कि वह अल्लाह के निषेधों के प्रति लापरवाह है और वह उन्हें हल्के में लेता है। प्रश्न संख्या : (38747 ) के उत्तर में हमने बिना किसी उज़्र के रमज़ान में रोज़ा तोड़ने की गंभीरता का वर्णन किया है, और यह कि जो ऐसा करता है उसके बारे में निफ़ाक़ (पाखंड) का गुमान किया जाता है। इससे अल्लाह की पनाह।
अज़-ज़हबी ने “अल-कबायर” (पृष्ठ : 64) में कहा :
“मोमिनों के बीच यह बात अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी है कि : जो व्यक्ति कोई बीमारी या किसी कारण के बिना (अर्थात् बिना किसी वैध बहाने के) रमज़ान के रोज़े को छोड़ देता है, तो वह व्यभिचारी और शराब के आदी से भी बुरा है। बल्कि वे उसके इस्लाम के बारे में संदेह करते हैं और उसके बारे में सोचते हैं कि वह विधर्मी और पथभ्रष्ट है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें सुरक्षित और स्वस्थ रखे और हमें अपने धर्म का पालन करने में दृढ़ बनाए।