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क्या जो आदमी रूचि रखता है और उसके ऊपर कष्ट व कठिनाई की बात नहीं है तो उसके लिए प्रति वर्ष हज्ज करना बेहतर है या कि प्रति तीन वर्ष या प्रति दो वर्ष पर हज्ज करना अच्छा है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“अल्लाह तआला ने हर सक्षम मुकल्लफ (हर वह आदमी जो व्यस्क और बुद्धिमान हो) पर जीवन में एक बार हज्ज करना अनिवार्य किया है, और जो इस से अधिक है तो वह नफ्ल है जिसके द्वारा अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त होती है, और नफ्ली हज्ज का किसी संख्या के साथ सीमित होना साबित नहीं है, बल्कि उसका एक से अधिक बार हज्ज करना मुकल्लफ की आर्थिक और स्वास्थिक स्थिति पर निर्भर करता है, तथा उसके इर्द गिर्द रहने वाले जो रिश्तेदारों और गरीब लोगों की स्थितियों, तथा उम्मत के भिन्न-भिन्न सामान्य हितों और उस व्यक्ति के अपने नफ्स और अपने धन के द्वारा उनकी मदद करने, तथा उम्मत के अंदर उसके स्थान, तथा उसके अपने निवास या हज्ज वगैरह की यात्रा में उसे लाभ पहुँचाने की तरफ लौटता है, अतः हर एक को अपनी परिस्थितियों को देखना चाहिए और उसके लिए कौन सी चीज़ सबसे अधिक लाभदायक है, तो उसे उसके अलावा पर प्राथमिकता दे।” अंत
“इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति का फतावा” (11/14)
और यदि वह क्षमता रखता है तो उचित यह है कि पाँच वर्ष उसके हज्ज किए बिना न गुज़रे, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “अल्लाह तआला फरमाता है : एक बंदा जिसे मैं ने शारीरिक स्वास्थ्य दिया है, और उसकी जीविका में विस्तार किया है, उसके ऊपर पाँच वर्ष गुज़र जाए और वह मेरे पास न आए तो वह महरूम (वंचित) और बदनसीब है।” इस हदीस को इब्ने हिब्बान (हदीस संख्या : 960) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने “अस्सिलसिला अस्सहीहा” (1662) में उसकी सभी सनदों को मिलाकर सही कहा है।