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उस मुसलमान को क्या करना चाहिए जो जुमा की नमाज़ में केवल तशह्हुद को पाता हैॽ तथा ऐसी स्थिति में जब किसी मुसलमान को नमाज़ में उपस्थित होने से रोक दिया जाता है या उसे अपने नियंत्रण से बाहर किसी कारणवश नमाज़ से देर हो जाती है, जैसे कि जिस बस में वह सवार था वह खराब हो जाती है, तो क्या इसमें उसपर कोई दोष हैॽ क्या वह उस सारे अज्र व सवाब से जिसके मिलने की उसे उम्मीद थी तथा दुआ की स्वीकृति के क्षणों... वगैरह को खो देता हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
आप जुमे की नमाज़ को पाने वाले केवल तभी माने जा सकते हैं जब आप इमाम के साथ एक रकअत पा लें, और रकअत पाने का मतलब यह है कि आप इमाम के साथ रुकू' पा लें। यदि कोई व्यक्ति इमाम को दूसरी रकअत में उसके रुकू' से उठने से पहले पा लेता है, तो उसने नमाज़ पा ली, और ऐसी स्थिति में वह इमाम के सलाम फेरने के बाद अपनी नमाज़ पूरी करेगा, इसलिए वह खड़ा होगा और अपनी नमाज़ की शेष रकअत पूरी करेगा।
लेकिन अगर वह इमाम को दूसरी रकअत में उसके रुकू से उठने के बाद पाता है, तो उससे जुमा की नमाज़ छूट गई और उसने उसे नहीं पाया। ऐसी स्थिति में वह उसे ज़ुहर की नमाज़ के रूप में पढ़ेगा। इसलिए वह इमाम के सलाम फेरने के बाद खड़ा होगा और अपनी नमाज़ को चार रकअत पूरी करेगा इस आधार पर कि वह ज़ुहर की नमाज़ है, जुमा नहीं। यही अधिकांश विद्वानों मालिक, शाफ़ेई और अहमद (अल्लाह उन सब पर रहम करे) का दृष्टिकोण है। देखें : नववी की 'अल-मजमू' (4/558)।
उन्होंने कई प्रमाणों से दलील पकड़ी है, जिनमें से कुछ निम्नलिखिति हैं :
1 – नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जिसने नमाज़ की एक रकअत पा ली, तो निश्चय उसने नमाज़ पा ली।” (बुखारी : 580, मुस्लिम : 607)।
2 – नसाई ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो कोई भी जुमा या किसी अन्य नमाज़ की एक रकअत पा लेता है, तो उसे उसमें एक और रकअत जोड़ना चाहिए और उसकी नमाज़ पूरी हो गई।” इसे अलबानी ने अल-इरवा (622) में सहीह कहा है।
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कारण से नमाज़ नहीं पाता है जो उसके नियंत्रण से बाहर है - जैसे कि बस का खराब हो जाना, जैसा कि प्रश्न करने वाले ने उल्लेख किया है, और इसी तरह के अन्य बहाने जैसे कि सो जाना या भूल जाना - तो ऐसी स्थिति में उस पर कोई पाप या दोष नहीं है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وليس عليكم جناح فيما أخطأتم به ولكن ما تعمدت قلوبكم
الأحزاب: 5
"और तुमपर उसमें कोई दोष नहीं है, जो तुमसे ग़लती से हो जाए, लेकिन (दोष उसमें है) जो तुम अपने दिल के इरादे से किया है।” (सूरतुल-अहज़ाब : 5)
और इस तरह के व्यक्ति ने जानबूझकर नमाज़ बर्बाद नहीं की है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “अल्लाह ने मेरी उम्मत से ग़लती, भूल और उस चीज़ को माफ कर दिया है जिसपर वे मजबूर किए गए हैं।” इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है और अलबानी ने अल-इर्वा (82) में इसे सहीह कहा है।
ऐसी परिस्थिति में, यदि वह नमाज़ अदा करने के अपने संकल्प में सच्चा था यदि उज़्र (बहाना) रुकावट न बन गया होता, तो उसे पूरा अज्र (सवाब) मिलेगा, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “कार्यों का दारोमदार इरादों पर है, और हर व्यक्ति को वही मिलेगा जिसका उसने इरादा किया है।” (सहीह बुखारी : 1, मुस्लिम : 1907)।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तबूक के युद्ध से लौटते समय अपने साथियों से कहा : “मदीना में कुछ लोग ऐसे हैं, कि तुमने कोई रास्ता तय नहीं किया, या किसी घाटी को पार नहीं किया, परंतु वे अज्र व सवाब में तुम्हारे साथ शरीक थे, उन्हें बीमारी ने रोक दिया था।” (मुस्लिम : 1911).
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।