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ज़कात और सदक़ा के बीच अंतर

02-01-2024

प्रश्न 9449

सदक़ा और ज़कात के बीच क्या अंतर हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अरबी भाषा में ज़कात का अर्थ है : बढ़ोतरी, लाभ, बरकत और शुद्धि।

देखें : ''लिसानुल-अरब'' (14/358), ''फत्हुल-क़दीर'' (2/399).

अरबी भाषा में सदक़ा का शब्द ''सिद्क़'' से लिया गया है; क्योंकि यह उसके निकालने वाले के अपने ईमान में सच्चा होने का प्रमाण है।

देखें : ''फत्हुल-क़दीर'' (2/399)

जहाँ तक उसके शरई परिभाषा की बात है :

तो ज़कात का मतलब है : शरीयत में बताए गए तरीक़े के अनुसार अल्लाह के अनिवार्य किए हुए विभिन्न प्रकार की ज़कात को उसके हक़दारों को भुगतान करके अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना करना।

सदक़ा का मतलब है : शरीयत के द्वारा अनिवार्य किए बिना धन को खर्च करके अल्लाह की उपासना करना। कभी-कभी अनिवार्य ज़कात को भी सदक़ा कहा जाता है।

जहाँ तक ज़कात और सदक़ा के बीच अंतर की बात है, तो वह निम्नलिखित है :

  1. इस्लाम ने ज़कात को कुछ विशिष्ट चीज़ों में अनिवार्य किया है, और वे हैं : सोना, चाँदी, फसलें, फल, व्यापार के सामान और पशुधन जो कि ऊँट, गाय और भेड़-बकरी हैं।

रही बात सदक़ा की, तो वह किसी विशिष्ट चीज़ में अनिवार्य नहीं है, बल्कि बिना किसी निर्धारण के इनसान जो भी दान कर दे।

  1. ज़कात के लिए कुछ शर्तें अनिवार्य होती हैं, जैसे कि एक साल का बीतना और धन का निसाब (ज़कात अनिवार्य होने की न्यूनतम सीमा) तक पहुँचना। तथा उसके लिए धन में एक निर्धारित मात्रा है।

रही बात सदक़ा की, तो उसके लिए कोई शर्त अनिवार्य नहीं है। अतः सदक़ा किसी भी समय और किसी भी मात्रा में दिया जा सकता है।

  1. ज़कात के बारे में अल्लाह ने यह अनिवार्य किया है कि वह कुछ विशिष्ट वर्गो को दिया जाएगा। इसलिए उसे उनके अलावा को नहीं दिया जा सकता। ज़कात के हक़दार लोगों का वर्णन अल्लाह के इस कथन में हुआ है :  إنما الصدقات للفقراء والمساكين والعاملين عليها والمؤلفة قلوبهم وفي الرقاب والغارمين وفي سبيل الله وابن السبيل فريضة من الله والله عليم حكيم  ''ज़कात तो केवल फ़क़ीरों और मिस्कीनों के लिए और उसपर नियुक्त कार्यकर्ताओं के लिए तथा उनके लिए है जिनके दिलों को परचाना अभीष्ट हो, और दास मुक्त करने में और क़र्ज़दारों एवं तावान भरने वालों में और अल्लाह के मार्ग में तथा यात्रियों के लिए है। यह अल्लाह की ओर से एक दायित्व है और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।'' (सूरतुत्-तौबा : 60).

रही बात सदक़ा की, ते उसे ज़कात की आयत में वर्णित लोगों को और उनके अलावा लोगों को भी देना जायज़ है।

  1. जिस व्यक्ति की मृत्यु हो गई और उसपर ज़कात देय है, तो उसके वारिसों पर अनिवार्य है कि उसे उसके धन से निकाल दें, और इसे वसीयत लागू करने और वारिसों में विभाजित करने से पहले निकाला जाएगा।

रही बात सदक़ा की, तो इसमें इस तरह की कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।

  1. ज़कात रोकने वाले को यातना दी जाएगी, जैसा कि उस हदीस में आया है, जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 987) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जो भी खजाने वाला अपने खज़ाने की ज़कात नहीं देता, तो उसके खज़ाने को नरक की आग में तपाया जाएगा और उनकी प्लेटें बनाकर उनके साथ उस आदमी के दोनों पहलुओं और माथे को तब तक दागा जाएगा जब तक कि अल्लाह अपने बंदों के बीच फैसला नहीं कर देता, एक ऐसे दिन में जिसकी अवधि पचास हज़ार वर्ष है। फिर उसे जन्नत या जहन्नम की ओर उसका रास्ता दिखा दिया जाएगा। तथा जो भी ऊँटों का मालिक ऐसा है जो उनकी ज़कात नहीं देता है, उसे उन ऊँटों के सामने एक विशाल चटियल मैदान में लिटा दिया जाएगा और वे उसके ऊपर दौड़ेंगे। जब भी उनमें से आखिरी ऊँट गुज़र जाएगा तो उनमें से पहला ऊँट दोबारा लाया जाएगा, यहाँ तक कि अल्लाह अपने बंदों के बीच फैसला कर देगा, उस दिन में जिसकी अवधि पचास हजार साल के बराबर है, फिर उसे स्वर्ग या नरक की ओर उसका रास्ता दिखा दिया जाएगा। जो भी बकरियों का मालिक उनकी ज़कात नहीं देता, उसे उनके सामने एक विशाल चटियल मैदान में लिटा दिया जाएगा, वे उसे अपने खुरों से रौंदेंगी और अपने सींगों से मारेंगी। उनमें से कोई मुड़े हुए सींगों वाली या बिना सींगों वाली नहीं होगी। जब भी उनमें से आखिरी बकरी गुज़रेगी, तो उनमें से पहली बकरी दोबारा वापस आ जाएगी, यहाँ तक कि अल्लाह अपने बंदों के बीच फैसला कर देगा, एक ऐसे दिन में जिसकी मात्रा तुम्हारी गणना से पचास हजार साल है, फिर उसे जन्नत यहा जहन्नम की ओर उसका रास्ता दिखा दिया जाएगा...”

रही बात सदक़ा की, तो उसको छोड़ने वाले को यातना नही दी जाएगी।

  1. चार मतों के अनुसार : ज़कात आदमी के उसूल एवं फुरू' को नही दी जाएगी। उसूल से अभिप्राय माँ-बाप और दादा-दादी हैं, तथा फ़ुरू' से अभिप्राय बच्चे और उनके बच्चे हैं।

रही बात सदक़ा की, तो उसे फुरू' एवं उसूल दोनो को देना जायज़ है।

  1. ज़कात किसी मालदार व्यक्ति या जीविकोपार्जन करने में सक्षम शक्तिशाली व्यक्ति को देना जायज़ नहीं है।

उबैदुल्लाह बिन अदी ने कहा : दो लोगों ने मुझे बताया कि वे हज्जतुल-वदाअ (विदाई हज्ज) के दौरान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए, जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़कात बाँट रहे थे। उन दोनों ने आपसे उसमें से कुछ माँगा। आपने उन दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा, तो आपने उन्हें मजबूत शरीर वाला और सक्षम पाया। आपने फरमाया : “यदि तुम दोनों चाहो तो मैं तुम्हें कुछ दे दूँगा, परंतु धनवान या कमाने में समर्थ बलवान के लिए इसमें कोई हिस्सा नहीं है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1633) और नसई (हदीस संख्या : 2598) ने रिवायत किया है, तथा इमाम अहमद और अन्य ने इसे सहीह कहा है।

देखें : “तलख़ीस अल-हबीर” (3/108).

रही बात सदक़ा कि, तो उसे मालदार और कमाने में सक्षम ताक़तवर आदमी को दिया जा सकता है।

  1. ज़कात के मामले में बेहतर यह है कि उसे देश के मालदारों से लिया जाए और उनके गरीबों को दिया जाए। बल्कि बहुत-से विद्वानों का मानना है कि सार्वजनिक हित के अलावा इसे किसी अन्य देश में स्थानांतरित करना जायज़ नहीं है।

जहाँ तक सदक़ा की बात है, तो इसे निकट और दूर के सभी लोगों पर खर्च किया जा सकता है।

  1. ज़कात कुफ़्फ़ार और मुशरिकीन को देना जायज़ नहीं है।

जहाँ तक सदक़ा का संबंध है, तो उसे कुफ़्फ़ार और मुशरिकीन को देना जायज़ है। जैसाकि अल्लाह का फरमान है :  ويطعمون الطعام على حبه مسكينا ويتيما وأسيرا  "और वे मिस्कीनों (गरीबों), अनाथों और बंदियों (क़ैदियों) को भोजन देते हैं, उसके प्रति अपने प्रेम के बावजूद।" [सूरतुल-इनसान : 8]

क़ुर्तुबी ने कहा : दारुल-इस्लाम (मुस्लिम भूमि) में बंदी केवल एक मुशरिक हो सकता है।

  1. एक मुसलमान के लिए अपनी पत्नी को ज़कात देना जायज़ नहीं है। इब्नुल-मुंज़िर ने इसपर सर्वसम्मति का उल्लेख किया है।

जहाँ तक सदक़ा की बात है, तो इसे पत्नी को देना जायज़ है।

ये ज़कात और सदक़ा के बीच कुछ अंतर हैं।

सदक़ा का शब्द सभी प्रकार के अच्छे कार्यों पर भी बोला जाता है। इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह ने अपनी सहीह में कहा : "अध्याय: हर अच्छा काम सदक़ा है।" फिर उन्होंने अपनी सनद (संचरण की श्रृंखला) के साथ जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हर अच्छा काम सदक़ा है।"

इब्ने बत्ताल ने कहा : "यह हदीस इंगित करती है कि एक व्यक्ति जो भी अच्छा काम करता है या कहता है वह उसके लिए सदक़ा के रूप में दर्ज किया जाता है।"

इमाम नववी ने कहा : "नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के शब्द "हर अच्छा काम सदक़ा है।" का अर्थ यह है कि वह पुण्य (प्रतिफल) में सदक़ा की तरह है।"

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

ज़कात (अनिवार्य धर्म-दान) सद्क़ात व ख़ैरात (दान)
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