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आजकल प्रचलित वाणिज्यिक बीमा का क्या हुक्म है ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
1- सभी प्रकार का वाणिज्यिक बीमा नि:सन्देह स्पष्ट सूद (व्याज़) है, यह पैसों को उस से कम या अधिक पैसों के बदले उन में से एक को विलंब करके बेचना है, अत: इस में "रिबा अल-फज्ल" (वृद्धि का सूद) और "रिबा अन्नसीआ" (उधार का सूद) दोनों पाया जाता है, क्योंकि बीमा वाले लोग (कंपनियाँ) लोगों के पैसे लेते हैं और जिस निर्धारिकत घटना के विपरीत बीमा किया गया है उसके घटित होने पर उन्हें उस से कम या अधिक पैसे देने का वादा करते हैं। और यही सूद है, और सूद क़ुर्आन करीम की कई आतयतों के आधार पर हराम (वर्जित) है।
2- सभी प्रकार के वाणिज्यिक बीमा जुआ पर आधारित हैं जो क़ुरआन करीम की आयत के अनुसार हराम है, अल्लाह तआला का फरमान है : "ऐ ईमान वालो ! शराब, जुआ, और मूर्तियों की जगह, और पाँसे, गन्दे शैतानी काम हैं, इसलिए तुम इस से अलग रहो ताकि कामयाब हो जाओ।" (सूरतुल माईदा : 90)
बीमा अपने सभी प्रकार के साथ भाग्य का खेल है, वे आप से कहते हैं कि इतना भुगतान करो, अगर आप के साथ ऐसा होगा तो हम आप को इतना दें गे, और यह हूबहू जुआ है, तथा बीमा और जुआ के बीच अंतर करना हठ है जिसे शुद्ध बुद्धि स्वीकार नहीं करती, बल्कि स्वयं बीमा वाले लोग इस बात को स्वीकारते हैं कि बीमा एक जुआ है।
3- वाणिज्यिक बीमा के सभी प्राकर धोखा हैं, और धोखा बहुत सारी सहीह हदीसों के कारण हराम है, उसी में से अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि : "पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कंकरी की बिक्री और धोखे की बिक्री से मना किया है।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है )। (कंक्री की बिक्री कई एक व्याख्याएं हैं जिन में से उदाहरण के तौर पर एक यह है किः बेचने वाला कंक्री मार कर कहेः इन कपड़ों में से जिस कपड़े पर यह कंक्री लग जाये उसे मैं ने तुम से बेच दिया।)
वाणिज्यिक बीमा के सभी प्रकार धोखा पर आधारित हैं, बल्कि स्पष्ट और व्यापक धोखा पर आधारित हैं, बीमा की सभी कंपनियाँ, और हर वह व्यक्ति जो बीमा बेचता है, वह किसी असंभावित खतरे के विरूद्ध बीमा को निश्चित रूप से नकारता है, अर्थात यह आवश्यक है कि खतरे का घटित होना और घटित न होना संभावित हो ताकि वह बीमा के योग्य बन सके, इसी प्रकार खतरे के घटित होने के समय और उस की मात्रा का ज्ञान होना निषिद्ध है, इस तरह बीमा में धोखा और अस्पष्टता के तीनों व्यापक प्रकार एकत्र हो जाते हैं।
4- वाणिज्यिक बीमा अपने सभी रूपों में अवैध रूप से लोगों का माल खाना है, और यह क़ुरआन की आयत के अनुसार हराम (वर्जित) है, अल्लाह तआला का फरमान है : "ऐ ईमान वालो, तुम आपस में एक दूसरे के माल (धन) को अवैध तरीक़े से न खाओ।" (सूरतुल बक़रा: 188)
वाणिज्यिक बीमा अपने सभी रूपों में लोगों के धन को अवैध रूप से खाने के लिए एक धोखाधड़ी की कार्रवाई है, एक जर्मन विशेषज्ञ के एक सूक्ष्म आंकड़े ने यह साबित कर दिया है कि लोगों को जो धन लौटाया जाता है उस का अनुपात उन से लिए गये धन के 2.9%के बराबर भी नहीं होता है।
अत: बीमा उम्मत (राष्ट्र) के लिए बहुत बड़ी छति है, और काफिरों का कृत्य कोई हुज्जत (तर्क) नहीं है जिनके संबंध कट चुके हैं और वे बीमा के लिए विवश हो गये हैं, हालांकि वे इसे मौत को नापसंद करने की तरह नापसंद करते हैं।
यह कुछ महान धार्मिक उल्लंघन हैं जिन के बिना बीमा संपन्न नहीं हो सकता, इनके अलावा उस में अन्य कई उल्लंघन और वर्जनायें है जिनके उल्लेख का यह स्थान गुनजाइश नहीं रखता, और उनके उल्लेख करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि उपर्युक्त उल्लंधनों में से केवल एक उल्लंधन ही उसे अल्लाह की शरीअत की दृष्टि में सब से बड़ा वर्जित और निषिद्ध काम बनाने के लिये पर्याप्त है।
यह अफसोस की बात है कि कुछ लोग बीमा के अधिवक्ताओं के फरेब और छल का शिकार बन जाते हैं क्योंकि वे इसे उनके लिए सुसज्जित और श्रृंगारित करके पेश करते हैं और इसे उन पर संदिग्घ बना देते हैं, जैसे कि उसे सहायक बीमा, या साम्य बीमा, या इस्लामी बीम, या इन के अलावा कोई अन्य नाम देना जो इस की बातिल हक़ीक़त को कुछ भी नहीं बदल सकते।
जहाँ तक इस तथ्य का संबंध है कि बीमा के अधिवक्ता यह दावा करते हैं कि विद्वानों ने सहकारी बीमा के वैध (हलाल) होने का फत्वा दिया है, तो यह एक झूठ और लांछन है, और इस में भ्रम का कारण यह है कि बीमा के कुछ अधिवक्ता बीमा के एक नक़ली रूप के साथ जिस का बीमा से कोई संबंध नहीं, विद्वानों के पास गये और कहा कि यह बीमा का एक प्रकार है और उसे (सुसज्जित करते हुए और लोगों पर संदिग्ध बनाते हुये) सहकारी बीमा का नाम दिया, और कहा कि यह मात्र दान करने के अध्याय से है, और यह उस सहयोग में से है जिस का अल्लाह तआला ने अपने इस फरमान में आदेश दिया है : "नेकी और तक़्वा (ईश्भय और संयम) के कामों पर एक दूसरे का सहयोग करो।", और इस का उद्देश्य लोगों पर आने वाली भारी आपदाओं को कम करने पर सहयोग करना है, जबकि सही बात यह है कि जिसे वे लोग सहकारी बीमा का नाम देते हैं वह बीमा के अन्य प्रकार की तरह ही है, और अंतर केवल रूप में है वास्तविकता और मूल तत्व में कोई अंतर नहीं है, और वह मात्र दान से बहुत दूर है, तथा नेकी और संयम (परहेज़गारी) के कामों पर सहयोग से अति दूर है, बल्कि निश्चिति रूप से वह पाप और आक्रामकता पर सहयोग है, उसका मक़सद आपदाओं को कम करना और उसका सुधार करना नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य अवैध ढंग से लोगों के धन को खाना है, अत: वह निश्चित रूप से बीमा के अन्य प्रकार की तरह हराम (वर्जित) है, इसलिए उन्हों ने जो कुछ विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत किया है उस का बीमा से कोई संबंध नहीं है।
जहाँ तक कुछ लोगों का कुछ फालतू राशि को लौटाने का दावा है, तो यह उस के हुक्म को कुछ भी नहीं बदल सकता, और बीमा को सूद, जुआ, धोखाधड़ी, अवैध ढंग से लोगों का माल खाने, अल्लाह तआला पर भरोसा के विरूद्ध होने, और इनके अलावा अन्य वर्जित तत्वों से नहीं बचा सकता, यह केवल धोखा देना और लोगों पर उनके मामले को संदिग्ध करना है, और जो व्यक्ति अधिक जानकारी चाहता है वह (बीमा और उसके प्रावधान) नामी पत्रिका देखे। तथा मैं अपने धर्म पर गैरत का एहसास रखने वाले हर मुसलमान से जो अल्लाह तआला और परलोक के दिन की आशा रखता है, यह आह्वान करता हूँ कि वह अपने अंदर अल्लाह तआला का डर पैदा करे, और हर प्रकार के बीमा से बचाव करे, चाहे वह मासूमियत का कितना भी जोड़ा पहने हुये हो और जितने भी चमकदार कपड़ों में सुसज्जित हो, क्योंकि इस में कोई सन्देह नहीं कि वह हराम है, और इस तरह वह अपने धर्म और धन को सुरक्षित कर लेगा, और शांति के मालिक अल्लाह सुब्हानहु व तआला की तरफ से शांति और सुरक्षा से लाभान्वित होगा।
अल्लाह तआला मुझे और आप को धर्म की समझ प्रदान करे और सर्व संसार के पालनहार की प्रसन्नता का कार्य करने की तौफीक़ दे।