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मैं 25 साल की एक युवा महिला हूँ। लेकिन बचपन से लेकर 21 साल की उम्र को पहुँचने तक, मैंने आलस्य के कारण न तो रोज़ा रखा और न ही नमाज़ पढ़ी। मेरे माता-पिता मुझे नसीहत करते थे, लेकिन मैंने परवाह नहीं की। अब मुझे क्या करना चाहिएॽ ज्ञात रहे कि अल्लाह तआला ने मुझे मार्गदर्शन प्रदान किया है और अब मैं रोज़ा रखती हूँ और जो कुछ (अतीत में) गुज़र चुका, उसपर मुझे पछतावा है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
तौबा अपने से पहले पापों को मिटा देती है। इसिलए आपने जो कुछ किया है, उसपर आपको पछतावा होना चाहिए, उसे दोबारा न करने का संकल्प करना चाहिए और इबादत में सत्यता अपनाना चाहिए। तथा दिन और रात में अधिक से अधिक नफ़ल नमाज़ें, नफ़ल रोज़े, ज़िक्र, क़ुरआन का पाठ और दुआ करना चाहिए। और अल्लाह तआला अपने बंदों की तौबा को स्वीकार करता है और उनके बुरे कर्मों को क्षमा कर देता है।