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क्या हाजी पर क़ुर्बानी अनिवार्य है?

24-08-2017

प्रश्न 82027

क्या हाजी पर क़ुरबानी अनिवार्य है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

क़ुर्बानी के हुक्म के बारे में विद्वानों के विचार विभिन्न हैं। जमहूर उलमा (विद्वानों की बहुमत) के निकट क़ुर्बानी सुन्नते मुअक्किदा है। जबकि कुछ दूसरे विद्वानों के निकट क़ुर्बानी उसकी ताक़त रखनेवाले पर अनिवार्य है। इसका उल्लेख प्रश्न संख्या (36432) के उत्तर में किया जा चुका है।

उपर्युक्त मतभेद उस व्यक्ति के बारे में है जो हाजी नहीं है। जहाँ तक हाजी का संबंध है तो उसके लिए क़ुर्बानी के हुक्म के विषय में विद्वानों ने मतभेद किया है। कुछ लोग इसकी वैधता को मानते हैं – चाहे वह मुस्तहब हो या वाजिब -, जबकि उनमें से कुछ दूसरे लोग इसकी वैधता को नहीं मानते हैं।

जो लोग हाजी के लिए क़ुर्बानी की वैधता को नहीं मानते हैं उन्हों ने उसके कारण के बारे में दो कथनों पर मतभेद किया हैः

प्रथमः हाजी के लिए ईद की नमाज़ नहीं है और उसकी क़ुर्बानी हज्ज तमत्तुअ या हज्ज क़िरान की हदी (क़ुर्बानी) है।

दूसराः हाजी एक यात्री है और क़ुर्बानी मुक़ीम लोगों (निवासियों) के लिए घर्मसंगत है। यह अबू हनीफा का कथन है और इनके नज़दीक हाजी अगर मक्का का रहने वाला है तो वह यात्री नहीं है और उस पर क़ुर्बानी अनीवार्य है।

विद्वानों के मतों और उनके कुछ कथनों का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है :

(1) अहनाफः

‘’अल-मबसूत’’ (6/171) में आया है कि : ‘’हमारे निकट धनवान और मुक़ीम लोगों पर क़ुर्बानी अनिवार्य है।‘’

तथा ‘’अल-जौहरतुन्नैय्यिरा’’ (5/285-286) में है किः ‘’क़ुर्बानी मुसाफिर हाजी पर अनिवार्य नहीं है। परंतु मक्का वालों पर क़ुर्बानी अनिवार्य है भले ही वे हज्ज करनेवाले हों।‘’

(2) मालिकिय्याः

इनका कहना है की हाजी पर क़ुर्बानी नहीं है, इस कारण कि वह एक हाजी है, इसलिए नहीं कि वह एक मुसाफिर है।

‘’अल-मुदव्वना’’ (4/101) में है कि : ‘’मालिक ने मुझसे कहाः हाजी पर क़ुर्बानी नहीं है, अगरचे वह मिना के निवासियों में से हो जबकि वह हाजी बन गया। मैंने कहाः तो मालिक के कथन के अनुसार हाजी को छोड़कर बाक़ी सारे लोगों पर क़ुर्बानी अनिवार्य है? उन्होंने कहाः हाँ।‘’ अंत हुआ।

(3) शाफेइय्या :

इनके नज़दीक हाजी और गैर हाजी सब के लिए क़ुर्बानी मुस्तहब है।

इमाम शाफई रहिमहुल्लाह कहते हैं : मक्का का रहने वाला और एक शहर से दूसरे शहर स्थानांतरित होनेवाला हाजी, तथा यात्री, मुक़ीम (निवासी), पुरूष और महिला जो भी क़ुर्बानी का जानवर पाते हैं : सब लोग समान हैं उनके मध्य कोई अन्तर नहीं है। अगर उनमें से किसी एक पर क़ुर्बानी अनिवार्य मानी जाएगी तो सब पर अनिवार्य होगी और अगर किसी एक से अनिवार्यता समाप्त हो गई : तो सब से अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी। यदि कुछ लोगों को छोड़कर केवल कुछ पर क़ुर्बानी को अनिवार्य मानें : तो हाजी के लिए क़ुर्बानी का अनिवीर्य होना अधिक योग्य है ; इस वजह से कि वह एक नुसुक (क़ुर्बानी) है और हाजी के ऊपर नुसुक (क़ुर्बानी) अनिवार्य है, जबकि हाजी के अलावा पर नुसुक नहीं है। लेकिन ऐसा करना जायज़ नहीं है कि लोगों पर बिना हुज्जत (प्रमाण) के कोई चीज़ अनिवार्य की जाए, तथा इसी के समान (बिना प्रमाण के) उनके बीच अन्तर करना भी उचित नहीं है।‘’ अंत हुआ। ‘’अल-उम्म’’ (2/348).

(4) इब्ने हज़्म­ रहेमहुल्लाह कहते हैः

‘’हाजी के लिए क़ुर्बानी करना मुस्तहब है जिस तरह कि गैर हाजी के लिए मुसतहब है। जबकि एक गिरोह का कहना है किः हाजी क़ुर्बानी नहीं करेगा .... हालाँकी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुर्बानी करने पर बल दिया है। इसलिए हाजी को बिना किसी प्रमाण के अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करने और उसकी कृपादया से रोकना जायज़ नहीं है।‘’संक्षेप के साथ संपन्न हुआ। ‘’अल-मुहल्ला’’ (5/314, 315)

(5) हनाबिला :

इनके नज़दीक हाजी के लिए क़ुर्बानी करना जायज़ है। इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैः ‘’अगर हाजी के पास हदी (हज्ज की क़ुर्बानी) न हो और उस पर हदी अनिवार्य हो तो वह हदी का जानवर खरीदेगा, और अगर उस पर हदी अनिवार्य नहीं है, और वह क़ुर्बानी करना चाहे, तो वह क़ुर्बानी के जानवर को खरीदकर क़ुर्बानी करे।‘’

‘’अल-मुग़्नी’’ (7/180 )

तथा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में आया है किः ‘’नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्जतुल वदाअ के अवसर पर अपनी पत्नियों की ओर से क़ुर्बानी किया।‘’ इसे बुखारी (हदीस संख्याः 5239) और मुस्लिम (हदीस संख्याः121) ने रिवायत किया है।

कुछ विद्वानों – जैसेकि इब्नुल क़ैयिम - ने इस हदीस से दलील पकड़ने का खंडन किया है और कहा है किः इस हदीस में क़ुर्बानी से मुराद हदी (हज्ज की क़ुर्बानी) है।

देखिएः ‘’ज़ादुल मआद’’ (2/262-267)

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या और उनके शिष्य इब्नुल क़ैयिम ने इस बात को चयन किया है कि हाजी के लिए क़ुर्बानी नहीं है।

देखिएः ‘’अल-इक़्ना’’ (1/409), ‘’अल-इन्साफ’’ (4/110)

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने भी इसी कथन को राजेह क़रार दिया है। शैख रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया किः इन्सान क़ुर्बानी और हज्ज को एक साथ कैसे एकत्र करे और क्या यह घर्मसंगत है?

तो शैख ने उत्तर दिया कि : ‘’हज्ज करनेवाला क़ुर्बानी नहीं करेगा, बल्कि वह हदी देगा, इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्जतुल वदाअ में क़ुर्बानी नहीं किया बल्कि हदी दिया था। लेकिन यदि मान लिया जाए कि हज्ज करनेवाला अकेले हज्ज कर रहा है और उसका परिवार उसके देश में है तो ऐसी स्थिति में वह अपने परिवार के लिए इतना पैसा छोड़ देगा जिससे वे लोग क़ुर्बानी का जानवर खरीद सकें और उसकी क़ुर्बानी करें। वह स्वयं हदी देगा और वे लोग क़ुर्बानी करेंगे, क्योंकि क़ुर्बानी शहरों में धर्मसंगत है। रही बात मक्का की तो वहाँ हदी है।‘’

‘’अल्लिक़ा अश्श्हरी’’ (मासिक बैठक) से संपन्न हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

हज्ज और उम्रा बलिदान (क़ुर्बानी)
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